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देखो इन्हें

dekho inhen

प्रसून जोशी

प्रसून जोशी

देखो इन्हें

प्रसून जोशी

देखो इन्हें ये हैं

ओस की बूँदें

पत्तों की गोद में

आसमाँ से कूदें

अँगड़ाई लें फिर करवट बदलकर

नाज़ुक से मोती हँस दें फिसलकर

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

ये तो हैं सर्दी में

धूप की किरनें

उतरें जो आँगन को

सुनहरा-सा करने

मन के अँधेरों को

रोशन-सा कर दें

ठिठुरती हथेली की

रंगत बदल दें

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

जैसे आँखों की डिबिया

में निंदिया

और निंदिया में मीठा-सा सपना

और सपने में मिल जाए

फ़रिश्ता-सा कोई

जैसे रंगों भरी पिचकारी

जैसे तितलियाँ फूलों की क्यारी

जैसे बिन मतलब का प्यार

रिश्ता हो कोई

ये तो आशा की लहर हैं

ये तो उम्मीद की सहर हैं

ख़ुशियों की नहर हैं

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

देखो रातों के सीने पे ये तो

झिल-मिल किसी लौ से उगे हैं

ये तो अंबिया की ख़ुशबू हैं

बाग़ों से बह चलें

जैसे काँच में चूड़ी के टुकड़े

जैसे खिले-खिले फूलों के मुखड़े

जैसे बंसी कोई बजाए पेड़ों के तले

ये तो झोंके हैं पवन के

हैं ये घुँघरू जीवन के

ये तो सुर हैं चमन के

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

मोहल्ले की रौनक़ गलियाँ हैं जैसे

खिलने की ज़िद पर कलियाँ हैं जैसे

मुट्ठी में मौसम की जैसे हवाएँ

ये हैं बुज़ुर्गों के दिल की दुआएँ

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

तारे ज़मीं पर

कभी बातें जैसी दादी नानी

कभी छलकें जैसे मम-मम पानी

कभी बन जाएँ भोले सवालों

की झड़ी

सन्नाटे में हँसी के जैसे

सूने होंठों पे ख़ुशी के जैसे

ये तो नूर है बरसे गर तेरी

क़िस्मत हो बड़ी

जैसे झील में लहराए चंदा

जैसे भीड़ में अपने का कंधा

जैसे मनमौजी नदिया झाग उड़ाती

कुछ कहे

जैसे बैठे-बैठे मीठी-सी झपकी

जैसे प्यार की धीमी-सी थपकी

जैसे कानों में सरगम

हरदम बजती ही रही

जैसे बरखा उड़ाती है बुंदिया...

खो जाएँ ये

तारे ज़मीं पर

स्रोत :
  • पुस्तक : धूप के सिक्के (पृष्ठ 127)
  • रचनाकार : प्रसून जोशी
  • प्रकाशन : रूपा पब्लिकेशंस
  • संस्करण : 2016

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