चंदन को विश्वास नहीं है
chandan ko wishwas nahin hai
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
चंदन को विश्वास नहीं है
chandan ko wishwas nahin hai
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
और अधिकहरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
मैंने नीम तले झुककर
विष का सारा संचय पी डाला
पर क्या करूँ, अगर इस पर भी
चंदन को विश्वास नहीं है!
मेरी साँस दुखों की ख़ुशबू
मेरा दर्द सुखों का अर्पण
मेरे गीतों का गीलापन
सोई इच्छाओं का दर्पण
मैंने समता का सौरभ
निर्ममता को अर्पित कर डाला
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
धड़कन को विश्वास नहीं है
सुबह-सुबह की किरण सुनहली
मनसा की चुनरी रँग जाए
किंतु निगोड़ी शाम, रात के
आँचल पर कालिख धर जाए
मैंने परिवा का चंदा लख,
तारों की गिनती कर डाली
पर क्या करूँ अगर अब भी
आकर्षण को विश्वास नहीं है
मेरे दर्द महज़ अनगाए
मेरी दौड़ महज़ अनचाही
मेरा प्यार जुर्म का सौदा
मिले भला किस तरह गवाही
मैंने पीतल के पीछे
सारा जीवन मृगवत् कर डाला
पर क्या करूँ अगर इस पर भी,
कुंदन को विश्वास नहीं है
दूँ कैसे उपहार किसी को
नीलामी की ख़ुशी हमारी
यह मुस्कान उधार ख़रीदी
बदनामी बेबसी हमारी
मैंने दहते मरु को, निज
आँखों का सब अमरित दे डाला
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
नंदन को विश्वास नहीं है
रात लुटाए भार रूपहली
दिन बाँटे संध्या रंगीली
मेरे बनजारे नैनों ने
सूनेपन से पलकें सी लीं
मैंने आँखों की पुतली
देवालय के द्वारे चुन डाला
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
दर्शन को विश्वास नहीं है
हर चौराहे की बदनामी
गलियों की सारी अफ़वाहें
मेरे माथे राजमुकुट-सी
अनपूरी चाहों की आहें
मैंने हर डोरे को,
राखी की महती महिमा दे डाली
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
बंधन को विश्वास नहीं है
मेरा हृदय हाथ का शीशा
उस पर दाग़ मर्म के साये
मेरे भावों का चिथड़ापन
जगती के चलचित्र उगाए
मैंने हर साये के पीछे
मन की दीप-शिखा उकसाई
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
दर्पण को विश्वास नहीं है
अपकारों-उपकारों से
मेरे झुक जाने का समझौता
मेरी आहुति वज्र-हृदय को
मेरे घर आने का न्योता
मैंने जग की सुंदरता को
अपना करम धरम दे डाला
पर क्या करूँ अगर इस पर भी
पूजन को विश्वास नहीं है।
- रचनाकार : हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए सतीश नूतन द्वारा चयनित
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