इंद्रावती नदी के किनारे एक गाँव था जहाँ एक पिता-पुत्र रहते थे। पिता लोगों के बाल काटकर आजीविका चलाता। धीरे-धीरे पिता अधेड़ हो चला। उसे लगा कि अब उसके पुत्र को बाल काटने का काम सीख लेना चाहिए। उसने अपने पुत्र से यह बात कही। किंतु पुत्र का मन किसी काम में लगता ही नहीं था। फिर भी अपने पिता का मन रखने के लिए उसने पिता की बात मान ली। एक ग्राहक बाल कटवाने आया तो पिता ने अपने पुत्र को समझा-बुझाकर बाल काटने का आदेश दिया। पुत्र ने ऐसा उस्तरा चलाया कि उस ग्राहक की गर्दन कटते-कटते बची। वह बेचारा अपने प्राण बचाकर भागा। पिता को यह देखकर बहुत निराशा हुई।
‘मुझे तुमसे यह आशा नहीं थी। यदि तुमने मेरी बात ध्यान से सुनी होती और मेरे काम को ध्यान से देखा होता तो तुमसे भी यह काम बनने लगता।’ पिता ने दुखी होते हुए कहा।
‘यह पहली बार था इसलिए गड़बड़ी हो गई लेकिन अब मैं सही काम करूँगा।’ पुत्र ने अपने पिता को आश्वस्त किया।
‘क्या ख़ाक सही काम करोगे? उस ग्राहक ने अब तक सब को तुम्हारी अयोग्यता के बारे में बता दिया होगा और अब तुमसे बाल कटवाने कोई नहीं आएगा।’ पिता ने झल्लाकर कहा।
‘तो फिर ऐसा करते हैं कि हम किसी दूसरे गाँव चलते हैं। वहाँ मुझे कई ग्राहक मिल जाएँगे।’ पुत्र ने कहा।
‘अब तो यही करना पड़ेगा।’ पिता ने कहा।
पिता-पुत्र ने रास्ते में खाने के लिए दाल के बड़े बनाए और रख लिए। इसके बाद दोनों दूसरे गाँव जाने के लिए घर से निकल पड़े। रास्ते में दंडकारण्य का घना जंगल पड़ा। उन दिनों दंडकारण्य में शेरों की भरमार थी। पिता को जंगल में चलते हुए भय लगने लगा किंतु अपने पुत्र की अयोग्यता से विवश होकर उसे चलना पड़ रहा था। रास्ते में उन्हें भूख लगी। पिता-पुत्र खाने बैठे। खाने की पोटली खोलकर देखी तो उसमें सात बड़े निकले। उन लोगों ने साढ़े तीन-साढ़े तीन बड़े आपस में बाँट लिए। पिता को बहुत भूख लगी थी। उसने शीघ्रता से अपने हिस्से के बड़े खा डाले। फिर भी उसकी भूख नहीं मिटी। उसने पुत्र से उसके हिस्से का आधा बड़ा माँगा।
‘ठीक है, आप ये मेरा आधा बड़ा ले लीजिए किंतु यह ध्यान रखिएगा कि यह आधा बड़ा आप पर उधार रहेगा और जब मैं माँगूँगा तो मुझे वापस देना होगा।’ पुत्र ने कहा।
‘ठीक है। अभी तो दे दे आधा बड़ा।’ पिता ने अधीरता से कहा। उसने सोचा कि दूसरे गाँव पहुँचने पर अपने पुत्र को आधा क्या दस बड़े खिला दूँगा।
पुत्र ने आधा बड़ा दे दिया। पिता-पुत्र बड़े खाने के बाद फिर चल पड़े।
चलते-चलते रात घिर आई। दोनों ने कहीं रुककर रात व्यतीत करने का निश्चय किया। उन्हें एक माँद दिखाई दी।
‘यहाँ रुकना ठीक नहीं है। यह तो शेर की माँद है।’ पिता ने घबरा कर कहा।
‘नहीं, हम यहीं, इसी माँद में रुकेंगे।’ पुत्र ने कहा।
‘नहीं बेटा, हठ नहीं कर!’ पिता ने कहा।
‘ऐसा है तो लाओ मेरा आधा बड़ा।’ पुत्र झट से बोला।
‘अब मैं यहाँ कहाँ से लाऊँ तेरा आधा बड़ा?’ पिता ने झुँझलाकर कहा।
‘तो फिर मेरी बात मान लो।’ पुत्र ने कहा।
