Font by Mehr Nastaliq Web

कालू घड़ा

kalu ghaDa

एक गाँव में एक किसान रहता था। वह धनवान तो नहीं था किंतु निर्धन भी नहीं था। वह अपने खेत में मेहनत-मज़दूरी करके जितना अनाज उगाता उतने में उसका और उसकी पत्नी का आराम से गुज़ारा हो जाता। इसके बाद भी जो अनाज बचता उसे हाट में बेचकर पैसे कमा लेता, जो उसके अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के काम आते।

यूँ तो पति-पत्नी का जीवन सुखमय और शांत था किंतु उन्हें एक दुख सताता रहता। वह दुख था संतान का अभाव। उस किसान दंपत्ति की एक भी संतान नहीं थी।

एक दिन किसान दुपहर का भोजन करके अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सो रहा था तभी उसे सपने में बड़े देव दिखाई पड़े। किसान सपने में ही झट से उठ बैठा और उसने बड़े देव को प्रणाम किया।

‘तुम इतने दुखी क्यों हो, भाई?’ बड़े देव ने पूछा।

‘मेरी कोई संतान नहीं है बड़े देव!’ किसान ने उत्तर दिया। ‘हूँ! तो तुम ऐसा करो कि जिस पेड़ के नीचे तुम सोए हो उसी पेड़ के नीचे की मिट्टी से एक घड़ा बनाओ। उस घड़े को आग में पका लो और उसे अपना बेटा समझो।’ इतना कहकर बड़े देव अदृश्य हो गए।

किसान जाग गया। उसे अपना सपना बड़ा विचित्र लगा। फिर भी उसे बड़े देव पर अगाध विश्वास था। उसने अपने सपने को याद करते हुए पेड़ के नीचे की मिट्टी खोदी, उसमें पानी डाला और एक घड़ा बना लिया। इसके बाद किसान ने घड़े को गोबर के कंडों की आग में रखकर पका लिया। घड़ा पक कर पहले लाल हुआ फिर ठंडा होकर काला हो गया। किसान ने उस घड़े का नाम रखा, ‘कालू।’

किसान घड़ा लेकर अपने घर पहुँचा। उसकी पत्नी ने देखा तो कहने लगी कि ‘घर में तो कई घड़े थे फिर ये एक और क्यों ले आए?’

‘ये घड़ा मैंने अपने हाथों से बनाया है।’ किसान ने अपनी पत्नी से कहा। उसे लगा कि यदि वह अपने सपने की बात अपनी पत्नी को बताएगा तो वह उस पर हँसेगी।

‘ठीक है, फिर मैं इसमें तुम्हारे लिए पानी भरकर रख देती हूँ। तुम अपने हाथों से बनाए घड़े का पानी पिया करना।’ किसान की पत्नी ने कहा और घड़े को उठाकर आँगन में ले गई।

किसान की पत्नी ने सोचा कि पानी भरने से पहले घड़े को अच्छे से रगड़ कर धो लेना चाहिए। यह विचार करके किसान की पत्नी ने घड़े पर पानी डाला और नारियल के रेशों से रगड़ने लगी।

‘ही-ही-ही, मुझे गुदगुदी लगती है।’ अचानक कहीं से आवाज़ आई।

किसान की पत्नी ने चौंककर इधर-उधर देखा। उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसे लगा कि उसे कोई भ्रम हुआ है। उसने फिर घड़े पर नारियल के रेशे रगड़ने शुरू किए।

‘ही-ही-ही, मुझे गुदगुदी लगती है।’ फिर वही आवाज़ आई।

इस बार किसान की पत्नी के हाथ से घड़ा छूटते-छूटते बचा। वह डर गई। फिर भी साहस बटोर कर उसने ललकारा, ‘कौन है? जो कोई भी है सामने आओ।’

‘मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ।’ किसी ने कहा।

अब किसान की पत्नी हड़बड़ा कर इधर-उधर देखने लगी। उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया।

