नारों की खेती को सारा हिंदोस्तान
naron ki kheti ko sara hindostan
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
नारों की खेती को सारा हिंदोस्तान
naron ki kheti ko sara hindostan
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
और अधिकहरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
गीतों की खेती के लिए नहीं भाईजान
नारों की खेती को सारा हिंदोस्तान
हिंसा का उर्वरक, अहिंसा की धरती
भरती है स्वाँग कोखवाली की परती
नवयुग की सखी हरित-क्रांति की चहेती
सुन-सुनकर राष्ट्र-गान ब्या बैठी रेती
स्वार्थ की फ़सल उन्नत हँसिए का संविधान
ओठ चाटते बोलो—“जय जवान, जय किसान”
करिश्मा दिमाग़ों का लख लंबा-चौड़ा
मुट्ठी भर दिल को क्यों पड़े नहीं दौरा?
नीचे का पेट हुआ ऊपर को हावी
गंगा को अब गंगाजल देती रावी
छप्पर से छत तक को, कर लो ऊँचा मचान
वहीं कभी उतरेगा ‘उनका’ पुष्पक विमान
झूठी हो गई सरेशाम सरफ़रोशी
चितकबरे मन की चमकी सफ़ेदपोशी
निज का शुभ-लाभ हुआ सामूहिक दर्शन
कहीं फली पद्मश्री, कहीं पद्मभूषण
यह नया तहलका है, देश का नया उठान
दर्जा पाकर रिश्वत बन गई पवित्र दान
देश बड़ा इतना हो राजनीति छोटी?
भला किस दिमाग़ की परत इतनी मोटी?
गाँधी के रुतबे में रंगी हर लँगोटी
दिल्ली का स्वाद कहे मक्के की रोटी
विज्ञापन में लेकर हाथों गीता-कुरान
फीके पकवानों की ऊँची कर ले दुकान
भरा-भरा मन, तन के ख़ाली हैं साँचे
दो ध्रुव का औसत बन फिरते हैं ढाँचे
अब क्या कुछ शेष फ़र्क़—दक्षिण हो या कि वाम
इनको आदाब अर्ज़, उनको भी राम-राम
ग़ज़लों से ज़्यादा वज़नी सरकारी बयान
लालक़िले में ग़ालिब खोज रहे क़द्रदान
- रचनाकार : हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए सतीश नूतन द्वारा चयनित
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