राजा का नाम था विक्रमादित्य। राजा विक्रमादित्य एक दिन शिकार खेलने जंगल गया। शिकार खेलते-खेलते दुपहर हो गई। राजा विक्रमादित्य ने भोजन किया और ढेर सारा पानी पिया। थोड़ी देर बाद उसे लघुशंका की इच्छा उत्पन्न हुई। राजा ने अपना धनुष-बाण एक ओर टिकाया और अपने सिपाहियों से दूर, घनी झाड़ियों के पीछे लघु शंका करने बैठ गया। लघुशंका करने के बाद वह वापस अपने सिपाहियों के पास पहुँचा और अपना धनुष-बाण उठाकर आगे चल पड़ा।
राजा विक्रमादित्य ने जहाँ लघुशंका की थी वहीं पास में एक पानी का गड्ढा था। राजा का मूत्र बहकर उस गड्ढे में चला गया। तभी एक हिरणी चरती हुई उधर आई। उसे प्यास लगी थी। उसने उस गड्ढे का पानी पी लिया जिसमें राजा का मूत्र मिला हुआ था। कुछ दिन बाद हिरणी गर्भवती हुई। गर्भकाल पूरा होने पर हिरणी ने एक सुंदर छउवे को जन्म दिया। किंतु यह छउवा हिरण का छउवा न होकर मनुष्य का छउवा था। यह देखकर हिरणी डर गई। उसे लगा कि यदि अन्य हिरण-हिरणियों को इस बारे में पता चलेगा तो वे उसका उपहास करेंगे। उसने अपने छउवे को पत्तों से ढाँक दिया।
अब हिरणी घास-पात चरकर आती और पत्तों में छिपे हुए अपने छउवे को दूध पिलाती। इस प्रकार पत्तों में छिपे-छिपे दूध पीता हुआ हिरणी का छउवा बड़ा होने लगा। कुछ समय बाद वह चलने-फिरने लायक हो गया। वह मनुष्यों की बोली में बोलने लगा।
कुछ दिन बाद जब छउवा और बड़ा हो गया तो हिरणी को लगा कि अब छउवे को मनुष्यों का भोजन मिलना चाहिए। अब हिरणी तो मनुष्यों का भोजन पकाना जानती नहीं थी अत: उसने अपने छउवे को अपने पास बिठाकर प्यार से समझाया, ‘बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो। तुम हो तो मेरे बेटे लेकिन तुम मनुष्य हो अत: तुम्हें मनुष्यों का भोजन करना चाहिए। इसलिए तुम ऐसा करो कि यह तूमा (सूखे कुम्हड़े का खोल) लो, ये धोती लो और ये लाठी लो। इन्हें लेकर गाँवों में जाओ और भीख माँगकर अपने लिए भोजन प्राप्त करो। लेकिन एक बात ध्यान में रखना कि तुम पूर्व में जाना, पश्चिम में जाना, उत्तर में जाना किंतु दक्षिण में कभी मत जाना। मैं प्रतिदिन शाम को गाँव और जंगल के बीच वाले पीपल के पेड़ के नीचे मिलने आया करूँगी।’
‘वह तो ठीक है माँ! लेकिन मुझे यह तो बताओ कि मनुष्य किस तरह भीख माँगते हैं? मुझे तो भीख माँगना आता ही नहीं है।’ छउवे ने पूछा।
मैं तुम्हें एक गीत सिखाती हूँ। तुम इस गीत को गा-गाकर भीख माँगना। तुम्हें भीख अवश्य मिलेगी।’ यह कहकर हिरणी ने अपने छउवे को एक गीत सिखाया।
गीत के बोल थे—
अइयो मोर बन के हरिनिया
बाबा मोर बिकरम दित राजा
भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...
अर्थात् मेरी माँ वन की हिरणी है। मेरे पिता राजा विक्रमादित्य हैं। मुझे माताएँ, बहनें भीख दे दें।
यह गीत सुनकर स्त्रियाँ अपने घरों से निकल आईं और उन्होंने भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थों से छउवे का तूमा भर दिया। जब तूमे में जगह नहीं बची तो कपड़े की पोटली में बाँधकर दे दिया।
दिन भर भीख माँगने के बाद शाम होते ही छउवा पीपल के पेड़ के नीचे जा पहुँचा। हिरणी पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। छउवे ने तूमे से भोजन निकाला। उसमें दही और चिउड़ा था। छउवे ने दही-चिउड़ा अपनी हिरणी माँ को दिया। दही-चिउड़ा खाते हुए हिरणी की आँखें भर आईं। उसने स्नेह से अपने छउवे को चाट-चाटकर प्रेम जताया। इसके बाद वे दोनों वहीं पेड़ के नीचे सो गए। भोर होते ही छउवा फिर निकल पड़ा भीख माँगने।
अइयो मोर बन के हरिनिया
बाबा मोर बिकरम दित राजा
भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...
