कल्याण दुर्ग में पालम्य नाम का गाँव था। वहाँ एक परिवार रहता था। उस परिवार में पति-पत्नी और उनके दो बच्चे थे। एक बेटा था और एक बेटी थी। कुछ समय बाद बेटी बड़ी हुई तो एक अच्छा वर देखकर उसके माता-पिता ने उसका विवाह कर दिया। दूल्हा कंदुर्पी का था। विवाह के बाद जब बेटी अपनी ससुराल जाने लगी तो उसकी माँ ने उसे समझाया।
‘देख बेटी, मेरे मरने के बाद तू कभी अपने मायके मत आना अन्यथा तुझे बहुत अनादर झेलना पड़ेगा।’ बेटी जिसका नाम कुंजुम था, ने माँ की बात गाँठ बाँध ली और ससुराल चली गई। दुर्योगवश कुछ समय बाद कुंजुम के माता और पिता दोनों का देहांत हो गया। इस समय तक कुंजुम दो बच्चों की माँ बन चुकी थी और अपने पति के साथ अपनी ससुराल में सुख से रह रही थी। भाग्यचक्र कुछ ऐसा घूमा कि कुंजुम के पति की मृत्यु हो गई और उसे पति की संपत्ति से बेदख़ल कर दिया गया। कुंजुम और उसके बच्चे दाने-दाने को तरसने लगे। एक दिन भूख से व्याकुल होकर बच्चों ने अपने मामा के गाँव पालम्य चलने का आग्रह किया। कुंजुम ने बच्चों को बहला-फुसला दिया। अंतत: जब स्थिति असहनीय हो गई तो कुंजुम से अपने बच्चों की दशा देखी नहीं गई और वह अपने मायके जा पहुँची।
उस समय कुंजुम का भाई घर पर नहीं था। भाभी ने कुंजुम और उसके बच्चों की दुर्दशा देखी तो नाक-भौंह चढ़ा ली।
‘मामी-मामी, बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को दो न!’ बच्चों ने कुंजुम की भाभी यानी अपनी मामी से आग्रह किया।
कुंजुम की भाभी थी दुष्ट प्रवृति की। उसने चूल्हे के पत्थर छिपा दिए।
‘तुम लोगों के आने से चूल्हे के पत्थर चूहे ले गए। अब मैं भोजन कैसे पकाऊँ? अब तो मुझे भी भूखे रहना पड़ेगा।’ कुंजुम की भाभी रोती हुई बोली।
कुंजुम समझ गई कि भाभी झूठ बोल रही है। दस-दस सेर के पत्थर चूहे कैसे ले जा सकते हैं? वह समझ गई कि भाभी उसे और उसके बच्चों को खाना नहीं देना चाहती है। कुंजम ने अपने बच्चों को साथ लिया और वापस अपने गाँव की ओर चल दी।
कुंजुम के जाने के बाद उसका भाई अपने घर लौटा। उसकी पत्नी ने तो उसे कुछ नहीं बताया लेकिन उसके पड़ेसियों ने उसे सारी घटना बता दी। कुंजुम का भाई अपनी बहन से मिलने दौड़ पड़ा। नदी के किनारे उसे कुंजुम और उसके बच्चे मिल गए। भाई ने कुंजुम को घर चलने को कहा।
‘नहीं, यह उचित नहीं होगा। भाभी ने एक बार हमें भगा दिया है अब यदि तुम हमें वापस ले जाओगे तो वह तुमसे रुष्ट हो जाएगी। मैं नहीं चाहती हूँ कि हमारे दुर्भाग्य की छाया तुम्हारे पारिवारिक जीवन पर पड़े।’ कुंजुम ने अपने भाई से कहा।
‘तो ठीक है, ये लो कुछ रुपए और बच्चों को कुछ खिला दो। मैं तुमसे कल इसी समय नदी के उस पार मिलूँगा।’ कहकर भाई लौट गया।
