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गोनू झा की चतुराई

gonu jha ki chaturai

बहुत समय पहले की बात है। जैसा कि उस ज़माने में अमूमन होता था, विद्वान लोगों को विद्वता की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता था। इसके लिए राजा की तरफ़ से या वैसे भी शास्त्रार्थ का आयोजन किया जाता था। विद्वान लोग अपने बुद्धि चातुर्य से एक-दूसरे की बात काटते थे।

इसी तरह से एक बार राजा के दरबार में किसी विषय पर भारी शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया। राजा ने जीतने वाले विद्वान को इनाम में सौ बीघा ज़मीन देने का एलान किया था। हर गाँव-शहर से लोग शास्त्रार्थ के लिए राजा के दरबार में पहुँच रहे थे।

गोनू झा भी एक विद्वान व्यक्ति थे। कई मामलों में गाँव वालों को उनके चातुर्य-कौशल का पता चला था। गाँव वालों ने उनसे शास्त्रार्थ में भाग लेने का आग्रह किया। गोनू झा ने कहा, “यह राजा शास्त्रार्थ को तीतर-बटेर की लड़ाई समझता है। मैं ऐसे शास्त्रार्थ में नहीं जाऊँगा।”

गाँव वाले गोनू झा की विद्वता के कायल थे। उन्हें उन पर पूरा भरोसा था। इसलिए उनसे शास्त्रार्थ के लिए जाने का आग्रह किया। गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग सब लोगों ने उनका काफ़ी मान-मनौव्वल किया। उन्होंने गोनू झा को समझाया, “यदि आप इस बार शास्त्रार्थ में जीत गए तो बस यह समझ लीजिए कि आपकी ग़रीबी हमेशा के लिए समाप्त हो गई। सौ बीघे की जोत तो इस पूरे इलाक़े में किसी के भी पास नहीं है।”

अंततः गोनू झा शास्त्रार्थ के लिए जाने को तैयार हो गए। उन्होंने शास्त्रार्थ में सबको हरा दिया। अब राजा को घोषणा के मुताबिक गोनू झा को सौ बीघे ज़मीन देनी थी। राजा के दरबारियों ने उनके कान भर दिए। उनके षड़यंत्र में पड़कर राजा ने वर्षों से बंजर पड़ी ज़मीन में से गोनू झा को सौ बीघे ज़मीन दे दी। गाँव वालों ने जब वह ज़मीन देखी तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। वह ज़मीन इतनी ऊसर थी कि कहीं घास भी नज़र नहीं रही थी। कोई भी मज़दूर उस ज़मीन में हाथ नहीं लगाता।

इस पर गोनू झा ने गाँव वालों को समझाते हुए कहा, “आप लोग चिंता मत करिए, एक-दो दिन में ही इसका कुछ-न-कुछ उपाय निकल आएगा। बस आप लोग गाँव में यही कहिएगा कि गोनू झा भारी शास्त्रार्थ जीतकर आए हैं।” सबने गोनू झा की बात मानी और गाँव वालों को वैसा ही बताया, जैसा उन्होंने कहा था।

यह बात गाँव में आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते बात चोरों की टोली तक पहुँच गई। गोनू झा ने ख़ुद भी दिन भर घूम-घूमकर अपनी विजय गाथा और राजा द्वारा किए गए भारी-भरकम मान-सम्मान की बात बढ़-चढ़कर लोगों को बताई। रात होने पर गोनू झा घर पहुँचे। जैसा उन्होंने सोचा था, उसी तरह बिछाए जाल के अनुसार सब कुछ हो रहा था। कुछ हलचल हुई तब वह समझ गए कि चोर गए हैं। तभी पत्नी ने पूछा, “चार दिन कहाँ से बेगारी कर घर लौटे हैं?”

उन्होंने कहा, “पहले लोटा दीजिए, खाना लगाइए, तब बताता हूँ।” “खाना कहाँ से बनाती, तेल-मसाला तो ख़त्म हो गया है। कहिए तो चूड़ा-दही दे दूँ,” पत्नी ने कहा।

इस पर उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं। आज भर चूड़ा-दही ही दे दो। कल से पूआ-पूड़ी और बाक़ी बढ़िया-बढ़िया पकवान भी खाएँगे।”

“कोई ख़ज़ाना हाथ लग गया है क्या?” पत्नी ने झल्लाते हुए पूछा।

“धीरे बोलिए, धीरे। एक ख़ज़ाना नहीं, सैकड़ों ख़ज़ाने। राजा ने कई पुश्तों का ख़ज़ाना ख़ुश होकर मुझे उपहार में दे दिया है।”

“क्या कह रहे हैं, खुलकर समझाइए”, गोनू झा की पत्नी ने पूछा।

अब तक तो चोरों के कान खुलकर सूप जैसे हो गए थे। वे गोनू झा के घर की दीवार से कान सटाए, साँस रोककर ख़ज़ाने का राज़ सुनना चाहते थे।

गोनू झा भी कम चतुर नहीं थे। उन्होंने अपनी पत्नी को दीवार की तरफ़ ले जाते हुए बोला, “आप तो जानती ही हैं। हर बार मैं शास्त्रार्थ जीतकर आता हूँ, तो राजा-महाराजा मुझे सोना-चाँदी, अशर्फ़ी देकर भेजते हैं और चोर सेंध मारने के लिए ताक लगाए रहते हैं। हमने इस बार राजा से कहा कि हमें घर ले जाने के लिए कुछ मत दीजिए। आप लोगों की दी हुई चीज़ें हमारी रात की नींदें उड़ा देती हैं।”

“तो फिर कुछ दिया भी या आप बस ज्ञान ले-देकर गए”, गोनू झा की पत्नी की चिंता जायज़ ही थी। इधर चोरों की जिज्ञासा भी उनकी पत्नी के साथ बढ़ रही थी।

गोनू झा ने विस्तार से बताना शुरू किया, “सुनिए, राजा के पूर्वज हज़ारों सालों से अपने ख़ज़ाने एक सुरक्षित राजकीय भूमि के अंदर छुपाते आए हैं। अब तक वह ख़ज़ाना सौ बीघे में दबाया जा चुका है। चूँकि ज़मीन बंजर है, इसलिए भूल से उधर कोई भैंस चराने भी नहीं जाता है। राजा ने वह सौ बीघे ज़मीन मुझे दे दी है। हमें जब भी ज़रूरत पड़ेगी एक तोला सोना खोदकर ले आएँगे, अब समझिए हमारी आने वाली सौ पुश्तें बैठकर आराम से ज़िंदगी बसर कर सकती हैं।

“पर, वह है कहाँ?” गोनू झा की पत्नी ने पूछा।

“वह आपको बताऊँगा। आप बहुत ख़र्चीली हैं और कोई बात आपके पेट में पचती भी नहीं,” गोनू झा ने कहा।

“वह तो ठीक है, पर भगवान करें, आपको कुछ हो गया तो सौ पुश्तों के लिए धन रहते हुए भी हम सब भूखे मर जाएँगे।” पत्नी की इस बात पर कुढ़ते हुए गोनू झा ने फुसफुसाते हुए वह जगह बता दी, जहाँ राजा ने गोनू झा को ज़मीन दी थी।

“आप सुबह ही जाकर एक तोला सोना तो ले ही आइए।” पत्नी ने गोनू झा से कहा।

“ठीक है, पर अब मुझे कुछ खाने के लिए दो। मैं थका हुआ हूँ। सुबह सूरज निकलने से पहले ही मैं जाकर एक तोला सोना ले आऊँगा।”

इधर गोनू झा की बात पूरी हुई और उधर सारे चोर उड़न-छू हो गए। वे एक-दो तोला नहीं, सारा दबा ख़ज़ाना निकाल लेना चाहते थे। उन्होंने चोरों की टोली से एक-एक चोर को बुला लिया और सब कुदाल-खँती लेकर उस बंजर खेत में कूद पड़े। पूरी ताक़त लगाकर और बिजली की फूर्ती से वे खेत खोदने में लग गए।

चोरों ने सूरज निकलने से पहले ही सारा खेत खोद डाला, पर ख़ज़ाना तो दूर, एक कौड़ी भी नहीं मिली। इससे पहले कि वे गोनू झा की चतुराई और अपनी बेवक़ूफ़ी पर खीझते, गोनू झा खखसते हुए आते दिखाई पड़े। उनको देखते ही सारे चोर नौ-दो ग्यारह हो गए।

उसके बाद गोनू झा अपने दस-बारह मज़दूर और बीज लेकर आए। उन्होंने खेत में बीज डाल दिया। उस साल और उसके बाद भी गोनू झा के खेत में इतनी उपज हुई कि सचमुच उनकी दरिद्रता ही मिट गई। सारे गाँव के लोग गोनू झा की बुद्धिमत्ता और उनकी चतुराई के कायल हो गए।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 20)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019

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