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सबाई घास

sabai ghaas

उन दिनों जशपुर राज्य के एक गाँव में सात भाई रहते थे। उनकी एक बहन थी। बहन सबसे छोटी थी। उन भाई-बहनों के माता-पिता मर चुके थे इसलिए अपनी छोटी बहन की देख-भाल वे सातों भाई करते थे। वे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। सातों भाई प्रतिदिन शिकार करने जंगल चले जाते। इधर बहन घर के आस-पास उगी साग-भाजी लाकर खाना पकाती। शाम को जब सातों भाई घर लौटते तो वे अपनी बहन के हाथों बना सादा किंतु स्वादिष्ट खाना बड़े प्रेम से खाते।

एक दिन जब सातो भाई शिकार से लौटकर आने वाले थे तब बहन ने सोचा कि जल्दी से खाना पका लूँ। भाई आएँगे तो उन्हें गर्म-गर्म खाना खिलाऊँगी। यह सोचकर बहन भाजी लाई और उसे काटने बैठ गई। भाजी काटते-काटते उसका हाथ फिसल गया जिससे उसकी उँगली कट गई और उँगली से ख़ून बहने लगा। ख़ून बहने से रोकने के लिए उसने भाजी का एक पत्ता उठाया और उसी से उँगली से बहता ख़ून पोंछ दिया। भाइयों के आने का समय हो रहा था। अत: वह जल्दी-जल्दी खाना पकाने लगी। खाना पकाने की जल्दी में उसे ध्यान नहीं रहा और उसने ख़ून लगा पत्ता भी भाजी में मिलाकर पका दिया।

भाई घर आए तो उन्हें बड़ी जोर की भूख लगी थी। वे जल्दी से हाथ-पैर धोकर खाना खाने बैठ गए। बहन ने रोटी परोसी, भात परोसा और भाजी परोसी। भाइयों ने खाना शुरू किया। आज उन्हें भाजी का स्वाद और दिनों की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट लगा।

‘आज तो भाजी बड़ी स्वादिष्ट बनी है।’ एक भाई ने कहा।

‘हाँ, आज की भाजी का तो स्वाद ही निराला है।’ दूसरे भाई ने कहा।

‘आज भाजी में कुछ और डाला है क्या? आज इसमें बड़ी मिठास लग रही है।’ तीसरे भाई ने पूछा।

शेष भाई भी भाजी के स्वाद की प्रशंसा करते हुए पूछने लगे कि आज भाजी में क्या मिलाया है जो इसका स्वाद इतना बढ़िया है?

‘भैया, मैंने तो भाजी वैसी ही पकाई है जैसी रोज़ पकाती हूँ।’ बहन ने चकित होते हुए कहा।

‘नहीं, मैं नहीं मान सकता हूँ। तू ज़रूर कुछ छिपा रही है। आज कोई बात अवश्य हुई है जिससे यह भाजी इतनी स्वादिष्ट बनी है।’ सबसे बड़े भाई ने हठ करते हुए पूछा।

‘कुछ विशेष नहीं हुआ है। हाँ, इतना अवश्य हुआ कि भाजी काटते समय मेरी उँगली कट गई थी जिसे मैंने भाजी के एक पत्ते से पोंछ दिया था। मुझे लगता है कि वो पत्ता धोखे से मैंने भाजी के साथ पका दिया है।’ बहन ने हिचकते हुए बताया। उसे लगा कि यह जानकर उसके भाई उस पर नाराज़ होंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

बहन की बात सुनकर बड़ा भाई चुप हो गया। शेष भाई भी चुपचाप खाना खाते रहे।

दूसरे दिन सातों भाई प्रतिदिन की भांति जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में पहुँचकर बड़ा भाई एक स्थान पर रुक गया। उसे देखकर शेष भाई भी रुक गए।

‘भाइयों, हमारी बहन के ख़ून की कुछ बूँदें भाजी में मिल जाने से भाजी का स्वाद इतना बढ़ गया तो तनिक सोचो कि बहन का मांस कितना स्वादिष्ट होगा। मेरा विचार है कि कल हम बहन को घुमाने के बहाने अपने साथ ले आएँगे और उसे यहीं मारकर उसका मांस पका कर खाएँगे।’ बड़े भाई ने कहा।