पिता को विवश होकर पुत्र का कहा मानना पड़ा और वे दोनों शेर की माँद में घुस गए। माँद में घुस कर पुत्र ने माँद के दरवाज़े पर एक बड़ा-सा पत्थर रख दिया ताकि शेर माद के भीतर न आ सके। थोड़ी देर बाद शेर आ पहुँचा। उसने अपनी माँद के दरवाज़े पर पत्थर रखा देखा तो उसे बहुत क्रोध आया।
‘मेरी माँद में कौन है? चुपचाप बाहर निकल आ वरना मैं भीतर आकर तुझे खा जाऊँगा।’ शेर दहाड़ा।
‘जो तुम सच्चे शेर हो तो अपनी माँद के भीतर आकर दिखाओ।’ पुत्र ने हँस कर शेर से कहा।
यह सुनकर शेर का क्रोध दुगुना हो गया। उसने पत्थर को हटाने का प्रयास किया किंतु वह उससे हिला भी नहीं। थककर वह वहीं बैठ गया। यह देखकर पिता चिंतित हो उठा। उसने पुत्र से कहा कि यदि यह शेर इसी तरह पहरा देता रहेगा तो हम यहाँ से निकलेंगे कैसे? इस पर पुत्र ने पिता को समझाया कि आप चिंता न करें, मैं अभी इसे यहाँ से भगा दूँगा। पुत्र की बात सुनकर पिता चकित रह गया। उसने पूछा कि तुम इसे कैसे भगाओगे? तो पुत्र ने कहा कि बस, आप देखते जाइए।
‘ऐ डरपोक शेर! यह तो सिद्ध हो गया कि तुम सच्चे शेर नहीं हो क्योंकि तुम अपनी माँद के भीतर भी न आ सके लेकिन इतने डरपोक होगे, यह तो मैंने सोचा भी नहीं था।’ पुत्र ने शेर को ताना मारते हुए कहा।
‘क्या मतलब है तुम्हारा?” शेर तिलमिलाकर दहाड़ा।
‘अरे, जब स्वयं भीतर नहीं आ पा रहे हो तो अपनी पूँछ ही माँद के भीतर डालकर देख लिया होता कि भीतर कौन है? लेकिन तुम्हारा इतना साहस कहाँ।’ पुत्र ने कहा।
शेर पुत्र की बात सुनकर खीझ उठा कि यह बात उसे क्यों नहीं सूझी। उसने माँद की ओर पीठ की और अपनी पूँछ माँद के भीतर डाल दी ताकि पूँछ से टटोल कर अनुमान लगा सके कि भीतर कौन है?
‘पिता जी, पकड़िए इस पूँछ को!’ पुत्र ने पिता से कहा।
‘क्या कह रहे हो? पागल हो गए हो क्या? मैं नहीं पकड़ूँगा शेर की पूँछ।’ पिता ने कहा।
‘या तो आप शेर की पूँछ पकड़िए या फिर मेरा आधा बड़ा दीजिए।’ पुत्र ने अपने पिता से कहा।
‘अब तेरा आधा बड़ा कहाँ से लाऊँ? चल पूँछ ही पकड़ता हूँ।’ पिता ने झक मारकर शेर की पूँछ पकड़ ली। पुत्र ने भी शेर की पूँछ को धर-दबोचा। पूँछ पकड़ाए जाने से शेर घबरा गया और पूँछ छुड़ाने के लिए पूँछ को अपनी ओर खीचने लगा। शेर जब पूँछ खींचता तो पुत्र तनिक ढील दे देता और फिर झटके से अपनी ओर खींच लेता। इस प्रकार खींचा-तानी में शेर की पूँछ उखड़ गई। शेर पूँछ छोड़कर जो भागा तो पीछे मुड़कर उसने अपनी माँद की ओर नहीं देखा। शेर के भागने के बाद पिता और पुत्र ने माँद के दरवाज़े से पत्थर सरकाया और बाहर निकल आए। तब तक सवेरा हो गया था। वे दोनों आगे चल पड़े।
इधर पूँछ उखड़ जाने के कारण बंडा हुआ शेर अपने अन्य शेर भाइयों के पास पहुँचा। उसने रो-रो कर अपना दुखड़ा सुनाया। बंडे शेर का दुखड़ा सुनकर सभी शेर एक साथ गर्जना कर उठे। उनकी गर्जना से पूरा जंगल थर्रा उठा। गर्जना सुनकर पिता पुत्र से कहा, ‘बेटा, तुमने शेर की पूँछ उखाड़कर ठीक नहीं किया। अब जंगल के सारे शेर मिलकर हमें मार डालेंगे।’
‘आप चिंता न करें! बस, आप अपनी लाठी सँभालकर इस ऊँचे पेड़ पर चढ़ जाएँ क्योंकि अब शेर आने वाले होंगे।’ पुत्र ने कहा। पुत्र की बात सुनते ही पिता भयभीत होकर एक ऊँचे पेड़ के शिखर तक जा चढ़ा। उसने अपनी लाठी अपनी पीठ में बाँध ली थी। पिता के पीछे-पीछे उसका पुत्र भी पेड़ पर चढ़ने लगा। उसी समय जंगल के सारे शेर वहाँ आ गए। तब तक पुत्र भी ऊँचाई पर पहुँच गया था। शेर पेड़ के नीचे घेरा डालकर बैठ गए कि जब भी पिता-पुत्र नीचे उतरेंगे तो वे उन्हें मारकर खा जाएँगे। बंडा शेर भी उनके साथ था। वह बहुत भयभीत था।
कई घंटे व्यतीत हो गए। पिता-पुत्र पेड़ में लगे फल खाते हुए मज़े से बैठे रहे किंतु घेरा डालकर बैठे शेर भूख-प्यास से परेशान हो उठे। तब उनमें से एक शेर ने सलाह दी कि ‘क्यों न हम एक के ऊपर एक खड़े हो जाएँ। इस प्रकार हम उन दोनों के पास तक पहुँच जाएँगे। सबसे ऊपर वाला शेर उन्हें पंजे मारकर नीचे गिरा देगा फिर हम उन्हें खा जाएँगे।’
अन्य शेरों को भी यह युक्ति पसंद आई। किंतु बंडा शेर इतना डरा हुआ था कि उसने कहा कि ‘मैं सबसे नीचे रहूँगा। जिसको चढ़ना हो वह मेरे ऊपर चढ़ जाए।’
इस प्रकार बंडा शेर सबसे नीचे खड़ा हो गया। उसके ऊपर दूसरा शेर, दूसरे के ऊपर तीसरा, तीसरे के ऊपर चौथा। इस प्रकार वे लोग पुत्र के पास तक पहुँच गए। जब पुत्र ने देखा कि अब अगला शेर ऊपर चढ़ते ही उसे मार गिराएगा तो उसने ज़ोर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, ‘बापू, देना तो अपना डंडा, मैं मारूँ नीचे का बंडा।’
जैसे ही बंडे शेर ने पुत्र की बात सुनी तो वह यह सोचकर घबरा गया कि अभी तो इन लोगों ने मेरी पूँछ ही उखाड़ी थी और अब प्राण भी ले लेंगे। यह सोचते ही वह घबराकर भाग खड़ा हुआ। उसके भागते ही उसके ऊपर खड़े हुए सारे शेर गदबदा कर नीचे गिरे। उन्होंने ने भी पुत्र की बात सुनी थी अत: उन्हें लगा कि पुत्र ने डंडा मारा है जिसके कारण वे गिर पड़े हैं। सारे के सारे शेर घबराकर भाग गए। शेरों के भागने के बाद पिता-पुत्र पेड़ से नीचे उतरे और आराम से अपने रास्ते चल पड़े।
दूसरे गाँव पहुँचकर पुत्र ने पिता से बाल काटने का हुनर सीखा और पिता ने पुत्र को ढेर सारे बड़े खिलाए। इसके बाद पिता-पुत्र आराम से जीवन व्यतीत करने लगे।
indravti nadi ke kinare ek gaanv tha jahan ek pita putr rahte the. pita logon ke baal katkar ajivika chalata. dhire dhire pita adheD ho chala. use laga ki ab uske putr ko baal katne ka kaam seekh lena chahiye. usne apne putr se ye baat kahi. kintu putr ka man kisi kaam mein lagta hi nahin tha. phir bhi apne pita ka man rakhne ke liye usne pita ki baat maan li. ek grahak baal katvane aaya to pita ne apne putr ko samjha bujha kar baal katne ka adesh diya. putr ne aisa ustara chalaya ki us grahak ki gardan katte katte bachi. wo bechara apne praan bacha kar bhaga. pita ko ye dekhkar bahut nirasha hui.
‘mujhe tumse ye aasha nahin thi. yadi tumne meri baat dhyaan se suni hoti aur mere kaam ko dhyaan se dekha hota to tumse bhi ye kaam banne lagta. ’ pita ne dukhi hote hue kaha.
