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हिरणी का छउवा

hirni ka chhauva

राजा का नाम था विक्रमादित्य। राजा विक्रमादित्य एक दिन शिकार खेलने जंगल गया। शिकार खेलते-खेलते दुपहर हो गई। राजा विक्रमादित्य ने भोजन किया और ढेर सारा पानी पिया। थोड़ी देर बाद उसे लघुशंका की इच्छा उत्पन्न हुई। राजा ने अपना धनुष-बाण एक ओर टिकाया और अपने सिपाहियों से दूर, घनी झाड़ियों के पीछे लघु शंका करने बैठ गया। लघुशंका करने के बाद वह वापस अपने सिपाहियों के पास पहुँचा और अपना धनुष-बाण उठाकर आगे चल पड़ा।

राजा विक्रमादित्य ने जहाँ लघुशंका की थी वहीं पास में एक पानी का गड्ढा था। राजा का मूत्र बहकर उस गड्ढे में चला गया। तभी एक हिरणी चरती हुई उधर आई। उसे प्यास लगी थी। उसने उस गड्ढे का पानी पी लिया जिसमें राजा का मूत्र मिला हुआ था। कुछ दिन बाद हिरणी गर्भवती हुई। गर्भकाल पूरा होने पर हिरणी ने एक सुंदर छउवे को जन्म दिया। किंतु यह छउवा हिरण का छउवा होकर मनुष्य का छउवा था। यह देखकर हिरणी डर गई। उसे लगा कि यदि अन्य हिरण-हिरणियों को इस बारे में पता चलेगा तो वे उसका उपहास करेंगे। उसने अपने छउवे को पत्तों से ढाँक दिया।

अब हिरणी घास-पात चरकर आती और पत्तों में छिपे हुए अपने छउवे को दूध पिलाती। इस प्रकार पत्तों में छिपे-छिपे दूध पीता हुआ हिरणी का छउवा बड़ा होने लगा। कुछ समय बाद वह चलने-फिरने लायक हो गया। वह मनुष्यों की बोली में बोलने लगा।

कुछ दिन बाद जब छउवा और बड़ा हो गया तो हिरणी को लगा कि अब छउवे को मनुष्यों का भोजन मिलना चाहिए। अब हिरणी तो मनुष्यों का भोजन पकाना जानती नहीं थी अत: उसने अपने छउवे को अपने पास बिठाकर प्यार से समझाया, ‘बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो। तुम हो तो मेरे बेटे लेकिन तुम मनुष्य हो अत: तुम्हें मनुष्यों का भोजन करना चाहिए। इसलिए तुम ऐसा करो कि यह तूमा (सूखे कुम्हड़े का खोल) लो, ये धोती लो और ये लाठी लो। इन्हें लेकर गाँवों में जाओ और भीख माँगकर अपने लिए भोजन प्राप्त करो। लेकिन एक बात ध्यान में रखना कि तुम पूर्व में जाना, पश्चिम में जाना, उत्तर में जाना किंतु दक्षिण में कभी मत जाना। मैं प्रतिदिन शाम को गाँव और जंगल के बीच वाले पीपल के पेड़ के नीचे मिलने आया करूँगी।’

‘वह तो ठीक है माँ! लेकिन मुझे यह तो बताओ कि मनुष्य किस तरह भीख माँगते हैं? मुझे तो भीख माँगना आता ही नहीं है।’ छउवे ने पूछा।

मैं तुम्हें एक गीत सिखाती हूँ। तुम इस गीत को गा-गाकर भीख माँगना। तुम्हें भीख अवश्य मिलेगी।’ यह कहकर हिरणी ने अपने छउवे को एक गीत सिखाया।

गीत के बोल थे—

अइयो मोर बन के हरिनिया

बाबा मोर बिकरम दित राजा

भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...

अर्थात् मेरी माँ वन की हिरणी है। मेरे पिता राजा विक्रमादित्य हैं। मुझे माताएँ, बहनें भीख दे दें।

यह गीत सुनकर स्त्रियाँ अपने घरों से निकल आईं और उन्होंने भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थों से छउवे का तूमा भर दिया। जब तूमे में जगह नहीं बची तो कपड़े की पोटली में बाँधकर दे दिया।

दिन भर भीख माँगने के बाद शाम होते ही छउवा पीपल के पेड़ के नीचे जा पहुँचा। हिरणी पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। छउवे ने तूमे से भोजन निकाला। उसमें दही और चिउड़ा था। छउवे ने दही-चिउड़ा अपनी हिरणी माँ को दिया। दही-चिउड़ा खाते हुए हिरणी की आँखें भर आईं। उसने स्नेह से अपने छउवे को चाट-चाटकर प्रेम जताया। इसके बाद वे दोनों वहीं पेड़ के नीचे सो गए। भोर होते ही छउवा फिर निकल पड़ा भीख माँगने।

अइयो मोर बन के हरिनिया

बाबा मोर बिकरम दित राजा

भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...

पिछले दिन पूर्व दिशा में गया था। अब वह पश्चिम दिशा में गया। यहाँ भी उसे बहुत सारी भीख मिली। तीसरे दिन छउवा उत्तर दिशा में गया। वहाँ भी उसे बहुत भीख मिली। चौथे दिन उसने सोचा कि मैं तीन दिशाओं में तो हो आया लेकिन चौथी दिशा में नहीं गया हूँ। भले ही माँ ने मना किया है लेकिन एक बार जाने में कोई हर्ज़ नहीं है। यह विचार करते हुए छउवा चौथे दिन दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा।

दक्षिण दिशा में एक गाँव पड़ा। छउवे ने गीत गा-गाकर भीख माँगना शुरू किया—

अइयो मोर बन के हरिनिया

बाबा मोर बिकरम दित राजा

भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...

गीत सुनकर लोग अपने-अपने घरों से निकल आए। उन्होंने छउवे से बार-बार उसका गीत सुना और उसे बहुत-सा भोजन भीख में दिया। गाँव वालों को यह सुनकर आश्चर्य हो रहा था कि छउवा अपने गीत में राजा विक्रमादित्य को अपना पिता कह रहा है जो कि उनके राजा हैं। उनमें से एक आदमी ने छउवे को अपने राजा के पास चलने को कहा।

‘यदि हमारे राजा तुम्हारा गीत सुनकर प्रसन्न हो गए तो वह तुम्हें इतना सारा ईनाम देंगे कि तुम्हें कभी भीख नहीं माँगनी पड़ेगी और तुम अपनी माँ के साथ सुख से रह सकोगे।’ उस आदमी ने छउवे को समझाया।

छउवा उस आदमी के साथ जाने को तैयार हो गया। चलते-चलते वे दोनों राजा के महल में पहुँचे। उस आदमी ने राजा से निवेदन किया कि वे छउवे का गाना सुन लें। राजा ने कहा कि ‘ठीक है, सुनाओ!’

छउवे ने गीत सुनाया—

अइयो मोर बन के हरिनिया

बाबा मोर बिकरमदित राजा

भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...

गीत सुनकर राजा चकित रह गया। उसने उस आदमी को ईनाम देकर भेज दिया और छउवे को रोक लिया।

‘यह गीत तुमने लिखा है?’ राजा ने पूछा।

‘नहीं यह तो मेरी माँ ने मुझे सिखाया है।’ छउवे ने कहा।

‘तुम्हारी माँ कौन है? और तुम्हारे पिता कौन हैं?’ राजा ने पूछा।

‘पिता को तो मैंने कभी नहीं देखा लेकिन मेरी माँ एक हिरणी है। उसी ने मुझे अपना दूध पिलाकर पाल-पोस कर बड़ा किया है। उसी ने कहा था कि यह गीत गाकर भीख माँगना लेकिन दक्षिण दिशा में कभी मत जाना। मैंने अपनी माँ का कहना नहीं माना और दक्षिण दिशा में गया हूँ। अब मेरी माँ मुझ पर क्रोधित होगी।’ छउवे ने भोलपन से राजा को सब कुछ बता दिया।

राजा को लगा कि छउवे की बात में अवश्य कोई रहस्य छिपा हुआ है। उसने छउवे के साथ जाने का निश्चय किया। राजा ने वेश बदला और छउवे के साथ पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचा। हिरणी छउवे से मिलने के लिए पेड़ के नीचे पहले ही पहुँची थी किंतु छउवे के साथ किसी अपरिचित को देखकर वह छिप गई। राजा ने बहुत प्रतीक्षा की लेकिन हिरणी सामने नहीं आई। थक-हार कर राजा अपने महल लौट गया किंतु जाते-जाते छउवे को दूसरे दिन अपने महल आने का निमंत्रण दे गया।

राजा के जाने के बाद हिरणी ओट से बाहर आई। वह छउवे को चाटती-दुलारती रही। उसने राजा के बारे में कुछ नहीं पूछा क्योंकि उसे लगा कि वह छउवे का कोई मनुष्य मित्र था। वह वेश बदले हुए राजा को पहचान नहीं सकी। छउवे ने खाने का सामान निकाला। उसे महल से अच्छे-अच्छे पकवान मिले थे। उसने अपनी माँ के साथ मिलकर पकवान खाए और माँ-बेटा दोनों वहीं सो गए।

भोर होने पर छउवा भीख माँगने निकल पड़ा। उसे राजा का निमंत्रण याद आया। वह सीधे राजा के महल में जा पहुँचा। राजा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। राजा ने उसे खिलाया-पिलाया, अच्छे कपड़े और आभूषण पहनवाए। इसके बाद उसे अपने महल के बाहर एक कोठरी में बंद कर दिया। शाम हो गई तो छउवे को माँ की याद आने लगी।

‘मेरी माँ भूखी होगी। मुझे अपनी माँ के पास जाने दीजिए।’ छउवे ने राजा से कहा।

‘मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा। जब तुम्हारी माँ तुम्हें ढूँढ़ती हुई यहाँ आएगी तो मैं उससे मिलूँगा।’ राजा ने कहा और अपने महल में चला गया।

इधर हिरणी ने बहुत देर तक प्रतीक्षा की। जब छउवा नहीं आया तो वह व्याकुल हो उठी। उसका ममतामयी हृदय तरह-तरह की आशंकाओं से ग्रस्त हो उठा और वह छउवे की खोज में निकल पड़ी। वह छउवे को पुकारती हुई पहले पूर्व में गई।

कनेगेल बेटा, का भेले रे

का कारन बेटा नि घुरले रे...

अर्थात् बेटा, तुम कहाँ चले गए? तुम्हें क्या हो गया? किस कारण से तुम नहीं पा रहे हो? यह गीत गा-गा कर हिरणी छउवा को पुकारती हुई पश्चिम और उत्तर में भी गई। तीनों दिशाओं में छउवा मिलने पर वह दक्षिण दिशा में चल पड़ी। राजा के महल के पास पहुँचकर उसने पुकार लगाई—

कनेगेल बेटा, का भेले रे

का कारन बेटा नि घुरले रे...

कोठी में बंद छउवे ने अपनी माँ का स्वर सुना तो वह बाहर निकलने को व्याकुल हो उठा। जब उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला तो उसने अपनी माँ के गीत का उत्तर देते हुए कहा—

इहां आहों आइयो, जेहेले रे

बिना कारने आइयो बंधालों रे...

अर्थात् मैं जहाँ हूँ वह बंदीगृह है और मैं उसमें अकारण बंदी बना दिया गया हूँ। छउवे का उत्तर सुनकर हिरणी को बहुत दुख हुआ। वह सीधे राजा के पास पहुँची।

‘मेरे छउवे को आपने बंदी क्यों बनाया? उसका क्या दोष है?’ हिरणी ने राजा से पूछा।

‘उसका कोई दोष नहीं है। मैं तुमसे मिलना चाहता था इसलिए उसे बंदी बनाया। अब तुम मुझे यह बताओ कि तुमने उसे जो गीत सिखाया है उसमें पिता के रूप में मेरा नाम क्यों जोड़ा है? वह मेरी तरह दिखाई देता है लेकिन मैं तुम्हें जानता तक नहीं हूँ। इसमें क्या रहस्य है?’ राजा ने हिरणी से पूछा।

‘इसमें रहस्य कुछ नहीं है। आप ही उसके पिता हैं।’ हिरणी ने राजा को पूरी कहानी सुना दी कि किस प्रकार उसने गड्ढे का पानी पिया और पानी का स्वाद खारा होने पर उसे संदेह हुआ। उसने पीछा किया तो पता चला कि राजा विक्रमादित्य का मूत्र उसे गड्ढे के पानी में मिल गया था। गर्भवती होने पर वह समझ गई कि उसके गर्भ में राजा की संतान है।

हिरणी से वास्तविकता जानकर राजा भावविभोर हो उठा कि छउवा उसका अपना पुत्र है और हिरणी उसकी रानी के समान है। उसने आगे बढ़कर हिरणी को प्रेम से गले लगा लिया। गले लगाते ही एक चमत्कार हो गया। हिरणी सुंदर रूपवती स्त्री में बदल गई।

‘अब यह क्या रहस्य है?’ राजा ने चकित होते हुए पूछा।

'रहस्य यह है कि मैं देवराज इंद्र की सभा की अप्सरा मेनका हूँ। एक दिन मैंने ऋषि विश्वामित्र को देखा तो उनकी वेशभूषा को देखकर मुझे हँसी गई। ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने मुझे हिरणी बनकर पृथ्वी पर रहने का शाप दे दिया। मैंने उनसे क्षमा माँगी तथा शाप-मुक्त करने का निवेदन किया तो उन्होंने कहा कि जिस दिन कोई राजा तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में प्रेम से गले लगाएगा उस दिन तुम्हें तुम्हारा असली रूप मिल जाएगा। अब आपने मुझे अपनी पत्नी के रूप में अपने गले लगाया तो मुझे अपना असली रूप मिल गया। अब आप अपने पुत्र को संभालिए और मुझे जाने की अनुमति दीजिए।’ स्त्री के रूप में परिवर्तित हिरणी ने कहा।

इसके बाद हिरणी अपने छउवे से गले लगकर मिली और राजा तथा छउवे से विदा लेकर स्वर्गलोक चली गई। राजा ने छउवे का राजकुमारों जैसा लालन-पालन किया और अपने बाद उसे राजा बना दिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 9)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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