पिछले दिन पूर्व दिशा में गया था। अब वह पश्चिम दिशा में गया। यहाँ भी उसे बहुत सारी भीख मिली। तीसरे दिन छउवा उत्तर दिशा में गया। वहाँ भी उसे बहुत भीख मिली। चौथे दिन उसने सोचा कि मैं तीन दिशाओं में तो हो आया लेकिन चौथी दिशा में नहीं गया हूँ। भले ही माँ ने मना किया है लेकिन एक बार जाने में कोई हर्ज़ नहीं है। यह विचार करते हुए छउवा चौथे दिन दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा।
दक्षिण दिशा में एक गाँव पड़ा। छउवे ने गीत गा-गाकर भीख माँगना शुरू किया—
अइयो मोर बन के हरिनिया
बाबा मोर बिकरम दित राजा
भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...
गीत सुनकर लोग अपने-अपने घरों से निकल आए। उन्होंने छउवे से बार-बार उसका गीत सुना और उसे बहुत-सा भोजन भीख में दिया। गाँव वालों को यह सुनकर आश्चर्य हो रहा था कि छउवा अपने गीत में राजा विक्रमादित्य को अपना पिता कह रहा है जो कि उनके राजा हैं। उनमें से एक आदमी ने छउवे को अपने राजा के पास चलने को कहा।
‘यदि हमारे राजा तुम्हारा गीत सुनकर प्रसन्न हो गए तो वह तुम्हें इतना सारा ईनाम देंगे कि तुम्हें कभी भीख नहीं माँगनी पड़ेगी और तुम अपनी माँ के साथ सुख से रह सकोगे।’ उस आदमी ने छउवे को समझाया।
छउवा उस आदमी के साथ जाने को तैयार हो गया। चलते-चलते वे दोनों राजा के महल में पहुँचे। उस आदमी ने राजा से निवेदन किया कि वे छउवे का गाना सुन लें। राजा ने कहा कि ‘ठीक है, सुनाओ!’
छउवे ने गीत सुनाया—
अइयो मोर बन के हरिनिया
बाबा मोर बिकरमदित राजा
भीख देगे माएँ बहिनिया, भीख देंगे माएँ बहिनिया...
गीत सुनकर राजा चकित रह गया। उसने उस आदमी को ईनाम देकर भेज दिया और छउवे को रोक लिया।
‘यह गीत तुमने लिखा है?’ राजा ने पूछा।
‘नहीं यह तो मेरी माँ ने मुझे सिखाया है।’ छउवे ने कहा।
‘तुम्हारी माँ कौन है? और तुम्हारे पिता कौन हैं?’ राजा ने पूछा।
‘पिता को तो मैंने कभी नहीं देखा लेकिन मेरी माँ एक हिरणी है। उसी ने मुझे अपना दूध पिलाकर पाल-पोस कर बड़ा किया है। उसी ने कहा था कि यह गीत गाकर भीख माँगना लेकिन दक्षिण दिशा में कभी मत जाना। मैंने अपनी माँ का कहना नहीं माना और दक्षिण दिशा में आ गया हूँ। अब मेरी माँ मुझ पर क्रोधित होगी।’ छउवे ने भोलपन से राजा को सब कुछ बता दिया।
राजा को लगा कि छउवे की बात में अवश्य कोई रहस्य छिपा हुआ है। उसने छउवे के साथ जाने का निश्चय किया। राजा ने वेश बदला और छउवे के साथ पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचा। हिरणी छउवे से मिलने के लिए पेड़ के नीचे पहले ही आ पहुँची थी किंतु छउवे के साथ किसी अपरिचित को देखकर वह छिप गई। राजा ने बहुत प्रतीक्षा की लेकिन हिरणी सामने नहीं आई। थक-हार कर राजा अपने महल लौट गया किंतु जाते-जाते छउवे को दूसरे दिन अपने महल आने का निमंत्रण दे गया।
राजा के जाने के बाद हिरणी ओट से बाहर आई। वह छउवे को चाटती-दुलारती रही। उसने राजा के बारे में कुछ नहीं पूछा क्योंकि उसे लगा कि वह छउवे का कोई मनुष्य मित्र था। वह वेश बदले हुए राजा को पहचान नहीं सकी। छउवे ने खाने का सामान निकाला। उसे महल से अच्छे-अच्छे पकवान मिले थे। उसने अपनी माँ के साथ मिलकर पकवान खाए और माँ-बेटा दोनों वहीं सो गए।
भोर होने पर छउवा भीख माँगने निकल पड़ा। उसे राजा का निमंत्रण याद आया। वह सीधे राजा के महल में जा पहुँचा। राजा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। राजा ने उसे खिलाया-पिलाया, अच्छे कपड़े और आभूषण पहनवाए। इसके बाद उसे अपने महल के बाहर एक कोठरी में बंद कर दिया। शाम हो गई तो छउवे को माँ की याद आने लगी।
‘मेरी माँ भूखी होगी। मुझे अपनी माँ के पास जाने दीजिए।’ छउवे ने राजा से कहा।
‘मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा। जब तुम्हारी माँ तुम्हें ढूँढ़ती हुई यहाँ आएगी तो मैं उससे मिलूँगा।’ राजा ने कहा और अपने महल में चला गया।
इधर हिरणी ने बहुत देर तक प्रतीक्षा की। जब छउवा नहीं आया तो वह व्याकुल हो उठी। उसका ममतामयी हृदय तरह-तरह की आशंकाओं से ग्रस्त हो उठा और वह छउवे की खोज में निकल पड़ी। वह छउवे को पुकारती हुई पहले पूर्व में गई।
कनेगेल बेटा, का भेले रे
का कारन बेटा नि घुरले रे...
अर्थात् बेटा, तुम कहाँ चले गए? तुम्हें क्या हो गया? किस कारण से तुम आ नहीं पा रहे हो? यह गीत गा-गा कर हिरणी छउवा को पुकारती हुई पश्चिम और उत्तर में भी गई। तीनों दिशाओं में छउवा न मिलने पर वह दक्षिण दिशा में चल पड़ी। राजा के महल के पास पहुँचकर उसने पुकार लगाई—
कनेगेल बेटा, का भेले रे
का कारन बेटा नि घुरले रे...
कोठी में बंद छउवे ने अपनी माँ का स्वर सुना तो वह बाहर निकलने को व्याकुल हो उठा। जब उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला तो उसने अपनी माँ के गीत का उत्तर देते हुए कहा—
इहां आहों आइयो, जेहेले रे
बिना कारने आइयो बंधालों रे...
अर्थात् मैं जहाँ हूँ वह बंदीगृह है और मैं उसमें अकारण बंदी बना दिया गया हूँ। छउवे का उत्तर सुनकर हिरणी को बहुत दुख हुआ। वह सीधे राजा के पास पहुँची।
‘मेरे छउवे को आपने बंदी क्यों बनाया? उसका क्या दोष है?’ हिरणी ने राजा से पूछा।
‘उसका कोई दोष नहीं है। मैं तुमसे मिलना चाहता था इसलिए उसे बंदी बनाया। अब तुम मुझे यह बताओ कि तुमने उसे जो गीत सिखाया है उसमें पिता के रूप में मेरा नाम क्यों जोड़ा है? वह मेरी तरह दिखाई देता है लेकिन मैं तुम्हें जानता तक नहीं हूँ। इसमें क्या रहस्य है?’ राजा ने हिरणी से पूछा।
‘इसमें रहस्य कुछ नहीं है। आप ही उसके पिता हैं।’ हिरणी ने राजा को पूरी कहानी सुना दी कि किस प्रकार उसने गड्ढे का पानी पिया और पानी का स्वाद खारा होने पर उसे संदेह हुआ। उसने पीछा किया तो पता चला कि राजा विक्रमादित्य का मूत्र उसे गड्ढे के पानी में मिल गया था। गर्भवती होने पर वह समझ गई कि उसके गर्भ में राजा की संतान है।
हिरणी से वास्तविकता जानकर राजा भावविभोर हो उठा कि छउवा उसका अपना पुत्र है और हिरणी उसकी रानी के समान है। उसने आगे बढ़कर हिरणी को प्रेम से गले लगा लिया। गले लगाते ही एक चमत्कार हो गया। हिरणी सुंदर रूपवती स्त्री में बदल गई।
‘अब यह क्या रहस्य है?’ राजा ने चकित होते हुए पूछा।
'रहस्य यह है कि मैं देवराज इंद्र की सभा की अप्सरा मेनका हूँ। एक दिन मैंने ऋषि विश्वामित्र को देखा तो उनकी वेशभूषा को देखकर मुझे हँसी आ गई। ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने मुझे हिरणी बनकर पृथ्वी पर रहने का शाप दे दिया। मैंने उनसे क्षमा माँगी तथा शाप-मुक्त करने का निवेदन किया तो उन्होंने कहा कि जिस दिन कोई राजा तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में प्रेम से गले लगाएगा उस दिन तुम्हें तुम्हारा असली रूप मिल जाएगा। अब आपने मुझे अपनी पत्नी के रूप में अपने गले लगाया तो मुझे अपना असली रूप मिल गया। अब आप अपने पुत्र को संभालिए और मुझे जाने की अनुमति दीजिए।’ स्त्री के रूप में परिवर्तित हिरणी ने कहा।
इसके बाद हिरणी अपने छउवे से गले लगकर मिली और राजा तथा छउवे से विदा लेकर स्वर्गलोक चली गई। राजा ने छउवे का राजकुमारों जैसा लालन-पालन किया और अपने बाद उसे राजा बना दिया।
raja ka naam tha vikramaditya. raja vikramaditya ek din shikar khelne jangal gaya. shikar khelte khelte dopahar ho gai. raja vikramaditya ne bhojan kiya aur Dher sara pani piya. thoDi der baad use laghushanka ki ichchha utpann hui. raja ne apna dhanush baan ek or tikaya aur apne sipahiyon se door, ghani jhaDiyon ke pichhe laghu shanka karne baith gaya. laghushanka karne ke baad wo vapas apne sipahiyon ke paas pahuncha aur apna dhanush baan utha kar aage chal paDa.