‘तुम्हारा नाम क्या है? तुम किसके बेटे हो?’ किसान की पत्नी ने हिम्मत करके पूछा।

‘मेरा नाम कालू है। तुम्हारा बेटा हूँ।’ उत्तर मिला।

‘मेरा कोई बेटा-वेटा नहीं है। किसान की पत्नी झल्लाकर बोली। उसे लगा कि कोई शैतान लड़का उससे मज़ाक कर रहा है।

‘मैं तुम्हारा ही बेटा हूँ। मेरे पिता ने मिट्टी खोदकर मुझे बनाया और फिर आग में पकाया। पहले मैं लाल हुआ फिर काला। इसीलिए मैं अपने पिता से कालू नाम पाया।’ फिर उत्तर मिला।

यह सुनकर किसान की पत्नी ने घड़े की ओर देखा। उसे लगा कि वह काला घड़ा ही उससे बातें कर रहा है। वह भागकर अपने पति के पास पहुँची और उसने बताया कि जो घड़ा वह बनाकर लाया है, वह बातें करता है। इस पर किसान ने अपनी पत्नी को बड़े देव द्वारा सपने में दर्शन देने से लेकर घड़ा पकाकर घर लाने तक का पूरा क़िस्सा कह सुनाया। अपने पति की बात सुनकर किसान की पत्नी बहुत ख़ुश हुई। वह आँगन में गई और घड़े को उठा लाई। उसने घड़े को अपने पुत्र के समान लाड़-दुलार किया और उसके सोने के लिए नर्म मखमली गद्दा बिछा दिया।

उस दिन के बाद से किसान दंपत्ति के जीवन में ख़ुशियाँ गईं। वे उस काले घड़े को अपने पुत्र की भाँति पालने लगे। किसान की पत्नी उसे कभी दूध-भात खिलाती तो कभी पानी-भात। कालू भी अपने माता-पिता से बोलता-बतियाता। धीरे-धीरे कालू बड़ा होने लगा। उसका पेट भी बड़ा हो गया। वह और अधिक गोल-मटोल दिखने लगा।

एक बार खेत में फसल पकने पर किसान और उसकी पत्नी अनाज काट रहे थे। उसी समय बादल घिर आए। तेज़ वर्षा होने की संभावना दिखाई देने लगी। किसान जल्दी-जल्दी अनाज बटोरने लगा। वह अनाज बटोरता और दौड़कर अपने घर में अनाज के कोठे में रख आता। किंतु इस प्रकार वह थोड़ा-थोड़ा अनाज पहुँचा पा रहा था। उसे लगा कि इस तरह वह पूरा अनाज सुरक्षित नहीं कर पाएगा।

‘आज अगर मेरा सचमुच का बेटा होता तो मेरा हाथ बंटाता।’ किसान दुखी होकर बड़बड़ाया।

‘आप चिंता करें पिता जी, मैं हूँ आपका बेटा। आप मेरे पेट में अनाज भर दें और मेरे मुँह को कपड़े से बाँध दें। फिर देखिए कि अनाज पहुँचाता हूँ।’ कालू घड़े ने किसान से कहा।

‘तुम ऐसा कर सकोगे?’ किसान ने अविश्वास से कहा।

‘आप मुझ पर भरोसा रखें। अनाज का एक दाना भी ख़राब नहीं होगा।’ कालू घड़े ने कहा।

किसान ने कालू की बात मानते हुए उसके पेट में अनाज भर दिया और उसके मुँह को कपड़े से अच्छी तरह बाँध दिया। इसके बाद कालू लुढ़कने लगा। वह लुढ़कता-लुढ़कता घर जा पहुँचा। किसान भी उसके पीछे-पीछे घर गया और उसने घड़े से अनाज निकालकर कोठे में रख दिया। इस प्रकार एक ही बार में सारा अनाज खेत से कोठे में पहुँच गया। कालू घड़े के इस काम से किसान और उसकी पत्नी बहुत ख़ुश हुए। वे कालू को पहले से भी अधिक पुत्रवत् प्यार करने लगे।

उसी गाँव में परसू भी रहता था। उसे दूसरों के काम में टाँग अड़ाने में बहुत आनंद आता था। वह जिसके पास जाता उसे कोई कोई चिंता का विषय सौंप आता। एक दिन परसू किसान के पास पहुँचा।

‘भैया, तुम्हारा बेटा तो अब बड़ा हो गया है।’ परसू ने किसान से कहा।

‘हाँ, परसू!’

‘तो अब इसका विवाह नहीं करोगे क्या? इसका घर बसाने का विचार नहीं है क्या?’ परसू ने किसान से पूछा जबकि परसू जानता था कि कालू तो एक घड़ा है, वह भी काला घड़ा। भला काले घड़े से कौन लड़की विवाह करती?

‘करना तो चाहता हूँ लेकिन कोई लड़की इससे विवाह नहीं करेगी।’ किसान ने दुखी होते हुए कहा। बस, परसू यही तो चाहता था कि किसान को दुख पहुँचे और वह अपने उद्देश्य में सफल हो गया। ‘बात तो तुम ठीक कहते हो भैया, मुझे तो यह सोचकर बुरा लगता है कि तुम पोते-पोतियों का सुख नहीं पा सकोगे।’ परसू ने कहा और अपने रास्ते चलता बना।

परसू तो चला गया लेकिन किसान के मन में फाँस चुभो गया। किसान को यह सोच-सोचकर दुख लगने लगा कि एक तो उसे पोते-पोतियों का सुख नहीं मिलेगा और दूसरे उसके मरने के बाद कालू की देख-भाल कौन करेगा?

इसी चिंता में किसान बीमार पड़ गया। उसने कालू से कुछ नहीं कहा किंतु कालू घड़ा समझ गया कि उसका पिता किस चिंता में बीमार पड़ गया है।

‘पिता जी आप किसी प्रकार की चिंता करें। कुछ दिन में सब कुछ ठीक हो जाएगा।’ कालू ने पिता को समझाया।

‘नहीं मैं चिंतित नहीं हूँ।’ किसान ने कालू का मन रखने को झूठ बोल दिया।

इसी तरह एक सप्ताह व्यतीत हो गया। किसान का स्वास्थ्य सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक रात किसान अपने बिस्तर पर सो रहा था कि उसे एक सपना दिखा। सपने में बड़े देव दिखाई दिए।

‘तुम चिंता में क्यों घुले जा रहे हो? तुम्हारा बेटा कालू भोर होते ही एक युवक में परिवर्तित हो जाएगा। वास्तव में वह एक युवक ही है जो पिछले जन्म में बहुत आलसी था। वह अपने माता-पिता की सेवा भी नहीं करता था। उसके माता-पिता उसके आलसी और कामचोर होने के दुख में घुल-घुल कर मर गए इसीलिए दंड के रूप में इस जन्म में उसे घड़ा बनना पड़ा। किंतु इस जन्म में उसने घड़ा होकर भी तुम दोनों की बहुत सेवा की है इसलिए मैं उसे इस जन्म में भी युवक बना दूँगा।’ यह कहकर बड़े देव अदृश्य हो गए।

बड़े देव के अदृश्य होते ही किसान की नींद खुल गई। उस समय रात्रि का अंतिम पहर था। किसान व्याकुलतापूर्वक भोर होने की प्रतीक्षा करने लगा। भोर होते ही किसान उठकर कालू के बिस्तर के पास गया। कालू चादर ओढ़ कर सो रहा था। किसान ने जैसे ही चादर उठाई वैसे ही उसे कालू के बिस्तर पर एक सुंदर युवक सोता हुआ दिखाई पड़ा। किसान समझ गया कि बड़े देव ने कालू को सुंदर युवक में परिवर्तित कर दिया है। किसान ने अपनी पत्नी को बुलाकर सारी बात बताई। उसकी पत्नी भी बहुत प्रसन्न हुई। इतने में कालू जाग गया। उसने बिस्तर से उठकर अपने माता-पिता के चरण छुए। उसके माता-पिता ने गद्गद् होकर उसे अपने गले से लगा लिया।

कालू घड़े के युवक में बदलने पर किसान ने कालू के लिए एक सुंदर-सी कन्या ढूँढ़कर कालू का विवाह कर दिया। समय के साथ कालू की संतानें हुई। इस प्रकार किसान और उसकी पत्नी अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियों के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 137)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए