एक राजा था जिसकी पाँच रानियाँ थीं। पाँच रानियाँ होने पर भी उसे संतान सुख नहीं मिला था। इसी बात को लेकर वह बहुत दुखी रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल गया। वहाँ उसे एक साधू मिला। राजा ने साधू को अपना दुख बताया।
‘हे राजन्! तुम अपनी ढाल और तलवार लेकर आम के उपवन में जाओ। वहाँ पहुँचकर अपनी तलवार से आम तोड़कर उन्हें अपनी ढाल में रोक लेना। जितने आम तुम्हारी ढाल में आ जाएँगें उन्हें तुम अपने महल में ले जाकर अपनी रानियों को खिला देना। इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।’
साधू के कथनानुसार राजा अपने आम के उपवन में गया वहाँ उसने तलवार से आप तोड़े और उन्हें अपनी ढाल में रोकने का प्रयास किया। ढाल में एक आम रुका शेष नीचे गिर गए। राजा उस एक आम को लेकर अपने महल में पहुँचा। उसने अपनी बड़ी रानी को बुलाया।
'ये एक आम है। इसे तुम पाँचों रानियाँ आपस में बाँटकर खालो। इसके प्रभाव से तुम लोग माँ बन सकोगी।’ राजा ने बड़ी रानी को आम देते हुए कहा।
बड़ी रानी आम लेकर शेष रानियों के पास पहुँची। उस समय सबसे छोटी रानी किसी दुखी औरत की मदद करने गई थी। बड़ी रानी सहित तीनों रानियों ने सोचा कि छोटी रानी के भाग्य में ये आम खाना लिखा होता तो इस समय वह यहीं होती। अत: हमें उसकी प्रतीक्षा करने के बदले इस आम को आपस में बाँटकर खा लेना चाहिए।
चारों रानियों ने यही किया। आम को छीला, उसके चार टुकड़े किए और एक-एक टुकड़ा खा लिया।
थोड़ी देर बाद छोटी रानी लौटी। उसने आम का छिलका देखा तो शेष रानियों से अपने हिस्से के आम के बारे में पूछा। छोटी रानी को राजा ने आम के बारे में बता दिया था।
‘एक ही आम था और हमसे रहा नहीं गया तो हमने मिलकर खा लिया।’ बड़ी रानी ने भोलेपन से कहा। जबकि मन ही मन वह यह सोचकर प्रसन्न थी कि अब छोटी रानी राज्य को उत्तराधिकारी नहीं दे सकेगी।
बड़ी रानी की बात सुनकर छोटी रानी बहुत दुखी हुई। उसने कहा तो नहीं कुछ लेकिन आम के छिलके उठाए और उन छिलकों को खा लिया।
कुछ दिन बाद छोटी रानी गर्भवती हो गई। अन्य रानियों को यह देखकर आश्चर्य हुआ। उन्होंने आम खाया था जबकि छोटी रानी ने आम का छिलका खाया था। राजा को छोटी रानी के गर्भवती होने का समाचार मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शेष रानियों को आदेश दिया कि वे लोग छोटी रानी का विशेष ध्यान रखें। राजा का यह आदेश चारों रानियों को बड़ा बुरा लगा।
‘क्या हम छोटी रानी की नौकरानियाँ हैं जो उसका ध्यान रखें?’ मँझली रानी बड़बड़ाते हुए बोली।
‘ध्यान तो रखना पड़ेगा अन्यथा राजा रुष्ट हो जाएँगे। बड़ी रानी ने समझाया।
जिस दिन छोटी रानी को प्रसव पीड़ा आरंभ हुई उस दिन राजा शिकार खेलने गया था। लेकिन उसने कह रखा था कि जैसे ही संतान का जन्म हो वैसे ही उसे सूचित किया जाए। उचित समय पर छोटी रानी ने दो संतांनों को जन्म दिया। एक लड़का था और एक लड़की।
यह देखकर चारो रानियाँ चिंतित हो उठीं। उन्हें लगा कि अब राजा छोटी रानी को अधिक महत्व देगा और छोटी रानी का पुत्र राजा का उत्तराधिकारी बनेगा। अत: चारों रानियों ने अपनी विश्वस्त दासी के हाथों छोटी रानी के नवजात पुत्र और पुत्री को जंगल में फेंक आने को कहा और उनके स्थान पर एक झाड़ू और एक टोकरी रख दी। इसके बाद चारों रानियों ने राजा के पास संदेश भेजा कि छोटी रानी ने जुड़वाँ संतानों को जन्म दे दिया है।
संदेश पाकर राजा शिकार का कार्यक्रम बीच में ही समाप्त करके प्रसन्नतापूर्वक महल लौट आया। महल में पहुँचकर उसने छोटी रानी से जन्मी अपनी संतानों को देखने की इच्छा प्रकट की। बड़ी रानी ने झाड़ू और टोकरी सामने रखते हुए कहा, ‘छोटी रानी ने इन्हें पैदा किया है। मुझे तो छोटी रानी कोई जादूगरनी जान पड़ती है। तभी तो हम लोगों से पहले यह गर्भवती हो गई और इसने ऐसी संतानें जन्मी हैं।’
झाड़ू और टोकरी देखकर राजा क्रोधित हो उठा। उसे भी लगा कि रानी मानवी नहीं है अन्यथा बच्चों की जगह झाड़ू-टोकरी पैदा नहीं करती। उसने छोटी रानी को महल से बाहर निकाल दिया। छोटी रानी महल से निकलकर दुखी होकर भटकती हुई कहीं चली गई।
उधर चारों रानियों की विश्वस्त दासी ने दोनों शिशुओं को जंगल में एक गड्ढे में फेंक दिया और वापस महल चली गई। उसका विचार था कि जंगल में कोई न कोई जंगली जानवर उन्हें खा जाएगा, नहीं तो दोनों शिशु भूख-प्यास से मर जाएँगे।
संयोगवश दासी के जाते ही एक कुम्हार और कुम्हारिन वहाँ आ पहुँचे। वे वहाँ प्रतिदिन मिट्टी खोदने आते थे। वह गड्ढा उन्हीं का बनाया हुआ था जिसमें दासी उन शिशुओं को फेंक गई थी। कुम्हार दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी। उन लोगों ने शिशुओं को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। दोनों शिशुओं को कुम्हारिन ने अपनी गोद में उठा लिया और दुलार करने लगी।
कुम्हार और कुम्हारिन के लाड़-प्यार में पलते हुए दोनों भाई-बहन बड़े होने लगे। एक दिन भाई-बहन खेलते-खेलते महल की ओर निकल गए। बड़ी रानी ने उन्हें अपनी अटारी से देखा। दोनों की आयु और रंग रूप देखकर रानी को संदेह हुआ कि कहीं ये छोटी रानी की संतान तो नहीं? बड़ी रानी के मन में खोट तो था ही। उसने अपनी उसी विश्वस्त दासी को बुलाया और उसके हाथों विषैले पुए भेजते हुए कह कि ‘जाओ, उन दोनों बच्चों को खिला दो।’
दासी ने विषैले पुए उन दोनों को खिला दिया। दोनों बने पुए खाकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौटे। वे अभी अपनी कुम्हारिन माँ को पुओं के बारे में बता ही रहे थे कि विष का प्रभाव होने लगा और एक-एक कर भाई-बहन दोनों मर गए। कुम्हारिन ने जब यह देखा तो वह विलाप करने लगी। कुम्हारिन का विलाप सुनकर कुम्हार दौड़ा-दौड़ा आया। उसने भाई-बहन को मरा हुआ पाया तो वह भी रोने लगा। फिर जैसे-तैसे अपने मन को समझाकर उसने दोनों बच्चों के शवों को उठाया और जंगल में एक स्थान पर दफ़्ना दिया।
जिस स्थान पर भाई-बहन को दफ़्नाया था उस स्थान पर कुछ दिन बाद एक केले का पेड़ उगा और एक गेंदे का पौधा उगा। गेंदे के पौधे में एक सुंदर फूल खिला। उस फूल की सुगंध दूर-दूर तक फैलने लगी। सुगंध से आकर्षित होकर कुछ चरवाहे उधर चले आए। उन्होंने गेंदे के फूल की सुंदरता देखी तो उसे तोड़ लेना चाहा। जैसे ही एक चरवाहे ने फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया वैसे ही गेंदे के फूल ने केले के पेड़ से पूछा, ‘भैया-भैया, ये चरवाहा मुझे तोड़ लेना चाहता है, मैं क्या करूँ?’
‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा।
फिर क्या था, गेंदे का पौधा पलक झपकते इतना ऊँचा हो गया कि उसका फूल चरवाहे की पहुँच से दूर हो गया। यह देखकर सभी चरवाहे डर गए और वहाँ से भाग खड़े हुए। कुछ दूर जाने पर चरवाहों को दो सिपाही मिले।
‘कहाँ भाग रहे हो? किसी का कोई सामान तो नहीं चुराया है?’ सिपाहियों ने चरवाहों को डाँटते हुए पूछा।
इस पर चरवाहों ने सिपाहियों को चमत्कारी गेंदे के बारे में बताया। सिपाहियों को पहले तो विश्वास नहीं हुआ फिर उन्होंने स्वयं जाकर देखने का निश्चय किया।
गेंदे का फूल उस समय तक वापस अपने स्थान पर आ चुका था। एक सिपाही ने हाथ बढ़ाकर गेंदे का फूल तोड़ना चाहा।
‘भैया-भैया, ये सिपाही मुझे तोड़ लेना चाहता है, मैं क्या करूँ?’
‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा। गेंदे का पौधा फिर ऊँचा हो गया और फूल सिपाही की पहुँच से बाहर हो गया।
सिपाही डर गए। वे भाग कर राजा के पास पहुँचे। राजा उस समय अपनी चारों रानियों के साथ बैठा बातें कर रहा था। सिपाहियों ने राजा को जादुई गेंदे के बारे में बताया।
‘हम स्वयं जाकर देखेंगे उसे!’ राजा ने कहा। रानियाँ भी उत्सुकतावश साथ हो लीं।
वहाँ पहुँचकर राजा और चारों रानियों ने देखा कि गेंदे का फूल सचमुच बहुत सुंदर था।
‘पहले मैं तोडूँगी।’ बड़ी रानी ने हठ किया।
‘ठीक है, पहले तुम तोड़ लो!’ राजा ने अनुमति दे दी।
रानी ने फूल तोड़ने को हाथ बढ़ाया कि वही घटना फिर घटी।
‘भैया-भैया, ये रानी मुझे तोड़ लेना चाहती है, मैं क्या करूँ?’ गेंदे ने केले से पूछा।
‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जा!’ केले ने गेंदे से कहा। गेंदे का पौधा फिर ऊँचा हो गया और फूल रानी की पहुँच से बाहर हो गया।
यह देखकर बड़ी रानी डर गई। इसके बाद एक-एक करके शेष तीनों रानियों ने फूल तोड़ने का प्रयास किया लेकिन फूल उनके हाथ नहीं आया। इसके बाद राजा ने फूल तोड़ना चाहा किंतु उसे भी असफलता हाथ लगी। किंतु राजा को केले के पेड़ और गेंदे के फूल के संवाद सुनकर ऐसा लगा कि कहीं ये छोटी रानी की संताने तो नहीं हैं? साधू के कथनानुसार छोटी रानी तो गर्भवती हुई लेकिन शेष रानियों ने अब तक कोई संतान नहीं जनीं, कहीं रानियों ने झूठ तो नहीं बोल दिया था? संदेह होते ही राजा ने अपने सेवकों को चारों ओर दौड़ा दिया कि वे कहीं से भी छोटी रानी को ढूँढ़कर लाएँ।
दूसरे दिन सेवकों ने छोटी रानी को ढूँढ़ निकाला। वह दुर्दिन में रह रही थी। उसके कपड़े फट चले थे और बाल उलझे हुए थे। अपनी संतानों को गँवाकर उसकी दशा पागलों जैसी हो गई थी। राजा ने छोटी रानी को इस दशा में देखा तो उसे बहुत दुख हुआ। उसने छोटी रानी को नहलवाया-धुलवाया और अच्छे कपड़े-गहने पहनवाए। इसके बाद वह छोटी रानी सहित गेंदे के फूल के पास पहुँचा। अन्य रानियाँ भी साथ थीं।
राजा के कहने पर छोटी रानी ने गेंदे के फूल को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया।
‘भैया-भैया, माँ मुझे तोड़ लेना चाहती है, मैं क्या करूँ?’
‘करना क्या है? स्वर्ग की सीढ़ी से उतर जा और माँ की गोद में चली जा!’ केले ने गेंदे से कहा। देखते ही देखते गेंदे का पौघा बहुत नीचा हो गया और उससे फूल टूटकर छोटी रानी के आँचल में आ गिरा। अगले ही पल केले का पेड़ बालक में और गेंदे का पौधा बालिका में परिवर्तित हो गया और बालक-बालिक ‘माँ-माँ’ कहते हुए छोटी रानी के गले लग गए।
यह दृश्य देखकर राजा सारी बात समझ गया और रानियाँ डर गईं। राजा ने रानियों को फटकार लगाई और उन्हें देश निकाला दे दिया। इसके बाद राजा छोटी रानी और अपने बच्चों को लेकर महल लौट आया। बच्चों के कहने पर कुम्हार और कुम्हारिन को भी महल में बुला लिया गया। सभी लोग हँसी-ख़ुशी से रहने लगे।
ek raja tha jiski paanch raniyan theen. paanch raniyan hone par bhi use santan sukh nahin mila tha. isi baat ko lekar wo bahut dukhi rahta tha. ek din wo shikar khelne jangal gaya. vahan use ek sadhu mila. raja ne sadhu ko apna dukh bataya.
‘he rajan! tum apni Dhaal aur talvar lekar aam ke upvan mein jao. vahan pahunchakar apni talvar se aam toD kar unhen apni Dhaal mein rok lena. jitne aam tumhari Dhaal mein aa jayengen unhen tum apne mahl mein le jakar apni raniyon ko khila dena. isse tumhein santan ki prapti hogi. ’
sadhu ke kathnanusar raja apne aam ke upvan mein gaya vahan usne talvar se aap toDe aur unhen apni Dhaal mein rokne ka prayas kiya. Dhaal mein ek aam ruka shesh niche gir ge. raja us ek aam ko lekar apne mahl mein pahuncha. usne apni baDi rani ko bulaya.
ye ek aam hai. ise tum panchon raniyan aapas mein baant kar khalo. iske prabhav se tum log maan ban sakogi. ’ raja ne baDi rani ko aam dete hue kaha.
baDi rani aam lekar shesh raniyon ke paas pahunchi. us samay sabse chhoti rani kisi dukhi aurat ki madad karne gai thi. baDi rani sahit tinon raniyon ne socha ki chhoti rani ke bhagya mein ye aam khana likha hota to is samay wo yahin hoti. atah hamein uski prtiksha karne ke badle is aam ko aapas mein baant kar kha lena chahiye.
charon raniyon ne yahi kiya. aam ko chhila, uske chaar tukDe kiye aur ek ek tukDa kha liya.
thoDi der baad chhoti rani lauti. usne aam ka chhilka dekha to shesh raniyon se apne hisse ke aam ke bare mein puchha. chhoti rani ko raja ne aam ke bare mein bata diya tha.
‘ek hi aam tha aur hamse raha nahin gaya to hamne milkar kha liya. ’ baDi rani ne bholepan se kaha. jabki man hi man wo ye sochkar prasann thi ki ab chhoti rani rajya ko uttaradhikari nahin de sakegi.
baDi rani ki baat sunkar chhoti rani bahut dukhi hui. usne kaha to nahin kuch lekin aam ke chhilke uthaye aur un chhilkon ko kha liya.
kuch din baad chhoti rani garbhavti ho gai. anya raniyon ko ye dekhkar ashcharya hua. unhonne aam khaya tha jabki chhoti rani ne aam ka chhilka khaya tha. raja ko chhoti rani ke garbhavti hone ka samachar mila to wo bahut prasann hua. usne shesh raniyon ko adesh diya ki ve log chhoti rani ka vishesh dhyaan rakhen. raja ka ye adesh charon raniyon ko baDa bura laga.
‘kya hum chhoti rani ki naukraniyan hain jo uska dhyaan rakhen?’ manjhli rani baDbaDate hue boli.
‘dhyaan to rakhna paDega anyatha raja rusht ho jayenge. baDi rani ne samjhaya.
jis din chhoti rani ko prasav piDa arambh hui us din raja shikar khelne gaya tha. lekin usne kah rakha tha ki jaise hi santan ka janm ho vaise hi use suchit kiya jaye. uchit samay par chhoti rani ne do santannon ko janm diya. ek laDka tha aur ek laDki.
ye dekhkar charo raniyan chintit ho uthin. unhen laga ki ab raja chhoti rani ko adhik mahatv dega aur chhoti rani ka putr raja ka uttaradhikari banega. atah charon raniyon ne apni vishvast dasi ke hathon chhoti rani ke navjat putr aur putri ko jangal mein phenk aane ko kaha aur unke sthaan par ek jhaDu aur ek tokari rakh di. iske baad charon raniyon ne raja ke paas sandesh bheja ki chhoti rani ne juDvan santanon ko janm de diya hai.
sandesh pakar raja shikar ka karyakram beech mein hi samapt karke prasannatapurvak mahl laut aaya. mahl mein pahunchakar usne chhoti rani se janmi apni santanon ko dekhne ki ichchha prakat ki. baDi rani ne jhaDu aur tokari samne rakhte hue kaha, ‘chhoti rani ne inhen paida kiya hai. mujhe to chhoti rani koi jadugarni jaan paDti hai. tabhi to hum logon se pahle ye garbhavti ho gai aur isne aisi santanen janmi hain. ’
jhaDu aur tokari dekhkar raja krodhit ho utha. use bhi laga ki rani manavi nahin hai anyatha bachchon ki jagah jhaDu tokari paida nahin karti. usne chhoti rani ko mahl se bahar nikal diya. chhoti rani mahl se nikal kar dukhi hokar bhatakti hui kahin chali gai.
udhar charon raniyon ki vishvast dasi ne donon shishuon ko jangal mein ek gaDDhe mein phenk diya aur vapas mahl chali gai. uska vichar tha ki jangal mein koi na koi jangli janvar unhen kha jayega, nahin to donon shishu bhookh pyaas se mar jayenge.
sanyogvash dasi ke jate hi ek kumharan aur kumharin vahan aa pahunche. ve vahan pratidin mitti khodne aate the. wo gaDDha unhin ka banaya hua tha jismen dasi un shishuon ko phenk gai thi. kumhar dampatti ki koi santan nahin thi. un logon ne shishuon ko dekha to bahut prasann hue. donon shishuon ko kumharin ne apni god mein utha liya aur dular karne lagi.
kumhar aur kumharin ke laaD pyaar mein palte hue donon bhai bahan baDe hone lage. ek din bhai bahan khelte khelte mahl ki or nikal ge. baDi rani ne unhen apni atari se dekha. donon ki aayu aur rang roop dekhkar rani ko sandeh hua ki kahin ye chhoti rani ki santan to nahin? baDi rani ke man mein khot to tha hi. usne apni usi vishvast dasi ko bulaya aur uske hathon vishaile pue bhejte hue kah ki ‘jao, un donon bachchon ko khila do. ’
dasi ne vishaile pue un donon ko khila diya. donon bane pue khakar khushi khushi apne ghar laute. ve abhi apni kumharin maan ko puon ke bare mein bata hi rahe the ki vish ka prabhav hone laga aur ek ek kar bhai bahan donon mar ge. kumharin ne jab ye dekha to wo vilap karne lagi. kumharin ka vilap sunkar kumhar dauDa dauDa aaya. usne bhai bahan ko mara hua paya to wo bhi rone laga. phir jaise taise apne man ko samjha kar usne donon bachchon ke shavon ko uthaya aur jangal mein ek sthaan par dafna diya.
jis sthaan par bhai bahan ko dafnaya tha us sthaan par kuch din baad ek kele ka peD uga aur ek gende ka paudha uga. gende ke paudhe mein ek sundar phool khila. us phool ki sugandh door door tak phailne lagi. sugandh se akarshit hokar kuch charvahe udhar chale aaye. unhonne gende ke phool ki sundarta dekhi to use toD lena chaha. jaise hi ek charvahe ne phool toDne ke liye haath baDhaya vaise hi gende ke phool ne kele ke peD se puchha, ‘bhaiya bhaiya, ye charvaha mujhe toD lena chahta hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha.
phir kya tha, gende ka paudha palak jhapakte itna uncha ho gaya ki uska phool charvahe ki pahunch se door ho gaya. ye dekhkar sabhi charvahe Dar ge aur vahan se bhaag khaDe hue. kuch door jane par charvahon ko do sipahi mile.
‘kahan bhaag rahe ho? kisi ka koi saman to nahin churaya hai?’ sipahiyon ne charvahon ko Dantte hue puchha.
is par charvahon ne sipahiyon ko chamatkari gende ke bare mein bataya. sipahiyon ko pahle to vishvas nahin hua phir unhonne svayan jakar dekhne ka nishchay kiya.
gende ka phool us samay tak vapas apne sthaan par aa chuka tha. ek sipahi ne haath baDhakar gende ka phool toDna chaha.
‘bhaiya bhaiya, ye sipahi mujhe toD lena chahta hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha. gende ka paudha phir uncha ho gaya aur phool sipahi ki pahunch se bahar ho gaya.
sipahi Dar ge. ve bhaag kar raja ke paas pahunche. raja us samay apni charon raniyon ke saath baitha baten kar raha tha. sipahiyon ne raja ko jadui gende ke bare mein bataya.
‘ham svayan jakar dekhenge use!’ raja ne kaha. raniyan bhi utsuktavash saath ho leen.
vahan pahunchakar raja aur charon raniyon ne dekha ki gende ka phool sachmuch bahut sundar tha.
‘pahle main toDungi. ’ baDi rani ne hath kiya.
‘theek hai, pahle tum toD lo!’ raja ne anumti de di.
rani ne phool toDne ko haath baDhaya ki vahi ghatna phir ghati.
‘bhaiya bhaiya, ye rani mujhe toD lena chahti hai, main kya karun?’ gende ne kele se puchha.
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha. gende ka paudha phir uncha ho gaya aur phool rani ki pahunch se bahar ho gaya.
ye dekhkar baDi rani Dar gai. iske baad ek ek karke shesh tinon raniyon ne phool toDne ka prayas kiya lekin phool unke haath nahin aaya. iske baad raja ne phool toDna chaha kintu use bhi asphalta haath lagi. kintu raja ko kele ke peD aur gende ke phool ke sanvad sunkar aisa laga ki kahin ye chhoti rani ki santane to nahin hain? sadhu ke kathnanusar chhoti rani to garbhavti hui lekin shesh raniyon ne ab tak koi santan nahin janin, kahin raniyon ne jhooth to nahin bol diya tha? sandeh hote hi raja ne apne sevkon ko charon or dauDa diya ki ve kahin se bhi chhoti rani ko DhunDhakar layen.
dusre din sevkon ne chhoti rani ko DhoonDh nikala. wo durdin mein rah rahi thi. uske kapDe phat chale the aur baal uljhe hue the. apni santanon ko ganvakar uski dasha paglon jaisi ho gai thi. raja ne chhoti rani ko is dasha mein dekha to use bahut dukh hua. usne chhoti rani ko nahalvaya dhulvaya aur achchhe kapDe gahne pahanvaye. iske baad wo chhoti rani sahit gende ke phool ke paas pahuncha. anya raniyan bhi saath theen.
raja ke kahne par chhoti rani ne gende ke phool ko toDne ke liye haath baDhaya.
