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सौदागर का बेटा और बहू

saudagar ka beta aur bahu

एक सौदागर था। उसके सात बेटे थे। सौदागर दूर-दराज़ के शहरों में जाकर व्यापार करके अपना परिवार पालता था। धीरे-धीरे उसके लड़के बड़े होने लगे। एक दिन बेटे अपने पिता से महाजन के घर से कुछ बोरी माँग लाने के लिए कहा। बूढ़ा सौदागर बोरी माँग लाया तो वह भी अपने पिता के साथ व्यापार करने निकला। इसी तरह धीरे-धीरे बाक़ी भाई भी इसी तरह व्यापार करने निकले। सिर्फ़ सबसे छोटे भाई को उम्र कम होने के कारण घर पर छोड़कर जाते।

कुछ साल बाद उन लोगों की धन-संपदा बढ़ने लगी। व्यापार का काम आराम से चलने लगा। लड़के अब ज़िम्मेदार होने लगे हैं, सोचकर बूढ़े सौदागर ने छह लड़कियाँ ढूँढ़कर छह लड़कों का विवाह करा दिया। बड़ी छह बहुएँ घर आकर साथ रहने लगीं। तब तक बूढ़े सौदागर की उम्र काफ़ी हो गई थी। इसलिए भाइयों ने तालाब से सटी हुई ज़मीन महाजन से ख़रीद लेने के लिए कहा। बूढ़े सौदागर ने वही किया। वह ख़ाली ज़मीन अपने क़ब्ज़े में आने के बाद बूढ़ा वहीं बग़ीचा बनाकर रहने लगा। अब लड़के सारे बग़ीचे से फल-फूल ले जाकर बाज़ार में बेचते।

इसी तरह दिन बीतते गए। छोटा लड़का भी तब तक बड़ा हो गया था। उसने देखा कि घर में उसकी कोई पूछ नहीं है। सारे भाइयों की शादी करवा दी गई, पर उसका विवाह अभी तक नहीं कराया गया, इस बात को लेकर अपने माता-पिता से ख़ूब झगड़ा करके रूठकर वह घर छोड़कर चला गया। मारे अभिमान के वह नाक की सीध में चलता गया। काफ़ी दूर जाने के बाद सामने एक तालाब दिखा। उसके बग़ल में धान का खेत लहलहा रहा था। अब मेंड़ पर से ही उसे चलना होगा। उसने वैसा ही किया। कुछ दूर जाने के बाद देखा सामने से एक सुंदर युवती चली रही है। अब बीच मेंड़ पर कोई भी किसी को रास्ता नहीं छोड़ पा रहा है। ऐसी हालत में सौदागर के लड़के ने पूछा, “तूम कहाँ जा रही हो?” युवती ने उत्तर दिया, “मैं वर ढूँढ़ने जा रही हूँ।” सौदागर का लड़का बोला, “मैं भी वधू ढूँढ़ने जा रहा हूँ।” उसके बाद उन दोनो ने आगे बढ़कर एक-दूसरे को पति पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

सौदागर का लड़का बोला, “अब बेकार आगे जाकर चलो वापस मेरे घर चलते हैं।” पत्नी राज़ी हो गई। सौदागर का लड़का पत्नी को सीधे घर ले जाकर तालाब के किनारे वाले मैदान में बग़ीचे की रखवाली के लिए बनवाए गए मचान पर बिठाकर, अकेले अपने घर गया। घर में उसने विवाह कर लिया है, यह बात किसी से भी नहीं बताई। मौक़ा पाकर पत्नी के लिए खाना ले जाता और रात को वहीं रहता।

एक दिन की बात है। उसने देखा कि सारे भाई व्यापार करके बहुत धन-रत्न लेकर रहे हैं। तो फिर वही बेकार घर में क्यों बैठा रहे? ऐसा मन में सोचकर एक दिन पत्नी को बिना बताए व्यापार करने के लिए भाइयों के साथ ख़ुद भी चला गया। उस रात को बग़ीचे की रखवाली करने के लिए बूढ़ा सौदागर गया। बूढ़े सौदागर को तो ठीक से कुछ दिखाई पड़ता था ही ठीक से कुछ सुनाई पड़ता था। एक हाथ में बेंट लदा (एक प्रकार का चिलम) और दूसरे हाथ में छड़ी लेकर ठकठकाते हुए झुरमट अँधेरे में बूढ़ा बग़ीचे की तरफ़ बढ़ने लगा। कश खींचने के लिए बीच-बीच में बेंट लदा को फूँक मारता तो वह दप से जलकर बुझ जाता। मचान के ऊपर बैठकर बूढ़े के इस तरह आने को छोटी बहू देख रही थी।

अँधेरा घिरने लगा था, इसलिए बूढ़े को वह पहचान नहीं पाई। उसने सोचा, “अगर मेरे पति रहे होते तो, वंशी ज़रूर बज रही होती। पर वंशी की आवाज़ की जगह ठक-ठक की आवाज़ सिर्फ़ रही है। फिर दप-दप की आग जलती क्यों भला? यह ज़रूर कोई भूत या फिर राक्षस है।” मन में ऐसा सोचकर जिस रास्ते से बूढ़ा रहा था, उस रास्ते पर नज़र गड़ाकर सतर्क वह बैठी रही। बूढ़ा जैसे ही ठीक मचान के नीचे पहुँचा, राक्षस पास गया सोचकर, सौदागर की छोटी बहू मचान के ऊपर से तालाब में कूद गई। उस तालाब में एक बहुत बड़ी मछली थी, उसने तुरंत छोटी बहू को निगल लिया।

बूढ़ा सौदागर मचान के नीचे भौंचक खड़ा रहा। “इतनी बड़ी मछली तालाब में है और मुझे पता नहीं।” ऐसा सोचकर दूसरे दिन सुबह लोग-बाग को इकट्ठा कर उसने तालाब की चौहद्दी तुड़वा दी। पानी बहने लगा। जब सिर्फ़ घुटनों तक पानी रह गया, तब लोगों ने देखा कि बहुत विराट काया लेकर मछली पानी में खेल रही है। उसे पकड़ने के लिए चारों तरफ़ से जाल लेकर जैसे ही लोग तालाब में उतरे, मछली उसी कम पानी में रहकर गाने लगी,

“मत मारो मुझे बनिहार, हलवाहा

तुम्हारे छोटे भाई की पत्नी हूँ मैं

स्वामी मेरे हुए निष्ठुर ऐसे कि

कहा ना पूछा चले गए करने व्यापार रे

ससुर बूढ़े ठहरे अमीर बड़े

भरे तालाब की चौहद्दी दिया गिरा रे

सारी मछली दिया बाँट

मुझे लिया रख रे।”

मछली के इस तरह करुणा भरे गीत को सुनकर फिर किसी ने भी मछली को नहीं पकड़ा। तालाब से बाहर निकलकर बूढ़े सौदागर को सारी बातें कह सुनाई। बूढ़ा ग़ुस्से से भरकर घर से छह बहुओं को मछली पकड़ने के लिए बुला लाया। मछली को पकड़ने जब बहुएँ तालाब में उतरीं तो मछली ने पहले की तरह जेठानियों को संबोधित करते हुए गाना गाया। जेठानियों को बात समझ में गई तो हम नहीं पकड़ सकते कहकर चली गईं। उसके बाद सौदागर बूढ़े ने अपनी पत्नी को मछली पकड़ने भेजा। पर बूढ़ी भी मछली का गीत सुनकर उसे पकड़कर वापस चलीं आई। आख़िर में ख़ूब ग़ुस्से से भरकर बूढ़ा ख़ुद मछली पकड़ने तालाब के अंदर घुसा। मछली ने ससुर को संबोधित करते हुए वही गीत गाया, पर किसी भी तरफ़ ध्यान देते हुए बड़ी मुश्किल से मछली को मारकर उसे घसीटते हुए घर ले आया और बहुओं को उसे काटकर पकाने का आदेश दिया।

बहुएँ परहसुल लेकर मछली को काटने गईं, तो मरी मछली फिर गाने लगी। इसलिए उन्होंने उस मछली को काटकर वैसे ही छोड़कर चली गईं। बूढ़े सौदागर ने तब जाकर बूढ़ी से मछली को काटने के लिए कहा। बूढ़ी ने जैसे ही मछली को काटना चाहा, तो मछली ने पहले की तरह गीत गाया। बूढ़ी गीत सुनकर, “मैं यह काम नहीं कर पाऊँगी” कहकर वहाँ से परे हट गई। बूढ़ा ग़ुस्से से तमतमाकर मछली को काटने के लिए बढ़ा। मछली ने गीत गाया तो भी उसकी तरफ़ कान धरकर, उसे काटकर साफ़ करके पकाया और मन भरकर खाया और खाने के बाद मछली का सेहरा, काँटे सब इकट्ठा करके एक जगह फेंक दिए।

उसी समय सातों भाई व्यापार कर घर वापस लौट आए। बड़े छह भाइयों को उनकी पत्नियाँ स्वागत करके ले गईं, तो छोटे भाई ने देखा उसकी पत्नी कहीं नज़र नहीं रही है। मन बेचैन होने लगा, तो तालाब के पास बग़ीचे में जाकर देखा। वहाँ भी उसकी पत्नी नहीं थी। पर तालाब की चौहददी काटी गई है और मछली पकड़ी गई है। यह सब देखकर मन-ही-मन रोते हुए जाने क्या-क्या सोच बैठा। आख़िरी में बनिहारों से और अपनी भाभियों से सब बातें सुनीं।

इस हालत में अब इस घर में नहीं रहा जाएगा, ऐसा सोचकर बूढ़े ने मछली खाकर जो काँटा, सेहरा, डेना एक जगह रखा था, सबको लेकर घर से निकल पड़ा। चलते-चलते बारह कोस जाने के बाद एक बीहड़ जंगल आया। सौदागर का छोटा लड़का उस जंगल के अंदर जाकर एक सुनसान जगह पर एक पेड़ के नीचे बैठकर विकल होकर रोने लगा।

उस समय उस जंगल में शिव-पार्वती चौसर खेलने में व्यस्त थे। पार्वती का दाँव जब था, तभी शिव जी को सौदागर के लड़के का करुण रुदन सुनाई पड़ा। तुरंत पार्वती को खेल बंद करने के लिए कहकर, सौदागर के लड़के के पास जाने के लिए उठे। शिव जी हाथ में कुल्हाड़ी और पार्वती सिर पर टोकरी रखकर छद्मवेश में उसके पास पहुँचे और उसके रोने का कारण पूछा। सौदागर के लड़के ने जब शुरू से आख़िर तक सारी बातें बता दीं, तो शिव पार्वती के मन में दया उपजी। सौदागर के लड़के को आँखें बंद करने के लिए कहकर, रखे हुए मछली के काँटों के ऊपर जीवन्यास पानी छींट देने पर वह एक सुंदर स्त्री में परिवर्तित हो गई। क्या वे दोनों पति-पत्नी हैं, पूछने पर दोनों ने हामी भरी, तब दूर स्थित एक मंदिर की तरफ़ इशारा करते हुए वहाँ सेवक के रूप में रहने का आदेश देकर छद्मवेशी शिव-पार्वती अदृश्य हो गए।

बहुत दिनों बाद पत्नी को पास पाकर सौदागर का लड़का बहुत ख़ुश हुआ। दोनों उसी दिन से कहीं और जाकर उसी मंदिर की तरफ़ गए और वहीं रहने लगे।

इसी तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन उस राज्य के राजा, मंत्री, सेनापति, सौदागर, नगर रक्षकों सभी को लेकर सदलबल शिकार करने के लिए उस जंगल में पहुँचे। शिकार करते-करते राजा को बहुत तेज़ प्यास लगी। पास में कहीं कोई झील-वील नहीं थी। राजा के सेवक ने एक पेड़ पर चढ़कर देखा कि बहुत दूर एक सफ़ेद बगुला-सा बैठा हुआ दिखा। शायद वह किसी का घर हो सोचकर राजा ने अपने दूत को वहाँ भेजा। दूत आज्ञा पाते ही घोड़े पर चढ़कर वहाँ हाज़िर हो गया। वहाँ पहुँचकर देखा कि कुछ और नहीं वह एक छोटा-सा मंदिर है। मंदिर के मंडप में एक बहुत ख़ूबसूरत युवती को देखकर उसका सिर चकरा गया। जब होश आया तो उठकर पास के झरने से कलशी भर पानी लेकर वह वापस राजा के पास पहुँचा।

राजा को पीने के लिए पानी देने के बाद वहाँ एक ख़ूबसूरत युवती के होने की बात बताई। राजा होशियारी से उसे राजमहल ले जाने का निर्णय लेकर उस दिन सैन्य-सामंत के साथ राजधानी लौट गए। मंत्री को आदेश देकर एक घी की मिठाई और एक ज़हर की मिठाई बनवाई। मिठाई बन जाने के बाद बूढ़ी मालिन को बुलाकर अपना मनोभाव उसे बताते हुए जंगल के अंदर स्थित मंदिर में रहने वाले युवक युवती को वह मिठाई दे आने का आदेश दिया। राजा का निर्देश था कि घी की मिठाई युवती को और ज़हर वाली मिठाई युवक को दे।

मालिन उसी समय साज-शृंगार करके निकल पड़ी। उसके पीछे-पीछे कुछ सैन्य-सामंत, मंत्री और सेनापति छुपते हुए चलते रहे। बूढ़ी मालिन ने मंदिर में पहुँचकर दोनों को नाती-नातिन बनाकर उनसे प्यार मुहब्बत प्रकट करते हुए राजा के कहे अनुसार मिठाई निकालकर उन्हें खाने के लिए दी। दोनों आनंद के साथ मिठाई खाने लगे।

कुछ देर बाद पत्नी से “मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है” कहकर युवक मंदिर के मंडप पर कोमल पत्ते बिछाकर लेट गया। उसी मौक़े पर वहाँ छुपे बैठे राजकर्मचारियों ने युवती को ज़ोर-ज़बरदस्ती पकड़ने की कोशिश शुरू कर दी। युवती ने बहुत सतर्कता से यह बात फूल की एक पंखुड़ी पर लिखकर सौदागर के लड़के के सिर के नीचे दबाकर रख दी। राज सैनिक जब उसे पकड़कर ले जाने लगे तो मन-ही-मन पति को याद करके वह गीत गाने लगी।

“उठो, उठो स्वामी, बड़े नींद में हैं विभोर

तुम्हारे जंगल में बज रहा ढोल।”

राजा ने उससे विवाह करके उसे पटरानी बनाने की बात कही, तो उसने कहा कि उसने एक व्रत रखा है, और जब तक वह पूरा नहीं होगा, वह विवाह नहीं करेगी। इसलिए राजा ने राजमहल के बीचोंबीच स्थित मंदिर में उसे रखा।

उधर कुछ समय बीत जाने के बाद, ज़हर का असर जब कुछ कम हुआ तो युवक ने उठकर देखा, तो पत्नी वहाँ नहीं थी। एक चिट्ठी बस वहाँ पड़ी है। उसे पढ़कर सारी बातें वह समझ गया। तब वह एक योगी वेश में राजमहल की तरफ़ चला। सौदागर का बेटा योगी बनकर रास्ते में चलते हुए पत्नी को इंगित करते हुए गीत गा रहा था,

“आचमन के लोटे का तुंबा बनाया

खाने की थाल को भीख का कटोरा बनाया

तेरे लिए हे चंपा गोरी रे

योगी का वेश धरा मैंने।

राजमहल के द्वार पर पहुँचकर यह गीत बार-बार दुहराने लगा। मंदिर के अंदर उसकी पत्नी यह गीत सुनकर जान गई कि ,यह योगी ही मेरे पति हैं। राजा भिखारी समझकर मामूली-सी भीख देकर उसे विदा कर देना चाहते थे। पर वह तो भीख लेता ही वह जगह छोड़कर जाता। दिन-रात वहीं रहकर इस तरह उसका गीत सुनते-सुनते राजा ने झल्लाकर एक दिन भूखे बाघ को उसके पास छोड़ देने का आदेश दिया। बाघ को लेकर राजकर्मचारियों को जाते देखकर मंदिर के भीतर से सौदागर की पत्नी गाने लगी,

“स्वामी सामने की तरफ़ नज़र रखना

पीछे की तरफ़ नज़र रखना

छोड़ रहे हैं भूखे बाघ को

स्वामी सामने की तरफ़ नज़र रखना।”

पत्नी का यह गीत सुनकर योगी वेशधारी सौदागर का लड़का चौकन्ना हो गया। बाघ पास आया तो उसे इतने ज़ोर से लाठी मारी कि, बहुत दिन से भूखा रहने वाला वह बाघ वहीं मर गया।

यह बात सुनकर सभी अचंभित हो गए। राजा ने तब दंतहाथी को उसके ऊपर छोड़ने का आदेश दिया। महंत जब हाथी को लेकर योगी को मारने के लिए निकला तो मंदिर के भीतर से योगी की पत्नी गीत गाने लगी। गीत सुनने के बाद हाथी योगी को क्या मारता पीछे हट गया।

राजा फिर भी चुप नहीं रहे। उन्होंने सपेरे को नाग-साँप उसके ऊपर छोड़ने का आदेश दिया। साँप को जाते देखकर पहले की तरह पत्नी ने गीत गाया। पर इस बार योगी जान नहीं पाया और साँप आकर उसे डस गया।

पति का यह हाल देखकर मंदिर के भीतर पत्नी ख़ूब रोई और राजा से अनुरोध किया कि शव को ऐसे ही कहीं फेंककर उसके सामने ही श्मशान में जलाएँ। राजा तो उसके रूप पर फ़िदा हो चुके थे। तुरंत उसकी बात पर हामी भरते हुए चिताग्नि का बंदोबस्त किया। शव को श्मशान ले जाया गया।

श्मशान जाते समय युवक की पत्नी अपने साथ दो कबूतर ले गई थी। चिताग्नि धू-धू करके जलने लगी तो युवती ने दोनों कबूतरों को उड़ा दिया। राजा के आदेशानुसार सभी कबूतरों को पकड़ने के लिए इधर-उधर भागने-दौड़ने लगे तो मौक़ा पाकर पत्नी ने पति की चिताग्नि में कूदकर प्राण दे दिए। राजा यह देखकर ख़ूब मर्माहत हुए और उन्होंने भी उसके बिना जीने की इच्छा ना करते हुए चिताग्नि में कूदकर प्राण दे दिए।

राजा का यह हाल देखकर सभी ने राजमहल लौटकर सारी बातें बताईं। पर राजा के साथ उनके द्वारा पाले गए तोता-मैना वहाँ से लौटकर श्मशान में ही रहकर रोने लगे।

उस रात को शिव-पार्वती फिर से चौसर खेल रहे थे, तभी उन्हें तोता-मैना के रोने की आवाज़ सुनाई दी। तब शिव-पार्वती ने श्मशान पहुँचकर सारी बातें पूछीं। तोता-मैना के सब बातें सच-सच बता देने पर शिव-पार्वती ने जीवन्यास मंत्र के जरिए सबकी अस्थि अलग-अलग कर उन पर पानी के छींटे डालकर सौदागर के लड़के और उसकी बहू को इंसान का रूप दिया और राजा को कुत्ते का रूप दिया। उसी दिन से सौदागर के बेटा-बहू वहीं घर-द्वार बसाकर सुख-चैन से जीवन बिताने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 120)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

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