शेष पाँच भाइयों ने बड़े भाई का समर्थन किया लेकिन सबसे छोटा भाई चुप रहा। वह अपने भाइयों की मंशा जानकर घबरा गया वह अपनी बहन को बहुत प्रेम करता था किंतु बड़े भाइयों के डर से विरोध नहीं कर सका।

दूसरे दिन भाइयों ने बहन से कहा कि वह भी उनके साथ चले।

बहना, ‘तुम रोज़ घर में अकेली रह जाती हो। तुम्हें बड़ा उदास लगता होगा। इसलिए आज हमारे साथ चलो, ज़रा घूमना हो जाएगा।’ सबसे बड़े भाई ने कहा।

‘हाँ बहना, तुम्हें रोज़ घर में अकेले हम सबके लिए खाना पकाना पड़ता है।

आज हम सब भाई वहीं जंगल में खाना पकाएँगे और तुम वहीं आराम करना। मँझला भाई बोला।

‘हाँ-हाँ बहना, ‘तुम हमारे साथ चलो। हम तुम्हें जंगल घुमाएँगे। पशु-पक्षी दिखाएँगे।’ सँझला भाई बोल उठा।

‘बहना, ‘जंगल तो शिकार और शिकारियों जगह है। संभलकर चलना, वहाँ तुम्हें दोनों देखने को मिल जाएँगे।’ सबसे छोटे भाई ने बहन को सचेत करना चाहा।

बहन भोली-भाली थी। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसके अपने सगे भाई उसके प्राण लेना चाहते हैं। वह छोटे भाई के संकेत को नहीं समझ सकी और बड़े भाइयों का आमंत्रण पाकर ख़ुश हो गई।

सातों भाई बहन को साथ लेकर जंगल में जा पहुँचे। वहाँ एक चौरस स्थान पर एक मिट्टी का एक टीला बना हुआ था।

‘बहन, ‘तुम इस टीले पर बैठ जाओ। हम खाने के लिए कंदमूल-फल लेकर आते हैं।’ बड़े भाई ने कहा।

बहन टीले पर चढ़कर बैठ गई। सातो भाई टीले से कुछ दूर झाड़ियों में छिपकर खड़े हो गए। फिर सबसे पहले सबसे बड़े भाई ने धनुष पर बाण चढ़ाया और अपनी बहन को मारने के लिए निशाना साधा। भाग्यवश तीर निशाने से चूक गया और बहन बच गई। तब दूसरे भाई ने तीर चलाया। वह भी चूक गया। फिर तीसरे भाई ने तीर चलाया। वह भी चूक गया। फिर चौथे भाई ने तीर चलाया। उसका तीर भी निशाने पर नहीं लगा। पाँचवाँ भाई भी असफल रहा। छठे भाई को आशा थी कि उसका तीर तो बहन को मार गिराएगा किंतु उसे भी निराशा हाथ लगी। इसके बाद सातवें अर्थात् सबसे छोटे भाई की बारी आई। बड़े भाई ने छोटे के हाथों धनुष-बाण थमा दिया।

‘नहीं, ‘मैं अपनी बहन पर तीर नहीं चलाऊँगा।’ छोटे भाई ने रोते हुए कहा।

‘यदि तुम तीर नहीं चलाओगे तो हम बहन को मारने से पहले तुम्हें मारकर तुम्हारा मांस खा जाएँगे।’ बड़े भाइयों ने छोटे भाई को धमकाया।

धमकी सुनकर छोटा भाई डर गया। उसने बुझे मन से धनुष उठाया, उस पर बाण साधा और इस ढंग से बाण छोड़ा कि वह बहन को लगे। मगर होनी को कौन टाल सकता है? छोटे भाई का तीर बहन के सीने में जा धँसा और बहन उसी क्षण गिरकर मर गई।

अब बड़े भाइयों ने छोटे भाई को आदेश दिया कि वह आग जलाने के लिए लकड़ियों का गट्ठा ले आए लेकिन उस गट्ठे को किसी रस्सी से बाँधे।

‘यदि तुमने गट्ठे को किसी रस्सी या कपड़े या लता से बाँधा तो हम तुम्हें मार डालेंगे।’ बड़े भाई ने धमकी दी।

छोटे भाई ने जंगल से लकड़ियाँ बटोरी और इकट्ठी कर लीं। मगर अब उसे समझ में नहीं रहा था कि अब वह लकड़ियों के गट्ठे को बिना बाँधे उठाए कैसे?

छोटा भाई यह सोचकर रोने लगा कि यदि वह गट्ठा नहीं पहुँचाएगा तो उसके भाई उसे मार डालेंगे।

जहाँ छोटा भाई रो रहा था वहीं एक धामन सर्प रहता था।

‘क्यों भाई, तुम इस तरह क्यों रो रहे हो? क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ?’ धामन सर्प ने छोटे भाई से पूछा।

छोटे भाई ने रोते-रोते पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर धामन सर्प को छोटे भाई पर बड़ी दया आई।

‘चिंता मत करो, ‘मैं तुम्हारी मदद करूँगा।’ यह कहकर धामन सर्प ने लकड़ी के गट्ठे को अपनी कुंडली से लपेट लिया। छोटे भाई ने गट्ठा उठाया और बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा। उसने जैसे ही लकड़ी के गट्ठे को ज़मीन पर रखा वैसे ही धामन सर्प चुपके से एक ओर सरक गया। बड़े भाइयों को पता ही नहीं चला।

वस्तुत: बड़े भाई अपने छोटे भाई से पीछा छुड़ाना चाहते थे और किसी किसी बहाने उसे भी मार देना चाहते थे। इसलिए बड़े भाई ने छोटे भाई को अगला आदेश दिया।

‘जाओ, इस घड़े में नदी से पानी भर लाओ। यदि तुम इस घड़े में पानी नहीं ला सके तो हम तुम्हें मार देंगे।’ बड़े भाइयों ने छोटे भाई से कहा।

बड़े भाइयों ने छोटे भाई को जो घड़ा दिया था उसकी तली में एक छेद था। छोटा घड़े में पानी भरकर घड़ा उठाता कि दूसरे ही पल घड़ा खाली होने लगता। छोटे भाई ने घड़े में कंकड़, मिट्टी डाल कर छेद बंद करना चाहा लेकिन छेद बंद नहीं हुआ। अब छोटा भाई घबरा गया कि यदि वह घड़े में पानी भरकर नहीं ले जा पाया तो उसके बड़े भाई उसके प्राण ले लेंगे। वह डर के मारे रोने लगा। उसका रोना सुनकर नदी से एक मेंढक निकल आया।

‘क्यों भैया, क्यों रो रहे हो? कुछ खो गया है क्या? या नदी में कुछ गिर गया है?’ मेंढक ने पूछा।

छोटे भाई ने रोते-रोते उसे पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर मेंढक को छोटे भाई पर दया आने लगी।

'ऐसा करो भैया, कि तुम मुझे उठाकर घड़े के अंदर छेद पर बिठा दो। मैं छेद ढाँक दूँगा और तुम घड़े में पानी भरकर पहुँचा देना।’ मेंढक ने छोटे भाई से कहा।

छोटे भाई ने वैसा ही किया और पानी से भरा घड़ा लेकर बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा।

अब बड़े भाइयों ने अगला आदेश दिया।

‘जाओ, घर से आग लेकर आओ। आग को अपनी हथेली पर रखकर लाना, किसी और चीज़ पर नहीं। यदि तुम अपनी हथेली पर आग नहीं ला सके तो हम तुम्हें मारकर खा जाएँगे।’ बड़े भाइयों ने कहा।

छोटा भाई आग लाने चल पड़ा। घर पहुँचकर उसने आग उठाई और आग को अपनी हथेली पर रखकर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में प्रवेश करते-करते उसकी हथेली जलने लगी। छोटे भाई से पीड़ा सहन नहीं हुई। आग उसकी हथेली से नीचे गिर गई। यह देखकर छोटा भाई पीड़ा और भय से रोने लगा। छोटे भाई का रुदन सुनकर सिंगबोंगा देवता प्रकट हो गए।

‘क्यों बेटा, तुम इस प्रकार क्यों रो रहे हो और ये आग तुमने अपने हाथ में क्यों उठा रखी थी?’ सिंगबोंगा देवता ने पूछा।

छोटे भाई ने रोते-रोते उसे पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर सिंगबोंगा देवता को छोटे भाई पर दया गई।

‘सुनो, ऐसा करो कि तुम मेरा यह एक हाथ अपने हाथ पर रखकर ले जाओ। मेरे हाथ पर आग रख लेना। इससे तुम्हारा हाथ भी नहीं जलेगा और तुम्हारे भाइयों को पता भी नहीं चलेगा। जब काम हो जाए तो तुम मेरा हाथ मुझे वापस कर देना।’ सिंगबोंगा देवता ने कहा।

‘ठीक है। आपकी बड़ी कृपा।’ छोटे भाई ने सिंगबोंगा देवता के हाथ पर आग रखी और उनके हाथ को अपने हाथ पर रखकर अपने बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा।

बड़े भाइयों ने आग से लकड़ियाँ सुलगाईं और उसमें बहन के मांस को पकाने लगे। पकने के बाद बड़े भाई ने मांस के सात हिस्से किए। सबसे छोटा हिस्सा सबसे छोटे भाई को दिया। इसके बाद सभी बड़े भाई बड़े चाव से स्वाद ले-लेकर अपनी बहन के मांस को खाने लगे। मगर छोटा भाई उनकी ओर पीठ करके बैठ गया। उसने अपनी बहन के अपने हिस्से के मांस को चुपचाप वहीं ज़मीन में गाड़ दिया और नदी से लाई मछलियाँ खाता हुआ ऐसा अभिनय करने लगा जैसे वह भी मांस खा रहा हो।

सातो भाई खा-पीकर घर लौट गए।

कुछ दिन बाद बड़े भाइयों ने विवाह कर लिया लेकिन छोटा भाई अविवाहित रहा। वह अब अपने भाइयों से अलग एक झोपड़ी बनाकर उसमें रहने लगा। छोटे भाई के पास एक केनदरा (बाँस की सारंगी) था। जब उसे अपनी बहन की याद आती तो वह केनदरा बजाकर अपना मन बहला लिया करता।

जिस स्थान पर छोटे भाई ने अपने हिस्से का मांस गाड़ दिया था वहाँ बाँस उग आया। एक दिन एक भिखारी बाँस काटने पहुँचा। वह भिखारी बाँस से बना केनदरा बजा-बजाकर भीख माँगा करता था। उसका केनदरा टूट गया था और उसे नया केनदरा बनाने के लिए बाँस की आवश्यकता थी। वह बाँस ढूँढ़ता हुआ जंगल में आया तभी उसे बाँस का वह पेड़ दिख गया। भिखारी ने बाँस काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी चलाई वैसे ही बाँस ने मार्मिक स्वर में कहा—

‘ना काट, ना काट, बूढ़ा

इह तो भाई का रोपल बाँस हौ...’

यह सुनकर भिखारी डर गया और बाँस काटे बिना घर लौट गया। उसे ख़ाली हाथ आया देखकर भिखारी की पत्नी बहुत नाराज़ हुई। पत्नी ने भिखारी को फिर दूसरे दिन बाँस काटने को भेजा।

भिखारी ने जैसे ही कुल्हाड़ी का वार बाँस पर करना चाहा वैसे ही बाँस बोल उठा—

‘ना काट, ना काट, बूढ़ा

इह तो भाई का रोपल बाँस हौ...’

इस पर भिखारी ने बाँस से कहा कि यदि वह बाँस नहीं काटेगा तो वह केनदरा नहीं बना सकेगा। यदि वह केनदरा नहीं बना सका तो वह बिना केनदरा बजाए भीख नहीं माँग सकेगा। यदि वह भीख नहीं माँग सका तो उसका परिवार भूखों मर जाएगा।

भिखारी की बात सुनकर बाँस चुप हो गया। भिखारी ने बाँस काटा और अपने घर ले आया। घर पर उसने बाँस से एक केनदरा बनाया। इसके बाद भिखारी केनदरा बजाते हुए भीख माँगने निकल पड़ा।

भिखारी गाँव में घूमते-घूमते जैसे ही सबसे बड़े भाई के घर के दरवाज़े पर पहुँचा वैसे ही केनदरा से स्वर निकला—

‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा

इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’

यह सुनकर भिखारी घबरा गया और वह वहाँ से आगे बढ़कर दूसरे भाई के दरवाज़े पर जा खड़ा हुआ। केनदरा से फिर वही स्वर निकला—

‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा

इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’

भिखार ने वहाँ से भी आगे बढ़ लेने में अपनी भलाई समझी और वह तीसरे भाई के दरवाज़े पर जा खड़ा हुआ। केनदरा ने फिर वही पंक्तियाँ दोहराईं—

‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा

इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’

इसी तरह भिखारी एक-एक करके छहों भाइयों के घर के दरवाज़े पर पहुँचा और केनदरा उससे यही कहता रहा कि—

‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा

इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’

अंत में भिखारी सबसे छोटे भाई के घर के दरवाज़े पर पहुँचा। भिखारी जैसे ही सबसे छोटे भाई के घर के दरवाज़े के सामने जाकर खड़ा हुआ वैसे ही केनदरा से प्रसन्नता भरा स्वर फूटा—

‘बाज रे, बाज रे, केनदरा

इह तो भैया केर घर रे, केनदरा...’

छोटे भाई ने केनदरा का स्वर सुना तो वह चकित रह गया। उसने भिखारी से कहा कि वह उसके केनदरा से अपना केनदरा बदल ले। बदले में छोटा भाई उसे पैसे भी देगा। भिखारी मान गया।

जब छोटा भाई काम पर जाता तो बहन केनदरा से निकलती और भाई के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर रख देती। छोटा भाई जब घर लौटता तो उसे यह देखकर बड़ा अचंभा होता कि उसके लिए पकवान बनाकर कौन रख देता है?

एक दिन छोटे भाई ने पकवान बनाने वाले का पता लगाने का निश्चय किया और घर से जाने का बहाना करके घर में ही छिपकर बैठ गया। बहन ने सोचा कि भाई चला गया है। वह केनदरा से निकली और पकवान बनाने लगी। यह देखकर छोटा भाई बहुत ख़ुश हुआ। पकवान बनाकर वह जैसे ही केनदरा में घुसने लगी वैसे ही छोटे भाई ने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया। बहन-भाई दोनों परस्पर गले मिलकर रोने लगे। रो-रोकर जब मन हल्का हो गया तो दोनों ने एक-दूसरे को अपना दुख-सुख सुनाया। छोटे भाई ने अपनी विवशता का हाल बताया कि किस प्रकार उसे बड़े भाइयों के कहने पर उस पर तीर चलाना पड़ा। बहन ने सुना तो भाई को गले लगाकर बोली कि वह जानती है कि इसमें छोटे भाई का कोई दोष नहीं है। इसके बाद बहन-भाई ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।

एक दिन छोटे भाई ने बहन के कहने पर अपने बड़े भाइयों को भोजन पर बुलाया। बड़े भाई प्रसन्नतापूर्वक छोटे भाई के घर पहुँचे। अब तक बड़े भाइयों को यह पता नहीं था कि उनकी बहन जीवित हो गई है। बहन सामने नहीं आई। छोटे भाई ने बड़े भाइयों के लिए तरह-तरह के पकवान परोस दिए। बड़े भाई चटखारे लेते हुए, पकवानों की प्रशंसा करते हुए खाने लगे।

‘ये पकवान तो बहुत स्वादिष्ट हैं। हमने इतने स्वादिष्ट पकवान आज तक कभी नहीं खाए।’ सबसे बड़े भाई ने कहा।

शेष भाइयों ने उसके कथन का समर्थन किया।

उसी समय बहन सामने गई।

‘भाइयों, आज आप लोग जिन पकवानों की प्रशंसा कर रहे हैं उन्हें मैंने बनाया है और इनमें तो मेरा ख़ून मिला है और मेरा मांस मिला है फिर भी आप लोगों को ये अत्यंत स्वादिष्ट लग रहे हैं।’ बहन ने बड़े भाइयों से कहा।

बड़े भाइयों ने अपनी बहन को जीवित देखा तो सकते में गए और उसकी बात सुनकर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। वे लज्जित अनुभव करते हुए धरती माँ से प्रार्थना करने लगे कि उन्होंने इतना गंभीर अपराध किया है कि अब वे किसी को मुँह दिखाने योग्य नहीं हैं अत: धरती माँ उन्हें अपने भीतर शरण दे दें।

जैसे ही बड़े भाइयों को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ वैसे ही धरती फट गई और उसमें छहों बड़े भाई समा गए। बहन ने बड़े भाइयों को धरती में समाने से रोकने का प्रयास किया। वह उन्हें पकड़े को लपकी। किंतु बड़े भाइयों के सिर के बाल ही उसके हाथ आए। बहन ने भाइयों के सिर के बालों को मैदान में बिखरा दिया। वे बाल देखते ही देखते सबाई घास के रूप में उग आए। बिरहोर आज भी सबाई घास से दैनिक उपयोग की तरह-तरह की वस्तुएँ बनाते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 19)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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