Font by Mehr Nastaliq Web

लंबी कहानी

lambi kahani

एक काँटे की नोक पर तीन तालाब थे। इनमें से दो तालाब सूखे थे और एक में पानी ही नहीं था। जिसमें पानी नहीं था उसमें तीन कुम्हार रहते थे। इनमें से दो कुम्हारों के हाथ नहीं थे और तीसरा हाथविहीन था। हाथविहीन कुम्हार ने तीन हंडियाँ बनाईं। इनमें से दो हंडियाँ टूट गईं और तीसरी के पैंदा ही नहीं था। जिसके पैंदा नहीं था उसमें उन्होंने तीन चावल पकाए। इनमें से दो चावल कच्चे रह गए और तीसरा पका ही नहीं। अनपके चावल को खाने के लिए उन्होंने तीन मेहमानों को न्यौता दिया। इनमें से दो मेहमान ग़ुस्से में थे और तीसरे का ग़ुस्सा ठंडा ही नहीं हुआ। जिसका ग़ुस्सा ठंडा नहीं हुआ उस मेहमान के लगाए तीन जूते। दो वार चूक गए और तीसरा लगा ही नहीं। जूते की मार से बचने के लिए मेहमान भागा। कुम्हार मेहमान के पीछे भागा।

रास्ते में एक पागल हाथी कुम्हार के पीछे पड़ गया। कुम्हार ने हाथी के एक मुक्का मारा। मुक्के से हाथी की तीन पसलियाँ टूट गईं। हाथी जान बचाकर भागा। आगे हाथी और पीछे कुम्हार। भागते-भागते हाथी एक पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर वह कभी इस टहनी पर जाता कभी उस टहनी पर। कभी इस पत्ते पर जाता कभी उस पत्ते पर। आख़िर हाथी पेड़ से उतरा। वहाँ उसने एक टोंटी वाला कप देखा। उसने कप के अंदर छलाँग लगाई और टोंटी में से निकलकर भागा। हाथी तो टोंटी में से सही-सलामत निकल गया, पर उसकी पूँछ अटक गई। यह देखकर कुम्हार को बेचारे असाहय जीव पर दया गई और वह वापस चला गया।

रास्ते में उसने एक बच्ची को देखा जो तिनके पर हाथी की लाश को उठाए हुए थी। वह लाश को अपनी माँ के पास ले गई और पूछा कि वह इस लाश को कहाँ फेंके।

कुम्हार ने सोचा, “ऐसी बच्ची का बाप कितना ताकतवर होगा!” सो उसने बच्ची से पूछा कि उसके पिता कहाँ हैं।

बच्ची ने कहा, “वह जंगल में सत्तर हज़ार छकड़ों के बैलों को चराने गए हैं। सत्तर हज़ार छकड़ों को वे सूतली से अपनी कमर पर बाँधे रहते हैं।”

कुम्हार जंगल में गया। वहाँ उसने बच्ची के पिता को देखा। सत्तर हज़ार बैलगाड़ियाँ उसकी कमर पर बँधी थीं। कुम्हार उसके पास गया और उसे लड़ाई के लिए ललकारा।

बच्ची के पिता ने कहा, “अच्छी बात है, हो जाए! पर हमारी जीत-हार का फैसला कौन करेगा?”

तभी उन्हें रास्ते पर जाती एक बुढ़िया दिखी। उसकी कमर झुकी हुई थी। उसके एक हाथ में पानी का घड़ा था और दूसरे में रोटियों की पोटली। वे उसके पास गए और पंच बनने के लिए कहा।

“बेटे, मैं बुढ़िया तुम्हारी लड़ाई का क्या फैसला करूँगी! मुझे ठीक से दिखता भी नहीं। पर मेरे एक जवान बेटा है। वह यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं है। वह कमर पर सत्तर हज़ार ऊँट बाँधे घूमता है। वह तुम्हारा पंच बनने के लायक है।

