Font by Mehr Nastaliq Web

लोमड़ी की युक्ति

lomDi ki yukti

एक दिन एक मगरमच्छ नदी के किनारे रेत पर लेटा हुआ था। उसके बच्चे भी वहीं पास में ही खेल रहे थे। तभी एक लोमड़ी वहाँ आई। मगर के बच्चों को देख कर लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह उन्हें खाने की युक्ति सोचने लगी। मगर के पास जाकर उसे 'राम-राम' किया। फिर इधर-उधर की तमाम बातें करती रही। मौक़ा देख कर उसने मगरमच्छ से कहा, तुम अपने बच्चों को पढ़ने क्यों नहीं भेजते? मेरे बच्चों को देखो। रोज़ पढ़ने जाते हैं। उसकी बात सुन कर मगर बोला,मेरे बच्चों को भी पढ़ाने ले जाओ।

यह सुन कर लोमड़ी ख़ुश हो गई। मगर ने कहा,ऐसा करो। पहले बड़े बच्चे को ले जाओ। यह पढ़ ले तब फिर दूसरों को भी ले जाना।

लोमड़ी ने हामी भरी और बड़े बच्चे को ले गई। अपने डेरे पर ला कर उसने उस बच्चे को मार डाला और खा गई।

दूसरे दिन नदी के किनारे पहुँची तो मगर ने पूछा,क्यों भई,क्या हाल है मेरे बच्चे का?

लोमड़ी बोली,वह तो बड़ा ही होशियार निकला। रामायण-पुराण आदि इतनी सरलता से पढ़ लेता है कि मेरे बच्चे भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते।

यह सुन कर मगर बड़ा ख़ुश हुआ और दूसरे बच्चे को भी लोमड़ी के साथ भेज दिया। लोमड़ी उसे भी मार कर खा गई। इसी तरह लोमड़ी ने मगर के पांचों बच्चों को मार कर खा लिया। कुछ दिनों बाद वह फिर नदी के किनारे पहुँची तो मगर ने पूछा,केसी चल रही है बच्चों की पढ़ाई? अब तो काफ़ी बड़े भी हो गए होंगे मेरे बच्चे?

लोमड़ी को उसकी कमअक़्ली पर हँसी गई। वह हँसते हुए बोली,कभी मगर के बच्चे भी पढ़-लिख सकते हैं? अरे! उन्हें तो मैंने मार कर खा लिया। और वहाँ से भाग गई। मगर ग़ुस्से से दाँत किटकिटाता रह गया।

अब वह लोमड़ी की ताक में रहने लगा। दूसरे दिन लोमड़ी को आते देख कर मगरमच्छ साफ़ पानी को छोड़ कर दूसरी जगह चला गया और पानी को गंदा कर के पड़ा रहा। लोमड़ी आई। देखा,नदी में बाकी सभी जगह का पानी साफ़ है किंतु एक किनारे का पानी गंदा है। वह मगर की चालाकी समझ गई। बड़े लोगों ने कहा है कि आज गंदा नहीं बल्कि साफ़ पानी पीना चाहिए” कहते हुए वह साफ़ पानी की ओर गई। भर-पेट पानी पीया और भाग गई। मगर फिर से हाथ मलता रह गया।

एक दिन फिर जब लोमड़ी आई तो मगर ने अपने आप को एक पेड़ की जड़ में छिपा लिया और चुपचाप सिमटा पड़ा रहा। लोमड़ी आई देखा,मगर कहीं भी नहीं दिख रहा है। वह उसी जड़ के पास उतर कर पानी पीने लगी। मगर ताक में तो था ही। एक पल की भी देरी किए बिना उसने लोमड़ी का पाँव पकड़ लिया। किंतु लोमड़ी तो उससे भी अधिक चालाक थी। हँसते हुए बोली,अरे कमअक़्ल मगर! तुम सोच रहे होगे कि तुमने मेरा पाँव पकड़ लिया है जबकि तुमने इस पेड़ की जड़ पकड़ी है। यह देखो,यह है मेरा पाँव। कहते हुए लोमड़ी जड़ को हिलाने लगी। मगर ने तुरंत उसका पाँव छोड़ कर जड़ को पकड़ लिया। लोमड़ी फिर हँसती हुई वहाँ से भाग गई। मगर फिर झुँझला कर रह गया।

यों ही एक दिन फिर से लोमड़ी को आते देख कर मगर रेत पर ही चुपचाप पड़ गया, मानो वह मर गया हो। लोमड़ी आई। वह मगर की चालाकी समझ गई और बोली,पुरखों का कहना है कि मरे हुए मगर की नाक बजती है।

इतना सुनना था कि मगर बेचारा नाक बजाने लगा। लोमड़ी हँसने लगी। बोली,अरे बुद्ध मगर! भला किसी भी मरे हुए प्राणी की नाक कभी बजी है? और हँसते हुए वहाँ से भाग गई। मगर फिर से खिसिया कर रह गया।

मगर ने सोचा, इस तरह तो लोमड़ी को मारना संभव नहीं। यह सोच कर वह लोमड़ी के खेलने की जगह यानी पुआल के ढेर में जाकर छिप गया। लोमड़ी थोड़ी देर में वहाँ खेलने पहुँची तो उसे मगर के पाँवों के चिन्ह दिखलाई पड़े। लोमड़ी समझ गई। कहीं से एक लकड़ी ले आई और उसे बजाने लगी। मगर ने सोचा,चरवाहे बच्चे हैं जो गाय-बैलों को इधर ही ला रहे हैं। वह भीतर से चिल्लाया,अरे बच्चों! जानवरों को इधर मत लाओ। मैं यहाँ लोमड़ी की ताक में छिपा बैठा हूँ।

लोमड़ी ने सुना तो भाग कर कहीं से आग ले आई और पुआल के ढेर में लगा दी। पुआल धू-धू कर जलने लगा और मगर वहीं जल कर मर गया। अब लोमड़ी प्रसन्नतापूर्वक मगर का माँस खाने लगी। उतावलेपन में मगर की हड्डी उसके गले में फँस गई। लोमड़ी लाख कोशिशें कर हार गई किंतु हड्डी उसके गले से निकली। अंततः लोमड़ी भी वहीं पर मर गई।

मेरी कहानी समाप्त हुई।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 25)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY