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हर ओर कलियुग के चरण

har or kaliyug ke charn

भारत भूषण

भारत भूषण

हर ओर कलियुग के चरण

भारत भूषण

और अधिकभारत भूषण

    हर ओर कलियुग के चरण

    मन स्मरण कर अशरण शरण।

    धरती रँभाती गाय-सी

    अंतोन्मुख की हाय-सी

    संवेदना असहाय-सी

    आतंकमय वातावरण।

    प्रत्येक क्षण विष दंश है

    हर दिवस अधिक नृशंस है

    व्याकुल परम् मनु वंश है

    जीवन हुआ जाता मरण।

    सब धर्म गंधक हो गए

    सब लक्ष्य तन तक हो गए

    सद्भाव बंधक हो गए

    असमाप्त तम का अवतरण।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरे चुनिंदा गीत (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : भारत भूषण
    • प्रकाशन : अमरसत्य प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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