raja vikramaditya ne jahan laghushanka ki thi vahin paas mein ek pani ka gaDDha tha. raja ka mootr bah kar us gaDDhe mein chala gaya. tabhi ek hirni charti hui udhar aai. use pyaas lagi thi. usne us gaDDhe ka pani pi liya jismen raja ka mootr mila hua tha. kuch din baad hirni garbhavti hui. garbhakal pura hone par hirni ne ek sundar chhauve ko janm diya. kintu ye chhauva hiran ka chhauva na hokar manushya ka chhauva tha. ye dekhkar hirni Dar gai. use laga ki yadi anya hiran hiraniyon ko is bare mein pata chalega to ve uska uphaas karenge. usne apne chhauve ko patton se Dhaank diya.
ab hirni ghaas paat charkar aati aur patton mein chhipe hue apne chhauve ko doodh pilati. is prakar patton mein chhipe chhipe doodh pita hua hirni ka chhauva baDa hone laga. kuch samay baad wo chalne phirne layak ho gaya. wo manushyon ki boli mein bolne laga.
kuch din baad jab chhauva aur baDa ho gaya to hirni ko laga ki ab chhauve ko manushyon ka bhojan milna chahiye. ab hirni to manushyon ka bhojan pakana janti nahin thi atah usne apne chhauve ko apne paas bitha kar pyaar se samjhaya, ‘beta, ab tum baDe ho ge ho. tum ho to mere bete lekin tum manushya ho atah tumhein manushyon ka bhojan karna chahiye. isliye tum aisa karo ki ye tuma (sukhe kumhDe ka khol) lo, ye dhoti lo aur ye lathi lo. inhen lekar ganvon mein jao aur bheekh mangakar apne liye bhojan praapt karo. lekin ek baat dhyaan mein rakhna ki tum poorv mein jana, pashchim mein jana, uttar mein jana kintu dakshin mein kabhi mat jana. main pratidin shaam ko gaanv aur jangal ke beech vale pipal ke peD ke niche
milne aaya karungi. ’
‘vah to theek hai maan! lekin mujhe ye to batao ki manushya kis tarah bheekh
mangte hain? mujhe to bheekh mangna aata hi nahin hai. ’ chhauve ne puchha.
main tumhein ek geet sikhati hoon. tum is geet ko ga gha kar bheekh mangna. tumhein bheekh avashya milegi. ’ ye kahkar hirni ne apne chhauve ko ek geet sikhaya.
arthat meri maan van ki hirni hai. mere pita raja vikramaditya hain. mujhe matayen, bahnen bheekh de den.
ye geet sunkar striyan apne gharon se nikal ain aur unhonne bhanti bhanti ke khadya padarthon se chhauve ka tuma bhar diya. jab tume mein jagah nahin bachi to kapDe ki potli mein baandh kar de diya.
din bhar bheekh mangne ke baad shaam hote hi chhauva pipal ke peD ke niche ja pahuncha. hirni pahle se hi uski prtiksha kar rahi thi. chhauve ne tume se bhojan nikala. usmen dahi aur chiuDa tha. chhauve ne dahi chiuDa apni hirni maan ko diya. dahi chiuDa khate hue hirni ki ankhen bhar ain. usne sneh se apne chhauve ko chaat chaat kar prem jataya. iske baad ve donon vahin peD ke niche so ge. bhor hote hi chhauva phir nikal paDa bheekh mangne.
pichhle din poorv disha mein gaya tha. ab wo pashchim disha mein gaya. yahan bhi use bahut sari bheekh mili. tisre din chhauva uttar disha mein gaya. vahan bhi use bahut bheekh mili. chauthe din usne socha ki main teen dishaon mein to ho aaya lekin chauthi disha mein nahin gaya hoon. bhale hi maan ne mana kiya hai lekin ek baar jane mein koi harz nahin hai. ye vichar karte hue chhauva chauthe din dakshin disha ki or chal paDa.
dakshin disha mein ek gaanv paDa. chhauve ne geet ga ga kar bheekh mangna shuru kiya—
geet sunkar log apne apne gharon se nikal aaye. unhonne chhauve se baar baar uska geet suna aur use bahut sa bhojan bheekh mein diya. gaanv valon ko ye sunkar ashcharya ho raha tha ki chhauva apne geet mein raja vikramaditya ko apna pita kah raha hai jo ki unke raja hain. unmen se ek adami ne chhauve ko apne raja ke paas chalne ko kaha.
