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ना अइलऽ बरिसात में

na ailऽ barisat mein

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

अन्य

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सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

ना अइलऽ बरिसात में

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

और अधिकसूर्यदेव पाठक ‘पराग’

    कतना दिन से आस लगवलीं, ना अइलऽ बरिसात में!

    झूठे पाती भेजत रहलऽ, खूब भोरवलऽ बात में!

    फगुओ बीतल चइतो बीतल

    बीत गइल सावन-भादो,

    अतना सह के कौन करी, विसवास मरद के जात में!

    गइयाँ के कइसन हऽ लोगवा

    से तूहूँ जानत बाड़ऽ,

    हमरा पीछे कतने नवहीं, लागल बाड़े घात में!

    पंडी जी से सगुन करवलीं

    कहले छठ में जइहें,

    काल्हे दिन में खूबे सरकल, सोचत रहलीं खात में!

    जाड़ा के मौसम आवत बा

    हउँकत बाटे पुरवाई,

    का का हमरा ऊपर गुजरी, पूस-माघ के रात में!

    सभका खातिर सभ आवत बा

    हम जोहत बानी बटिया,

    हमरा खातिर हे निर्मोही, विरह मिलल सौगात में!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अलग-अलग रंग (पृष्ठ 72)
    • रचनाकार : सूर्यदेव पाठक ‘पराग’
    • प्रकाशन : प्रभात कुमार पाठक
    • संस्करण : 2009

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