आँख मिला पाना मुश्किल है
ankh mila pana mushkil hai
आँख मिला पाना मुश्किल है
अब तो अपने आपसे,
खेल रहे खेला दिग्विजयी,
अब तो सीढ़ी-साँप के।
झुलस गए चौपाल, धधकते खेत-खले,
कर्फ़्यू-सा लग जाता द्वारों साँझ ढले।
नरवलि के आयोजन फूहड़,
क्या मानी जप-जाप के?
रक्त-रक्त के कण देखे तो एक रंग हैं,
रग-रग में बहने के जिनके एक ढंग हैं।
सहमे बैठे भरतखंड में
आज सियासी आपके।
मारा हुआ समय का शर्मो-हया ढँक रहा,
अब उतार पर लकवा खाया जिस्म थक रहा।
पैमाने जो आज चलन में
हैं सब ओछे माप के।
- पुस्तक : लिख सकूँ तो— (पृष्ठ 57)
- रचनाकार : नईम
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2003
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