‘yadi hamare raja tumhara geet sunkar prasann ho ge to wo tumhein itna sara iinam denge ki tumhein kabhi bheekh nahin mangni paDegi aur tum apni maan ke saath sukh se rah sakoge. ’ us adami ne chhauve ko samjhaya.
chhauva us adami ke saath jane ko taiyar ho gaya. chalte chalte ve donon raja ke mahl mein pahunche. us adami ne raja se nivedan kiya ki ve chhauve ka gana sun len. raja ne kaha ki ‘theek hai, sunao!’
geet sunkar raja chakit rah gaya. usne us adami ko iinam dekar bhej diya aur chhauve ko rok liya.
‘yah geet tumne likha hai?’ raja ne puchha.
‘nahin ye to meri maan ne mujhe sikhaya hai. ’ chhauve ne kaha.
‘tumhari maan kaun hai? aur tumhare pita kaun hain?’ raja ne puchha.
‘pita ko to mainne kabhi nahin dekha lekin meri maan ek hirni hai. usi ne mujhe apna doodh pila kar paal pos kar baDa kiya hai. usi ne kaha tha ki ye geet ga kar bheekh mangna lekin dakshin disha mein kabhi mat jana. mainne apni maan ka kahna nahin mana aur dakshin disha mein aa gaya hoon. ab meri maan mujh par krodhit hogi. ’ chhauve ne bholpan se raja ko sab kuch bata diya.
raja ko laga ki chhauve ki baat mein avashya koi rahasya chhipa hua hai. usne chhauve ke saath jane ka nishchay kiya. raja ne vesh badla aur chhauve ke saath pipal ke peD ke niche pahuncha. hirni chhauve se milne ke liye peD ke niche pahle hi aa pahunchi thi kintu chhauve ke saath kisi aprichit ko dekhkar wo chhip gai. raja ne bahut prtiksha ki lekin hirni samne nahin aai. thak haar kar raja apne mahl laut gaya kintu jate jate chhauve ko dusre din apne mahl aane ka nimantran de gaya.
raja ke jane ke baad hirni ot se bahar aai. wo chhauve ko chatti dularti rahi. usne raja ke bare mein kuch nahin puchha kyonki use laga ki wo chhauve ka koi manushya mitr tha. wo vesh badle hue raja ko pahchan nahin saki. chhauve ne khane ka saman nikala. use mahl se achchhe achchhe pakvan mile the. usne apni maan ke saath milkar pakvan khaye aur maan beta donon vahin so ge.
bhor hone par chhauva bheekh mangne nikal paDa. use raja ka nimantran yaad aaya. wo sidhe raja ke mahl mein ja pahuncha. raja uski prtiksha kar raha tha. raja ne use khilaya pilaya, achchhe kapDe aur abhushan pahanvaye. iske baad use apne mahl ke bahar ek kothari mein band kar diya. shaam ho gai to chhauve ko maan ki yaad aane lagi.
‘meri maan bhukhi hogi. mujhe apni maan ke paas jane dijiye. ’ chhauve ne raja se kaha.
‘main tumhein nahin jane dunga. jab tumhari maan tumhein DhunDhti hui yahan ayegi to main
usse milunga. ’ raja ne kaha aur apne mahl mein chala gaya.
idhar hirni ne bahut der tak prtiksha ki. jab chhauva nahin aaya to wo vyakul ho uthi. uska mamtamyi hriday tarah tarah ki ashankaon se grast ho utha aur wo chhauve ki khoj mein nikal paDi. wo chhauve ko pukarti hui pahle poorv mein gai.
kanegel beta, ka bhele re
ka karan beta ni ghurle re. . .
arthat beta, tum kahan chale ge? tumhein kya ho gaya? kis karan se tum aa nahin pa rahe ho? ye geet ga ga kar hirni chhauva ko pukarti hui pashchim aur uttar mein bhi gai. tinon dishaon mein chhauva na milne par wo dakshin disha mein chal paDi. raja ke mahl ke paas pahunchakar usne pukar lagai—
kanegel beta, ka bhele re
ka karan beta ni ghurle re. . .
kothi mein band chhauve ne apni maan ka svar suna to wo bahar nikalne ko vyakul ho utha. jab use bahar nikalne ka koi rasta nahin mila to usne apni maan ke geet ka uttar dete hue kaha—
ihaan ahon aiyo, jehele re
bina karne aiyo bandhalon re. . .
arthat main jahan hoon wo bandigrih hai aur main usmen akaran bandi bana diya gaya hoon. chhauve ka uttar sunkar hirni ko bahut dukh hua. wo sidhe raja ke paas pahunchi.
‘mere chhauve ko aapne bandi kyon banaya? uska kya dosh hai?’ hirni ne raja se puchha.
‘uska koi dosh nahin hai. main tumse milna chahta tha isliye use bandi banaya. ab tum mujhe ye batao ki tumne use jo geet sikhaya hai usmen pita ke roop mein mera naam kyon joDa hai? wo meri tarah dikhai deta hai lekin main tumhein janta tak nahin hoon. ismen kya rahasya hai?’ raja ne hirni se puchha.
‘ismen rahasya kuch nahin hai. aap hi uske pita hain. ’ hirni ne raja ko puri kahani suna di ki kis prakar usne gaDDhe ka pani piya aur pani ka svaad khara hone par use sandeh hua. usne pichha kiya to pata chala ki raja vikramaditya ka mootr use gaDDhe ke pani mein mil gaya tha. garbhavti hone par wo samajh gai ki uske garbh mein raja ki santan hai.
hirni se vastavikta jankar raja bhavavibhor ho utha ki chhauva uska apna putr hai aur hirni uski rani ke saman hai. usne aage baDhkar hirni ko prem se gale laga liya. gale lagate hi ek chamatkar ho gaya. hirni sundar rupavti stri mein badal gai.
‘ab ye kya rahasya hai?’ raja ne chakit hote hue puchha.
rahasya ye hai ki main devraj indr ki sabha ki apsara menka hoon. ek din mainne rishi vishvamitr ko dekha to unki veshbhusha ko dekhkar mujhe hansi aa gai. rishi vishvamitr krodhit ho uthe aur unhonne mujhe hirni bankar prithvi par rahne ka shaap de diya. mainne unse kshama mangi tatha shaap mukt karne ka nivedan kiya to unhonne kaha ki jis din koi raja tumhein apni patni ke roop mein prem se gale lagayega us din tumhein tumhara asli roop mil jayega. ab aapne mujhe apni patni ke roop mein apne gale lagaya to mujhe apna asli roop mil gaya. ab aap apne putr ko sambhaliye aur mujhe jane ki anumti dijiye. ’ stri ke roop mein parivartit hirni ne kaha.
iske baad hirni apne chhauve se gale lag kar mili aur raja tatha chhauve se vida lekar svargalok chali gai. raja ne chhauve ka rajakumaron jaisa lalan palan kiya aur apne baad use raja bana diya.
raja ka naam tha vikramaditya. raja vikramaditya ek din shikar khelne jangal gaya. shikar khelte khelte dopahar ho gai. raja vikramaditya ne bhojan kiya aur Dher sara pani piya. thoDi der baad use laghushanka ki ichchha utpann hui. raja ne apna dhanush baan ek or tikaya aur apne sipahiyon se door, ghani jhaDiyon ke pichhe laghu shanka karne baith gaya. laghushanka karne ke baad wo vapas apne sipahiyon ke paas pahuncha aur apna dhanush baan utha kar aage chal paDa.
raja vikramaditya ne jahan laghushanka ki thi vahin paas mein ek pani ka gaDDha tha. raja ka mootr bah kar us gaDDhe mein chala gaya. tabhi ek hirni charti hui udhar aai. use pyaas lagi thi. usne us gaDDhe ka pani pi liya jismen raja ka mootr mila hua tha. kuch din baad hirni garbhavti hui. garbhakal pura hone par hirni ne ek sundar chhauve ko janm diya. kintu ye chhauva hiran ka chhauva na hokar manushya ka chhauva tha. ye dekhkar hirni Dar gai. use laga ki yadi anya hiran hiraniyon ko is bare mein pata chalega to ve uska uphaas karenge. usne apne chhauve ko patton se Dhaank diya.
ab hirni ghaas paat charkar aati aur patton mein chhipe hue apne chhauve ko doodh pilati. is prakar patton mein chhipe chhipe doodh pita hua hirni ka chhauva baDa hone laga. kuch samay baad wo chalne phirne layak ho gaya. wo manushyon ki boli mein bolne laga.
kuch din baad jab chhauva aur baDa ho gaya to hirni ko laga ki ab chhauve ko manushyon ka bhojan milna chahiye. ab hirni to manushyon ka bhojan pakana janti nahin thi atah usne apne chhauve ko apne paas bitha kar pyaar se samjhaya, ‘beta, ab tum baDe ho ge ho. tum ho to mere bete lekin tum manushya ho atah tumhein manushyon ka bhojan karna chahiye. isliye tum aisa karo ki ye tuma (sukhe kumhDe ka khol) lo, ye dhoti lo aur ye lathi lo. inhen lekar ganvon mein jao aur bheekh mangakar apne liye bhojan praapt karo. lekin ek baat dhyaan mein rakhna ki tum poorv mein jana, pashchim mein jana, uttar mein jana kintu dakshin mein kabhi mat jana. main pratidin shaam ko gaanv aur jangal ke beech vale pipal ke peD ke niche
milne aaya karungi. ’
‘vah to theek hai maan! lekin mujhe ye to batao ki manushya kis tarah bheekh
mangte hain? mujhe to bheekh mangna aata hi nahin hai. ’ chhauve ne puchha.
main tumhein ek geet sikhati hoon. tum is geet ko ga gha kar bheekh mangna. tumhein bheekh avashya milegi. ’ ye kahkar hirni ne apne chhauve ko ek geet sikhaya.
arthat meri maan van ki hirni hai. mere pita raja vikramaditya hain. mujhe matayen, bahnen bheekh de den.
ye geet sunkar striyan apne gharon se nikal ain aur unhonne bhanti bhanti ke khadya padarthon se chhauve ka tuma bhar diya. jab tume mein jagah nahin bachi to kapDe ki potli mein baandh kar de diya.
din bhar bheekh mangne ke baad shaam hote hi chhauva pipal ke peD ke niche ja pahuncha. hirni pahle se hi uski prtiksha kar rahi thi. chhauve ne tume se bhojan nikala. usmen dahi aur chiuDa tha. chhauve ne dahi chiuDa apni hirni maan ko diya. dahi chiuDa khate hue hirni ki ankhen bhar ain. usne sneh se apne chhauve ko chaat chaat kar prem jataya. iske baad ve donon vahin peD ke niche so ge. bhor hote hi chhauva phir nikal paDa bheekh mangne.
pichhle din poorv disha mein gaya tha. ab wo pashchim disha mein gaya. yahan bhi use bahut sari bheekh mili. tisre din chhauva uttar disha mein gaya. vahan bhi use bahut bheekh mili. chauthe din usne socha ki main teen dishaon mein to ho aaya lekin chauthi disha mein nahin gaya hoon. bhale hi maan ne mana kiya hai lekin ek baar jane mein koi harz nahin hai. ye vichar karte hue chhauva chauthe din dakshin disha ki or chal paDa.
dakshin disha mein ek gaanv paDa. chhauve ne geet ga ga kar bheekh mangna shuru kiya—
geet sunkar log apne apne gharon se nikal aaye. unhonne chhauve se baar baar uska geet suna aur use bahut sa bhojan bheekh mein diya. gaanv valon ko ye sunkar ashcharya ho raha tha ki chhauva apne geet mein raja vikramaditya ko apna pita kah raha hai jo ki unke raja hain. unmen se ek adami ne chhauve ko apne raja ke paas chalne ko kaha.
‘yadi hamare raja tumhara geet sunkar prasann ho ge to wo tumhein itna sara iinam denge ki tumhein kabhi bheekh nahin mangni paDegi aur tum apni maan ke saath sukh se rah sakoge. ’ us adami ne chhauve ko samjhaya.
chhauva us adami ke saath jane ko taiyar ho gaya. chalte chalte ve donon raja ke mahl mein pahunche. us adami ne raja se nivedan kiya ki ve chhauve ka gana sun len. raja ne kaha ki ‘theek hai, sunao!’
geet sunkar raja chakit rah gaya. usne us adami ko iinam dekar bhej diya aur chhauve ko rok liya.
‘yah geet tumne likha hai?’ raja ne puchha.
‘nahin ye to meri maan ne mujhe sikhaya hai. ’ chhauve ne kaha.
‘tumhari maan kaun hai? aur tumhare pita kaun hain?’ raja ne puchha.
‘pita ko to mainne kabhi nahin dekha lekin meri maan ek hirni hai. usi ne mujhe apna doodh pila kar paal pos kar baDa kiya hai. usi ne kaha tha ki ye geet ga kar bheekh mangna lekin dakshin disha mein kabhi mat jana. mainne apni maan ka kahna nahin mana aur dakshin disha mein aa gaya hoon. ab meri maan mujh par krodhit hogi. ’ chhauve ne bholpan se raja ko sab kuch bata diya.
raja ko laga ki chhauve ki baat mein avashya koi rahasya chhipa hua hai. usne chhauve ke saath jane ka nishchay kiya. raja ne vesh badla aur chhauve ke saath pipal ke peD ke niche pahuncha. hirni chhauve se milne ke liye peD ke niche pahle hi aa pahunchi thi kintu chhauve ke saath kisi aprichit ko dekhkar wo chhip gai. raja ne bahut prtiksha ki lekin hirni samne nahin aai. thak haar kar raja apne mahl laut gaya kintu jate jate chhauve ko dusre din apne mahl aane ka nimantran de gaya.
raja ke jane ke baad hirni ot se bahar aai. wo chhauve ko chatti dularti rahi. usne raja ke bare mein kuch nahin puchha kyonki use laga ki wo chhauve ka koi manushya mitr tha. wo vesh badle hue raja ko pahchan nahin saki. chhauve ne khane ka saman nikala. use mahl se achchhe achchhe pakvan mile the. usne apni maan ke saath milkar pakvan khaye aur maan beta donon vahin so ge.
bhor hone par chhauva bheekh mangne nikal paDa. use raja ka nimantran yaad aaya. wo sidhe raja ke mahl mein ja pahuncha. raja uski prtiksha kar raha tha. raja ne use khilaya pilaya, achchhe kapDe aur abhushan pahanvaye. iske baad use apne mahl ke bahar ek kothari mein band kar diya. shaam ho gai to chhauve ko maan ki yaad aane lagi.
‘meri maan bhukhi hogi. mujhe apni maan ke paas jane dijiye. ’ chhauve ne raja se kaha.
‘main tumhein nahin jane dunga. jab tumhari maan tumhein DhunDhti hui yahan ayegi to main
usse milunga. ’ raja ne kaha aur apne mahl mein chala gaya.
idhar hirni ne bahut der tak prtiksha ki. jab chhauva nahin aaya to wo vyakul ho uthi. uska mamtamyi hriday tarah tarah ki ashankaon se grast ho utha aur wo chhauve ki khoj mein nikal paDi. wo chhauve ko pukarti hui pahle poorv mein gai.
kanegel beta, ka bhele re
ka karan beta ni ghurle re. . .
arthat beta, tum kahan chale ge? tumhein kya ho gaya? kis karan se tum aa nahin pa rahe ho? ye geet ga ga kar hirni chhauva ko pukarti hui pashchim aur uttar mein bhi gai. tinon dishaon mein chhauva na milne par wo dakshin disha mein chal paDi. raja ke mahl ke paas pahunchakar usne pukar lagai—
kanegel beta, ka bhele re
ka karan beta ni ghurle re. . .
kothi mein band chhauve ne apni maan ka svar suna to wo bahar nikalne ko vyakul ho utha. jab use bahar nikalne ka koi rasta nahin mila to usne apni maan ke geet ka uttar dete hue kaha—
ihaan ahon aiyo, jehele re
bina karne aiyo bandhalon re. . .
arthat main jahan hoon wo bandigrih hai aur main usmen akaran bandi bana diya gaya hoon. chhauve ka uttar sunkar hirni ko bahut dukh hua. wo sidhe raja ke paas pahunchi.
‘mere chhauve ko aapne bandi kyon banaya? uska kya dosh hai?’ hirni ne raja se puchha.
‘uska koi dosh nahin hai. main tumse milna chahta tha isliye use bandi banaya. ab tum mujhe ye batao ki tumne use jo geet sikhaya hai usmen pita ke roop mein mera naam kyon joDa hai? wo meri tarah dikhai deta hai lekin main tumhein janta tak nahin hoon. ismen kya rahasya hai?’ raja ne hirni se puchha.
‘ismen rahasya kuch nahin hai. aap hi uske pita hain. ’ hirni ne raja ko puri kahani suna di ki kis prakar usne gaDDhe ka pani piya aur pani ka svaad khara hone par use sandeh hua. usne pichha kiya to pata chala ki raja vikramaditya ka mootr use gaDDhe ke pani mein mil gaya tha. garbhavti hone par wo samajh gai ki uske garbh mein raja ki santan hai.
hirni se vastavikta jankar raja bhavavibhor ho utha ki chhauva uska apna putr hai aur hirni uski rani ke saman hai. usne aage baDhkar hirni ko prem se gale laga liya. gale lagate hi ek chamatkar ho gaya. hirni sundar rupavti stri mein badal gai.
‘ab ye kya rahasya hai?’ raja ne chakit hote hue puchha.
rahasya ye hai ki main devraj indr ki sabha ki apsara menka hoon. ek din mainne rishi vishvamitr ko dekha to unki veshbhusha ko dekhkar mujhe hansi aa gai. rishi vishvamitr krodhit ho uthe aur unhonne mujhe hirni bankar prithvi par rahne ka shaap de diya. mainne unse kshama mangi tatha shaap mukt karne ka nivedan kiya to unhonne kaha ki jis din koi raja tumhein apni patni ke roop mein prem se gale lagayega us din tumhein tumhara asli roop mil jayega. ab aapne mujhe apni patni ke roop mein apne gale lagaya to mujhe apna asli roop mil gaya. ab aap apne putr ko sambhaliye aur mujhe jane ki anumti dijiye. ’ stri ke roop mein parivartit hirni ne kaha.
iske baad hirni apne chhauve se gale lag kar mili aur raja tatha chhauve se vida lekar svargalok chali gai. raja ne chhauve ka rajakumaron jaisa lalan palan kiya aur apne baad use raja bana diya.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 9)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।