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हमारी देह का तपना

hamari deh ka tapna

विनोद श्रीवास्तव

विनोद श्रीवास्तव

हमारी देह का तपना

विनोद श्रीवास्तव

और अधिकविनोद श्रीवास्तव

    हमारी देह का तपना

    तुम्हारी धूप क्या जाने

    बहुत गहरे नहीं संबंध होते

    रंक राजा के

    रौंदे गाँव की मिट्टी

    किसी के बूट आ-जा के

    हमारे गाँव का सपना

    तुम्हारा भूप क्या जाने

    नशे में है बहुत ज़्यादा

    अमीरी आपकी कमसिन

    ग़रीबी मौन है फिर भी

    उजाड़ी जा रही दिन-दिन

    हमारी प्यास का बढ़ना

    तुम्हारा कूप क्या जाने

    हमारे दर्द गूँगे हैं

    तुम्हारे कान बहरे हैं

    तुम्हारा हास्य सतही है

    हमारे घाव गहरे हैं

    हमारी भूख का उठना

    तुम्हारा सूप क्या जाने

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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