लड़ाकों को यह बात जँची। बुढ़िया ने घड़ा और पोटली सर पर रखी और अपनी एक-एक हथेली पर उनसे बैठने के लिए कहा। एक लड़ाके ने अपनी कमर पर बँधे सत्तर हज़ार छकड़ों को ठीक से कसा और एक हथेली पर बैठ गया। दूसरी हथेली पर दूसरा लड़ाका बैठ गया।

बुढ़िया कभी-कभी ग़ुस्से में अपने बेटे को धमकाया करती थी कि वह उसे काजी के बेलिफ के हवाले कर देगी। बेटे ने माँ को दो आदमियों को हाथों पर उठाए आते देखा तो उसने समझा कि वे काजी के आदमी हैं। सो उसने ज़मीन पर चादर बिछाई, उसमें सत्तर हज़ार ऊँटों को बाँधा और गठरी उठाकर भाग खड़ा हुआ। कुछ ऊँटों की गर्दन गठरी से बाहर रह गई थीं। इनमें से एक ऊँट की जीभ बाहर लटक रही थी। उसे माँस का टुकड़ा समझकर एक चील ने झपटा मारा और गठरी को ले गई। पोटली कुछ भारी थी। सो थोड़ी देर बाद चील ने उसे गिरा दिया।

संयोग की बात कि उस समय वहाँ की रानी राजमहल की छत पर टहल रही थी। उसने यों ही जरा ऊपर देखा और वह गठरी उसकी आँख में गिर गई। उसे आँख में कुछ किरकिर-सी महसूस हुई। उसने दाई माँ को बुलवाया। दाई माँ यह देखकर हैरान रह गई कि आँख में सत्तर हज़ार ऊँट घूम रहे हैं। एक-एक कर उसने सारे ऊँट निकाल दिए। कुछ को उसने अपनी कुरती में छुपाया और कुछ को ओढ़नी की सलवटों में। रानी को अदेर आराम गया। दाई माँ ख़ुशी से छलकती हुई घर आई और ऊँटों को गिनने लगी। पर उसे उनहत्तर हज़ार नौ सौ निन्यानवे ऊँट ही मिले। दाई माँ को पूरा भरोसा था कि रानी की आँख में पूरे सत्तर हज़ार ऊँट थे। निश्चित ही एक ऊँट रानी की आँख में ही रह गया। वह भागी-भागी वापस राजमहल गई और रानी की आँख में अच्छी तरह देखा। पर वहाँ कोई ऊँट नहीं मिला। उसने चने के उस खेत में भी ढूँढ़ा जहाँ से होकर वह गई थी, पर अकारथ।

एक दिन दाई माँ ने चने की रोटियाँ बनाईं। रोटियाँ बनाकर वह खाने बैठी। पहला कौर तोड़ा तो उसे रोटी के अंदर एक ऊँट दिखा। पर ऊँट की गर्दन और सर ग़ायब थे।

दाई माँ ने पूछा, “अच्छा तो जनाब यहाँ हैं?”

ऊँट ने कहा, “मैं तो यहीं हूँ, पर मेरी गर्दन और सर आगरा में है।”

आगरा के बादशाह का बहुत आलीशान बग़ीचा था। कुछ दिनों से हर रात कोई चरिंदा उसके पेड़ खा जाता था। बादशाह ने जानवर को पकड़ने का आदेश दिया, पर उसका कुछ पता नहीं चला। आख़िरकार उसने वज़ीर को ख़ुद पहरा लगाने के लिए कहा। वज़ीर पहरे पर गया। वज़ीर ने अपनी छोटी अंगुली को ज़रा-सा काटा और घाव पर नमक-मिर्च लगा दिए। इसकी जलन से आँख लगने की आशंका नहीं रहेगी।

आधी रात को वज़ीर ने देखा कि ऊँट की गर्दन आई और पेड़ों को खाने लगी। उसने भागकर गर्दन को पकड़ लिया और पूछा कि वह कौन है।

ऊँट की गर्दन ने कहा, “मैं कोई होऊँ, तुम्हें इससे क्या! यह बीज लो और जैसा मैं कहूँ वैसा करो। इसे बादशाह के पास ले जाओ। सुबह पहले घंटे में इसे राजा के सामने बोना। दूसरे घंटे में इसके अंकुर निकल आएगा। तीसरे घंटे में इसके पत्ते निकल आएँगे। चौथे में फूल और पाँचवे में फल लग जाएँगे। छठे घंटे में फल पक जाएगा और सातवें घंटे बादशाह इसे खा सकेगा।”

वज़ीर ने वैसा ही किया। बीज को बोया गया। सात घंटे में पका हुआ तरबूज़ बादशाह के सामने रखा था।

तभी कुछ नजूमी आए। उन्होंने बादशाह को बताया कि भयंकर बरसात आने वाली है। अगर बादशाह और उसके लोगों ने महफ़ूज़ जगह पर पनाह नहीं ली तो उनमें से कोई नहीं बचेगा। सब डर गए। तभी नजूमियों की नज़र बादशाह के सामने रखे तरबूज़ पर पड़ी। वे एक साथ चिल्लाए—

“यह रही वह जगह!”

उन्होंने सलाह दी कि तरबूज की गिरी निकालकर सब उसमें घुस जाएँ। सो बादशाह, उसके घर वाले और उसका तमाम अमला अपने सामान और मवेशियों समेत तरबूज़ में घुस गए। जब सब अंदर घुस गए तो तरबूज़ की दूसरी खुपरी पहली के ऊपर रख दी गई। आनन-फ़ानन में मूसलाधार बरसात होने लगी। कई दिनों तक पानी बरसता रहा। धरती पर हर जगह पानी ही पानी हो गया। बादशाह और तमाम लोगों को अपने भीतर समोए हुए तरबूज़ पानी पर तैरने लगा।

आख़िर बरसात थमी। एक बड़ी मछली जो बहुत भूखी थी तरबूज़ को निगल गई। पर तरबूज़ काफ़ी बड़ा था। वह मछली के गले में अटक गया। मछली पानी से बाहर आई और हाँफती हुई तट पर पड़ गई। कई दिनों का भूखा एक बगुला मछली को खा गया। पर मछली उसके गले से नीचे नहीं उतरी। बगुला निढाल होकर वहीं लुढ़क गया। उसे एक बिल्ली खा गई। बिल्ली भी फिर हिल सकी और उसे एक कुत्ता खा गया। बिल्ली को खाने के बाद कुत्ते में भी चलने-फिरने की सरधा नहीं रही। वह पस्त होकर वहीं पसर गया।

वहाँ पास ही एक कंजर रहता था। उसकी पत्नी ने उसे बार-बार कौंचा कि वह जाकर कुछ खाने के लिए लाए।

कंजर ने कहा, “मुझे तंग मत करो! मैं इतना खाना लाऊँगा कि वह चार दिन के लिए काफ़ी होगा।”

कंजर घर से निकला। उसने उस कुत्ते को देखा जिसने बिल्ली को निगल लिया था। अधमरे कुत्ते को उसने लाठी के एक ही वार में ठंडा कर दिया और उसे ख़ुशी-ख़ुशी घर ले आया। पत्नी कुत्ते को काटने लगी। काटते-काटते वह चिल्लाई, “सुनते हो, कुत्ते के अंदर एक बिल्ली है!”

“मैंने कहा नहीं था कि मैं चार दिनों का खाना लाऊँगा? बिल्ली को कल के लिए रख लो!”

अगले दिन पत्नी ने बिल्ली को काटा तो उसमें से बगुला निकला। उसने पति को बताया तो वह बोला, “बगुले को कल के लिए रख लो!”

उसके अगले दिन बगुले को काटा तो मछली निकली और उसके अगले दिन मछली को काटा तो तरबूज़ निकला।

आख़िर में उसने तरबूज़ को काटा तो उसमें से बादशाह, उसके तमाम लोग, उसके मवेशी, घोड़े और उनका तमाम सामान निकला। बादशाह ने कंजर को कई खेत दिए, ख़ूब धन दिया और राजधानी लौट गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 211)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए