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आम के विवाह में सागौन फूला फिरे

aam ke vivah mein sagaun phula phire

सौंर जनजाति में यह परंपरा है कि जब दो आम के वृक्षों पर पहली बार बौर आते हैं तो उनका परस्पर विवाह किया जाता है। यह विवाह उतनी ही धूम-धाम से होता है जितना कि पुत्र-पुत्री का विवाह धूम-धाम से किया जाता है। जिन दिनों आम में बौर आते हैं संयोगवश उन्हीं दिनों सागौन में भी फूल आते हैं। किंतु यह कहानी उस समय से आरंभ होती है जिन दिनों आम के साथ सागौन में फूल नहीं आते थे।

बात बहुत समय पहले की है। एक गाँव में आम का एक पौधा उगा। आम का वह पौधा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। जब वह जवान हो गया तो उसे अपना एकाकीपन खलने लगा। वह उदास रहने लगा। उसके उदास रहने से उसके पत्ते जल्दी टूटने लगे तथा उसकी शाखाएँ निढाल दिखाई पड़ने लगीं। गाँव वालों ने आम के पेड़ की यह दशा देखी तो वे चिंतित हो उठे। उन्होंने आपस में विचार-विमर्श किया और तब गाँव के पंचों ने सोचा कि क्यों आम के पेड़ से ही उसके दुख का कारण पूछ लिया जाए। सभी पंच आम के पेड़ के पास पहुँचे।

‘आम-आम, तुम्हारे दुख का कारण क्या?’ सरपंच ने पूछा।

‘मुझे यहाँ अकेले खड़ाकर दिया और मुझसे पूछते हो कि मेरे दुख का कारण क्या है? वाह! यह भी ख़ूब रही।’ आम के पेड़ ने व्यंग्य से कहा।

आम का उत्तर सुनकर सरपंच सहित सभी पंच समझ गए कि आम के पेड़ के दुख का कारण उसका अकेलापन है। वे चौपाल में बैठकर विचार-विमर्श करने लगे कि आम का अकेलापन दूर करने का क्या उपाय किया जाए? बड़ा सभी ने अपने-अपने सुझाव दिए। अंतत: तय किया गया कि आम के पेड़ के आस-पास एक उत्सव आयोजित किया जाए जिससे आम के पेड़ का मनोरंजन हो और उसे अकेलेपन का अनुभव हो।

गाँव में एक सप्ताह तक उत्सव मनाया जाता रहा। आम के पेड़ में नए पत्ते गए और उसकी डालियाँ प्रसन्न दिखाई देने लगीं। उत्सव समाप्त होने पर सब कुछ पहले जैसा हो गया। आम का पेड़ फिर एक बार अकेलेपन से त्रस्त रहने लगा। उसके पत्ते मुरझाने लगे और शाखाएँ निढाल हो गईं। गाँव वालों ने पुन: मंत्रणा की। एक सयाने ने सलाह दी कि ‘हम भला कितने दिन उत्सव मना सकते हैं? उत्सव मनाने के लिए तो हमारे पास ढेर सारा पैसा है और ही बहुत अधिक समय। वैसे भी प्रत्येक प्राणी को अपने जैसे प्राणी का साथ रुचिकर लगता है। अत: हमें उसके पास एक और पेड़ लाकर लगा देना चाहिए।’

सभी को उस सयाने का सुझाव पसंद आया। गाँव के कुछ युवा उस सयाने के साथ जंगल गए। वहाँ उन्होंने आम के पेड़ की आयु का एक सागौन का पेड़ ढूँढ़ निकाला। उस सागौन के पेड़ को जड़ से उखाड़ा और गाँव में लाकर आम के पेड़ के पास लगा दिया। आम के पेड़ ने सागौन के पेड़ को देखा तो बहुत प्रसन्न हुआ। जल्दी ही दोनों में मित्रता हो गई। इसका प्रभाव भी दिखाई देने लगा। आम के पेड़ के पत्ते हरे हो गए और शाखाएँ चुस्त-दुरुस्त हो गईं।

कुछ दिन तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। आम के पेड़ और सागौन के पेड़ घनिष्ठ मित्रों की भाँति आपस में बातें करते और राहगीरों पर अपनी शाखाओं पर लगे पत्तों से पंखा झलते रहते। कुछ समय बाद एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आम के पेड़ में फूल अर्थात् बौर गए। वह पहले से अधिक सुंदर दिखाई देने लगा। लेकिन गाँव वालों को यह देखकर अचंभा हुआ कि आम के पेड़ का मन पुन: उदास रहने लगा। उसके पत्ते झड़ने लगे। गाँव वालों ने आम के पेड़ से पूछा कि अब कौन-सा दुख है?

'मुझे एक साथी चाहिए।’ आम के पेड़ ने कहा।

‘तुम्हारे साथ के लिए सागौन तो है।’ गाँव वालों ने समझाया।

‘नहीं, मुझे मेरे जैसा साथी चाहिए।’ आम के पेड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा।

गाँव के सयाने को आम के पेड़ की समस्या समझ में गई। उसने सुझाव दिया कि आम के पेड़ के साथ के लिए एक और आम का पेड़ लाना चाहिए।

‘अच्छा होगा कि हम पास के गाँव से आम का पेड़ ले आएँ। मैंने देखा है कि वहाँ आम का एक पेड़ लगा हुआ है और वह लगभग हमारे पेड़ की आयु का है।’ सयाने ने कहा।

गाँव के युवा उस सयाने को लेकर पड़ोस के गाँव पहुँचे। पड़ोसी गाँववालों ने अपना आम का पेड़ देना स्वीकार तो कर लिया लेकिन एक शर्त रखी।

‘तुम्हें हमारे आम के पेड़ का विवाह अपने आम के पेड़ के साथ करना होगा तभी हम अपना आम का पेड़ ले जाने देंगे अन्यथा नहीं ले जाने देंगे। पड़ोसी गाँववालों ने कहा।

ऐसी बात पर भला किसी को क्या आपत्ति होती? दोनों गाँव वालों ने धूम-धाम से विवाह की तैयारियाँ कीं और शुभ मुहूर्त्त देखकर दोनों आम के पेड़ों का परस्पर विवाह कर दिया। अब आम का पेड़ अपने जैसा साथी पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और देखते ही देखते उसमें फल गए। पूरे गाँव में आम के पेड़ की पूछ बढ़ गई। सागौन ने देखा कि आम पर बौर आने पर गाँव वालों ने उसका विवाह कर दिया तो उसने सोचा कि यदि मैं भी फूलने लगूँ तो मेरा भी विवाह करा दिया जाएगा और मुझे भी जीवनसाथी मिल जाएगा।

नकल करने भर से क्या होता? सागौन फूल गया। मगर किसी ने भी उसके विवाह के बारे में नहीं सोचा। उलटे सभी उसे देखकर उस पर व्यंग करते कि ‘देखो तो, आम के ब्याह में सागौन फूला फिर रहा है।’

गाँववालों द्वारा व्यंग्य किए जाने पर सागौन को अपनी भूल का अनुभव तो हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पक्षियों द्वारा सागौन के फूलने का समाचार सभी सागौनों तक पहुँच चुका था और वे भी फूलने लगे थे।

वह गाँव सौंरों का था। इसीलिए सौंरों में उसी समय से आम के पेड़ों में परस्पर विवाह कराया जाने लगा तथा यह कहावत चल निकली कि ‘आम के विवाह में सागौन फूला फिरे’।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 88)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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