‘bhaiya bhaiya, maan mujhe toD lena chahti hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi se utar ja aur maan ki god mein chali ja!’ kele ne gende se kaha. dekhte hi dekhte gende ka paugha bahut nicha ho gaya aur usse phool toot kar chhoti rani ke anchal mein aa gira. agle hi pal kele ka peD balak mein aur gende ka paudha balika mein parivartit ho gaya aur balak balik ‘maan maan’ kahte hue chhoti rani ke gale lag ge.
ye drishya dekhkar raja sari baat samajh gaya aur raniyan Dar gain. raja ne raniyon ko phatkar lagai aur unhen desh nikala de diya. iske baad raja chhoti rani aur apne bachchon ko lekar mahl laut aaya. bachchon ke kahne par kumhar aur kumharin ko bhi mahl mein bula liya gaya. sabhi log hansi khushi se rahne lage.
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udhar charon raniyon ki vishvast dasi ne donon shishuon ko jangal mein ek gaDDhe mein phenk diya aur vapas mahl chali gai. uska vichar tha ki jangal mein koi na koi jangli janvar unhen kha jayega, nahin to donon shishu bhookh pyaas se mar jayenge.
sanyogvash dasi ke jate hi ek kumharan aur kumharin vahan aa pahunche. ve vahan pratidin mitti khodne aate the. wo gaDDha unhin ka banaya hua tha jismen dasi un shishuon ko phenk gai thi. kumhar dampatti ki koi santan nahin thi. un logon ne shishuon ko dekha to bahut prasann hue. donon shishuon ko kumharin ne apni god mein utha liya aur dular karne lagi.
kumhar aur kumharin ke laaD pyaar mein palte hue donon bhai bahan baDe hone lage. ek din bhai bahan khelte khelte mahl ki or nikal ge. baDi rani ne unhen apni atari se dekha. donon ki aayu aur rang roop dekhkar rani ko sandeh hua ki kahin ye chhoti rani ki santan to nahin? baDi rani ke man mein khot to tha hi. usne apni usi vishvast dasi ko bulaya aur uske hathon vishaile pue bhejte hue kah ki ‘jao, un donon bachchon ko khila do. ’
dasi ne vishaile pue un donon ko khila diya. donon bane pue khakar khushi khushi apne ghar laute. ve abhi apni kumharin maan ko puon ke bare mein bata hi rahe the ki vish ka prabhav hone laga aur ek ek kar bhai bahan donon mar ge. kumharin ne jab ye dekha to wo vilap karne lagi. kumharin ka vilap sunkar kumhar dauDa dauDa aaya. usne bhai bahan ko mara hua paya to wo bhi rone laga. phir jaise taise apne man ko samjha kar usne donon bachchon ke shavon ko uthaya aur jangal mein ek sthaan par dafna diya.
jis sthaan par bhai bahan ko dafnaya tha us sthaan par kuch din baad ek kele ka peD uga aur ek gende ka paudha uga. gende ke paudhe mein ek sundar phool khila. us phool ki sugandh door door tak phailne lagi. sugandh se akarshit hokar kuch charvahe udhar chale aaye. unhonne gende ke phool ki sundarta dekhi to use toD lena chaha. jaise hi ek charvahe ne phool toDne ke liye haath baDhaya vaise hi gende ke phool ne kele ke peD se puchha, ‘bhaiya bhaiya, ye charvaha mujhe toD lena chahta hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha.
phir kya tha, gende ka paudha palak jhapakte itna uncha ho gaya ki uska phool charvahe ki pahunch se door ho gaya. ye dekhkar sabhi charvahe Dar ge aur vahan se bhaag khaDe hue. kuch door jane par charvahon ko do sipahi mile.
‘kahan bhaag rahe ho? kisi ka koi saman to nahin churaya hai?’ sipahiyon ne charvahon ko Dantte hue puchha.
is par charvahon ne sipahiyon ko chamatkari gende ke bare mein bataya. sipahiyon ko pahle to vishvas nahin hua phir unhonne svayan jakar dekhne ka nishchay kiya.
gende ka phool us samay tak vapas apne sthaan par aa chuka tha. ek sipahi ne haath baDhakar gende ka phool toDna chaha.
‘bhaiya bhaiya, ye sipahi mujhe toD lena chahta hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha. gende ka paudha phir uncha ho gaya aur phool sipahi ki pahunch se bahar ho gaya.
sipahi Dar ge. ve bhaag kar raja ke paas pahunche. raja us samay apni charon raniyon ke saath baitha baten kar raha tha. sipahiyon ne raja ko jadui gende ke bare mein bataya.
‘ham svayan jakar dekhenge use!’ raja ne kaha. raniyan bhi utsuktavash saath ho leen.
vahan pahunchakar raja aur charon raniyon ne dekha ki gende ka phool sachmuch bahut sundar tha.
‘pahle main toDungi. ’ baDi rani ne hath kiya.
‘theek hai, pahle tum toD lo!’ raja ne anumti de di.
rani ne phool toDne ko haath baDhaya ki vahi ghatna phir ghati.
‘bhaiya bhaiya, ye rani mujhe toD lena chahti hai, main kya karun?’ gende ne kele se puchha.
‘karna kya hai? svarg ki siDhi chaDh ja!’ kele ne gende se kaha. gende ka paudha phir uncha ho gaya aur phool rani ki pahunch se bahar ho gaya.
ye dekhkar baDi rani Dar gai. iske baad ek ek karke shesh tinon raniyon ne phool toDne ka prayas kiya lekin phool unke haath nahin aaya. iske baad raja ne phool toDna chaha kintu use bhi asphalta haath lagi. kintu raja ko kele ke peD aur gende ke phool ke sanvad sunkar aisa laga ki kahin ye chhoti rani ki santane to nahin hain? sadhu ke kathnanusar chhoti rani to garbhavti hui lekin shesh raniyon ne ab tak koi santan nahin janin, kahin raniyon ne jhooth to nahin bol diya tha? sandeh hote hi raja ne apne sevkon ko charon or dauDa diya ki ve kahin se bhi chhoti rani ko DhunDhakar layen.
dusre din sevkon ne chhoti rani ko DhoonDh nikala. wo durdin mein rah rahi thi. uske kapDe phat chale the aur baal uljhe hue the. apni santanon ko ganvakar uski dasha paglon jaisi ho gai thi. raja ne chhoti rani ko is dasha mein dekha to use bahut dukh hua. usne chhoti rani ko nahalvaya dhulvaya aur achchhe kapDe gahne pahanvaye. iske baad wo chhoti rani sahit gende ke phool ke paas pahuncha. anya raniyan bhi saath theen.
raja ke kahne par chhoti rani ne gende ke phool ko toDne ke liye haath baDhaya.
‘bhaiya bhaiya, maan mujhe toD lena chahti hai, main kya karun?’
‘karna kya hai? svarg ki siDhi se utar ja aur maan ki god mein chali ja!’ kele ne gende se kaha. dekhte hi dekhte gende ka paugha bahut nicha ho gaya aur usse phool toot kar chhoti rani ke anchal mein aa gira. agle hi pal kele ka peD balak mein aur gende ka paudha balika mein parivartit ho gaya aur balak balik ‘maan maan’ kahte hue chhoti rani ke gale lag ge.
ye drishya dekhkar raja sari baat samajh gaya aur raniyan Dar gain. raja ne raniyon ko phatkar lagai aur unhen desh nikala de diya. iske baad raja chhoti rani aur apne bachchon ko lekar mahl laut aaya. bachchon ke kahne par kumhar aur kumharin ko bhi mahl mein bula liya gaya. sabhi log hansi khushi se rahne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 27)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
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