कुंजुम ने नदी पार करके पास के गाँव से खाने का सामान ख़रीदा और अपने बच्चों को भरपेट खिलाया।
उधर कुंजुम का भाई अपने घर लौटा तो उसने अपनी पत्नी से कुंजुम और उसके बच्चों के बारे में कोई चर्चा नहीं की। दूसरे दिन सुबह उठकर वह अपने खेत तक गया और फिर तत्काल लौट आया तथा रोने लगा।
‘खेत से जल्दी क्यों लौट आए? और यूँ रो क्यों रहे हो?’ भाई की पत्नी ने भाई से पूछा।
‘क्या बताऊँ, अनर्थ हो गया है।’ भाई रोते हुए बोला।
‘क्या हुआ? कुछ बोलो तो।’ भाई की पत्नी झुँझला कर बोली।
‘अरे न पूछो! तुम्हारे मायके में आग से तुम्हारे माता-पिता का घर जल गया है और तुम्हारी माँ भूखी बैठी है।’ भाई ने अपनी पत्नी से कहा।
‘हे भगवान!’ कहती हुई भाई की पत्नी विलाप करने लगी।
‘यह समय रोने का नहीं है। तुम ऐसा करो कि कुछ धान मुझे दे दो जिसे मैं तुम्हारी माँ तक पहुँचा दूँ। वे भूख से व्याकुल होंगी।’ भाई ने कहा।
‘तुमने ठीक कहा। मैं अभी पाँच बोरी चावल और दो बोरी धान देती हूँ। तुम इन्हें मेरे माता-पिता के पास पहुँचा दो।’ भाई की पत्नी ने कहा और झटपट पाँच बोरी चावल और दो बोरी धान एक बैलगाड़ी में लदवा दिया। इतनी ही नहीं, उसने चावल की बोरियों में चुपके से रुपए भी दबा दिए थे जो उसके माता-पिता के काम आते।
भाई ने बैलगाड़ी सम्हाली और बैलों को हाँकता हुआ चल पड़ा। उसे लग रहा था कि देखो तो उसकी पत्नी कैसी स्वार्थी है, अपने माता-पिता के भूखे रहने का समाचार भर सुनकर व्याकुल हो उठी जबकि कुंजुम और उसके बच्चों को साक्षात भूख से बिलबिलाते देखकर भी उसका हृदय नहीं पसीजा।
नदी पार करके कुंजुम का भाई, कुंजुम और उसके बच्चों के पास पहुँचा। उसने बैलगाड़ी सहित पांच बोरी चावल और दो बोरी धान कुंजुम को दे दिया। कुंजुम ने चावल की बोरियाँ खोलीं तो उनमें रुपए निकले। कुंजुम ने रुपए अपने भाई को लौटाने चाहे किंतु उसके भाई ने कुंजुम से कहा कि वह उन रुपयों से अपने लिए मकान ले ले और आराम से रहे। इसके बाद कुंजुम का भाई अपने घर लौट आया।
‘मेरे माता-पिता को चावल और धान दे दिया?’ कुंजुम के भाई की पत्नी ने पूछा।
‘अरे कहाँ? मैं तो लुट गया, बर्बाद हो गया!’ भाई ने रोते हुए कहा।
‘क्या हुआ?’ उसकी पत्नी ने घबरा कर पूछा।
‘होना क्या था? जैसे ही मैं गाड़ी लेकर नदी के पास पहुँचा वैसे ही एक चील आई और गाड़ी लेकर उड़ गई।’ भाई ने सुबकते हुए कहा।
यह सुनकर उसकी पत्नी क्रोधित हो उठी। वह समझ गई कि उसका पति झूठ बोल रहा है। उसने अपने पति को बुरा भला कहना शुरू कर दिया। देखते ही देखते वहाँ भीड़ लग गई। लोगों ने पूछा कि क्या हुआ? तो भाई की पत्नी ने कहा कि उसका पति झूठा है। वह कहता है कि गाड़ी चील ले गई। भला ऐसा भी कहीं होता है?
लोगों ने कुंजुम के भाई से पूछा कि वह झूठ क्यों बोल रहा है? ऐसा तो हो ही नहीं सकता है कि चील गाड़ी ले जाए।
‘ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? जब दस-दस सेर के चूल्हे के पत्थर चूहे ले जा सकते हैं तो गाड़ी चील क्यों नहीं ले जा सकती है?’ भाई ने लोगों से प्रश्न किया। कुंजुम के भाई की बात सुनकर सभी समझ गए कि वह अपनी पत्नी को सबक सिखाना चाहता है इसलिए ऐसा कह रहा है। उन्हें भी उसकी पत्नी के व्यवहार के बारे में पता था। पत्नी भी समझ गई कि उसके पति को कुंजुम के साथ किए गए बुरे व्यवहार का उसके पति को पता चल गया है। अत: उसने अपने पति से क्षमा माँगा और भविष्य में कभी भी किसी के साथ ऐसा बुरा व्यवहार न करने की क़सम खाई।
kalyan durg mein palamya naam ka gaanv tha. vahan ek parivar rahta tha. us parivar mein pati patni aur unke do bachche the. ek beta tha aur ek beti thi. kuch samay baad beti baDi hui to ek achchha var dekhkar uske mata pita ne uska vivah kar diya. dulha kandurpi ka tha. vivah ke baad jab beti apni sasural jane lagi to uski maan ne use samjhaya.
‘dekh beti, mere marne ke baad tu kabhi apne mayke mat aana anyatha tujhe bahut anadar jhelna paDega. ’ beti jiska naam kunjum tha, ne maan ki baat gaanth baandh li aur sasural chali gai. duryogvash kuch samay baad kunjum ke mata aur pita donon ka dehant ho gaya. is samay tak kunjum do bachchon ki maan ban chuki thi aur apne pati ke saath apni sasural mein sukh se rah rahi thi. bhagychakr kuch aisa ghuma ki kunjum ke pati ki mrityu ho gai aur use pati ki sampatti se bedkhal kar diya gaya. kunjum aur uske bachche dane dane ko tarasne lage. ek din bhookh se vyakul hokar bachchon ne apne mama ke gaanv palamya chalne ka agrah kiya. kunjum ne bachchon ko bahla phusla diya. anttah jab sthiti asahniy ho gai to kunjum se apne bachchon ki dasha dekhi nahin gai aur wo apne mayke ja pahunchi.
us samay kunjum ka bhai ghar par nahin tha. bhabhi ne kunjum aur uske bachchon ki durdasha dekhi to naak bhaunh chaDha li.
‘mami mami, bahut bhookh lagi hai. kuch khane ko do na!’ bachchon ne kunjum ki bhabhi yani apni mami se agrah kiya.
kunjum ki bhabhi thi dusht prvriti ki. usne chulhe ke patthar chhipa diye.
‘tum logon ke aane se chulhe ke patthar chuhe le ge. ab main bhojan kaise pakaun? ab to mujhe bhi bhukhe rahna paDega. ’ kunjum ki bhabhi roti hui boli.
kunjum samajh gai ki bhabhi jhooth bol rahi hai. das das ser ke patthar chuhe kaise le ja sakte hain? wo samajh gai ki bhabhi use aur uske bachchon ko khana nahin dena chahti hai. kunjam ne apne bachchon ko saath liya aur vapas apne gaanv ki or chal di.
kunjum ke jane ke baad uska bhai apne ghar lauta. uski patni ne to use kuch nahin bataya lekin uske paDesiyon ne use sari ghatna bata di. kunjum ka bhai apni bahan se milne dauD paDa. nadi ke kinare use kunjum aur uske bachche mil ge. bhai ne kunjum ko ghar chalne ko kaha.
‘nahin, ye uchit nahin hoga. bhabhi ne ek baar hamein bhaga diya hai ab yadi tum hamein vapas le jaoge to wo tumse rusht ho jayegi. main nahin chahti hoon ki hamare durbhagya ki chhaya tumhare parivarik jivan par paDe. ’ kunjum ne apne bhai se kaha.
‘to theek hai, ye lo kuch rupe aur bachchon ko kuch khila do. main tumse kal isi samay nadi ke us paar milunga. ’ kahkar bhai laut gaya.
kunjum ne nadi paar karke paas ke gaanv se khane ka saman kharida aur apne bachchon ko bharpet khilaya.
udhar kunjum ka bhai apne ghar lauta to usne apni patni se kunjum aur uske bachchon ke bare mein koi charcha nahin ki. dusre din subah uthkar wo apne khet tak gaya aur phir tatkal laut aaya tatha rone laga.
‘khet se jaldi kyon laut aaye? aur yoon ro kyon rahe ho?’ bhai ki patni ne bhai se puchha.
‘kya bataun, anarth ho gaya hai. ’ bhai rote hue bola.
‘kya hua? kuch bolo to. ’ bhai ki patni jhunjhla kar boli.
‘are na puchho! tumhare mayke mein aag se tumhare mata pita ka ghar jal gaya hai aur tumhari maan bhukhi baithi hai. ’ bhai ne apni patni se kaha.
‘he bhagvan!’ kahti hui bhai ki patni vilap karne lagi.
‘yah samay rone ka nahin hai. tum aisa karo ki kuch dhaan mujhe de do jise main tumhari maan tak pahuncha doon. ve bhookh se vyakul hongi. ’ bhai ne kaha.
‘tumne theek kaha. main abhi paanch bori chaval aur do bori dhaan deti hoon. tum inhen mere mata pita ke paas pahuncha do. ’ bhai ki patni ne kaha aur jhatpat paanch bori chaval aur do bori dhaan ek bailgaDi mein ladva diya. itni hi nahin, usne chaval ki boriyon mein chupke se rupye bhi daba diye the jo uske mata pita ke kaam aate.
bhai ne bailgaDi samhali aur bailon ko hankta hua chal paDa. use lag raha tha ki dekho to uski patni kaisi svarthi hai, apne mata pita ke bhukhe rahne ka samachar bhar sunkar vyakul ho uthi jabki kunjum aur uske bachchon ko sakshat bhookh se bilbilate dekhkar bhi uska hriday nahin pasija.
nadi paar karke kunjum ka bhai, kunjum aur uske bachchon ke paas pahuncha. usne bailgaDi sahit paanch bori chaval aur do bori dhaan kunjum ko de diya. kunjum ne chaval ki boriyan kholin to unmen rupe nikle. kunjum ne rupe apne bhai ko lautane chahe kintu uske bhai ne kunjum se kaha ki wo un rupyon se apne liye makan le le aur aram se rahe. iske baad kunjum ka bhai apne ghar laut aaya.
‘mere mata pita ko chaval aur dhaan de diya?’ kunjum ke bhai ki patni ne puchha.
‘are kahan? main to lut gaya, barbad ho gaya!’ bhai ne rote hue kaha.
‘kya hua?’ uski patni ne ghabra kar puchha.
‘hona kya tha? jaise hi main gaDi lekar nadi ke paas pahuncha vaise hi ek cheel aai aur gaDi lekar uD gai. ’ bhai ne subakte hue kaha.
ye sunkar uski patni krodhit ho uthi. wo samajh gai ki uska pati jhooth bol raha hai. usne apne pati ko bura bhala kahna shuru kar diya. dekhte hi dekhte vahan bheeD lag gai. logon ne puchha ki kya hua? to bhai ki patni ne kaha ki uska pati jhutha hai. wo kahta hai ki gaDi cheel le gai. bhala aisa bhi kahin hota hai?
logon ne kunjum ke bhai se puchha ki wo jhooth kyon bol raha hai? aisa to ho hi nahin sakta hai ki cheel gaDi le jaye.
‘aisa kyon nahin ho sakta hai? jab das das ser ke chulhe ke patthar chuhe le ja sakte hain to gaDi cheel kyon nahin le ja sakti hai?” bhai ne logon se parashn kiya. kunjum ke bhai ki baat sunkar sabhi samajh ge ki wo apni patni ko sabak sikhana chahta hai isliye aisa kah raha hai. unhen bhi uski patni ke vyvahar ke bare mein pata tha. patni bhi samajh gai ki uske pati ko kunjum ke saath kiye ge bure vyvahar ka uske pati ko pata chal gaya hai. atah usne apne pati se kshama manga aur bhavishya mein kabhi bhi kisi ke saath aisa bura vyvahar na karne ki qasam khai.
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स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 220)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।