‘yah pahli baar tha isliye gaDbaDi ho gai lekin ab main sahi kaam karunga. ’ putr ne apne pita ko ashvast kiya.
‘kya khaak sahi kaam karoge? us grahak ne ab tak sab ko tumhari ayogyata ke bare mein bata diya hoga aur ab tumse baal katvane koi nahin ayega. ’ pita ne jhallakar kaha.
‘to phir aisa karte hain ki hum kisi dusre gaanv chalte hain. vahan mujhe kai grahak mil jayenge. ’ putr ne kaha.
‘ab to yahi karna paDega. ’ pita ne kaha.
pita putr ne raste mein khane ke liye daal ke baDe banaye aur rakh liye. iske baad donon dusre gaanv jane ke liye ghar se nikal paDe. raste mein danDkaranya ka ghana jangal paDa. un dinon danDkaranya mein sheron ki bharmar thi. pita ko jangal mein chalte hue bhay lagne laga kintu apne putr ki ayogyata se vivash hokar use chalna paD raha tha. raste mein unhen bhookh lagi. pita putr khane baithe. khane ki potli kholkar dekhi to usmen saat baDe nikle. un logon ne saDhe teen saDhe teen baDe aapas mein baant liye. pita ko bahut bhookh lagi thi. usne shighrata se apne hisse ke baDe kha Dale. phir bhi uski bhookh nahin miti. usne putr se uske hisse ka aadha baDa manga.
‘theek hai, aap ye mera aadha baDa le lijiye kintu ye dhyaan rakhiyega ki ye aadha baDa aap par udhaar rahega aur jab main mangunga to mujhe vapas dena hoga. ’ putr ne kaha.
‘theek hai. abhi to de de aadha baDa. ’ pita ne adhirata se kaha. usne socha ki dusre gaanv pahunchne par apne putr ko aadha kya das baDe khila dunga.
putr ne aadha baDa de diya. pita putr baDe khane ke baad phir chal paDe.
chalte chalte raat ghir aai. donon ne kahin rukkar raat vyatit karne ka nishchay kiya. unhen ek maand dikhai di.
‘yahan rukna theek nahin hai. ye to sher ki maand hai. ’ pita ne ghabra kar kaha.
‘aisa hai to lao mera aadha baDa. ’ putr jhat se bola.
‘ab main yahan kahan se laun tera aadha baDa?’ pita ne jhunjhlakar kaha.
‘to phir meri baat maan lo. ’ putr ne kaha.
pita ko vivash hokar putr ka kaha manna paDa aur ve donon sher ki maand mein ghus ge. maand mein ghus kar putr ne maand ke darvaze par ek baDa sa patthar rakh diya taki sher maad ke bhitar na aa sake. thoDi der baad sher aa pahuncha. usne apni maand ke darvaze par patthar rakha dekha to use bahut krodh aaya.
‘meri maand mein kaun hai? chupchap bahar nikal aa varna main bhitar aakar tujhe kha jaunga. ’ sher dahaDa.
‘jo tum sachche sher ho to apni maand ke bhitar aakar dikhao. ’ putr ne hans kar sher se kaha.
ye sunkar sher ka krodh duguna ho gaya. usne patthar ko hatane ka prayas kiya kintu wo usse hila bhi nahin. thakkar wo vahin baith gaya. ye dekhkar pita chintit ho utha. usne putr se kaha ki yadi ye sher isi tarah pahra deta rahega to hum yahan se niklenge kaise? is par putr ne pita ko samjhaya ki aap chinta na karen, main abhi ise yahan se bhaga dunga. putr ki baat sunkar pita chakit rah gaya. usne puchha ki tum ise kaise bhagaoge? to putr ne kaha ki bas, aap dekhte jaiye.
‘ai Darpok sher! ye to siddh ho gaya ki tum sachche sher nahin ho kyonki tum apni maand ke bhitar bhi na aa sake lekin itne Darpok hoge, ye to mainne socha bhi nahin tha. ’ putr ne sher ko tana marte hue kaha.
‘kya matlab hai tumhara ?” sher tilamilakar dahaDa.
‘are, jab svayan bhitar nahin aa pa rahe ho to apni poonchh hi maand ke bhitar Dalkar dekh liya hota ki bhitar kaun hai? lekin tumhara itna sahas kahan. ’ putr ne kaha.
sher putr ki baat sunkar kheejh utha ki ye baat use kyon nahin sujhi. usne maand ki or peeth ki aur apni poonchh maand ke bhitar Daal di taki poonchh se tatol kar anuman laga sake ki bhitar kaun hai?
‘pita ji, pakaDiye is poonchh ko!’ putr ne pita se kaha.
‘kya kah rahe ho? pagal ho ge ho kyaa? main nahin pakDunga sher ki poonchh. ’ pita ne kaha.
‘ya to aap sher ki poonchh pakaDiye ya phir mera aadha baDa dijiye. ’ putr ne apne pita se kaha.
‘ab tera aadha baDa kahan se laun? chal poonchh hi pakaDta hoon. ’ pita ne jhak markar sher ki poonchh pakaD li. putr ne bhi sher ki poonchh ko dhar dabocha. poonchh pakDaye jane se sher ghabra gaya aur poonchh chhuDane ke liye poonchh ko apni or khichne laga. sher jab poonchh khinchta to putr tanik Dheel de deta aur phir jhatke se apni or kheench leta. is prakar khincha tani mein sher ki poonchh ukhaD gai. sher poonchh chhoDkar jo bhaga to pichhe muDkar usne apni maand ki or nahin dekha. sher ke bhagne ke baad pita aur putr ne maand ke darvaze se patthar sarkaya aur bahar nikal aaye. tab tak savera ho gaya tha. ve donon aage chal paDe.
idhar poonchh ukhaD jane ke karan banDa hua sher apne anya sher bhaiyon ke paas pahuncha. usne ro ro kar apna dukhDa sunaya. banDe sher ka dukhDa sunkar sabhi sher ek saath garjana kar uthe. unki garjana se pura jangal tharra utha. garjana sunkar pita putr se kaha, ‘beta, tumne sher ki poonchh ukhaDkar theek nahin kiya. ab jangal ke sare sher milkar hamein maar Dalenge. ’
‘aap chinta na karen! bas, aap apni lathi samhal kar is uunche peD par chaDh jayen kyonki ab sher aane vale honge. ’ putr ne kaha. putr ki baat sunte hi pita bhaybhit hokar ek uunche peD ke shikhar tak ja chaDha. usne apni lathi apni peeth mein baandh li thi. pita ke pichhe pichhe uska putr bhi peD par chaDhne laga. usi samay jangal ke sare sher vahan aa ge. tab tak putr bhi uunchai par pahunch gaya tha. sher peD ke niche ghera Dalkar baith ge ki jab bhi pita putr niche utrenge to ve unhen markar kha jayenge. banDa sher bhi unke saath tha. wo bahut bhaybhit tha.
kai ghante vyatit ho ge. pita putr peD mein lage phal khate hue maze se baithe rahe kintu ghera Dalkar baithe sher bhookh pyaas se pareshan ho uthe. tab unmen se ek sher ne salah di ki ‘kyon na hum ek ke uupar ek khaDe ho jayen. is prakar hum un donon ke paas tak pahunch jayenge. sabse uupar vala sher unhen panje markar niche gira dega phir hum unhen kha jayenge. ’
anya sheron ko bhi ye yukti pasand aai. kintu banDa sher itna Dara hua tha ki usne kaha ki ‘main sabse niche rahunga. jisko chaDhna ho wo mere uupar chaDh jaye. ’
is prakar banDa sher sabse niche khaDa ho gaya. uske uupar dusra sher, dusre ke uupar tisra, tisre ke uupar chautha. is prakar ve log putr ke paas tak pahunch ge. jab putr ne dekha ki ab agla sher uupar chaDhte hi use maar girayega to usne zor se chillakar apne pita se kaha, ‘bapu, dena to apna DanDa, main marun niche ka banDa. ’
jaise hi banDe sher ne putr ki baat suni to wo ye sochkar ghabra gaya ki abhi to in logon ne meri poonchh hi ukhaDi thi aur ab praan bhi le lenge. ye sochte hi wo ghabrakar bhaag khaDa hua. uske bhagte hi uske uupar khaDe hue sare sher gadabda kar niche gire. unhonne ne bhi putr ki baat suni thi atah unhen laga ki putr ne DanDa mara hai jiske karan ve gir paDe hain. sare ke sare sher ghabrakar bhaag ge. sheron ke bhagne ke baad pita putr peD se niche utre aur aram se apne raste chal paDe.
dusre gaanv pahunchakar putr ne pita se baal katne ka hunar sikha aur pita ne putr ko Dher sare baDe khilaye. iske baad pita putr aram se jivan vyatit karne lage.
indravti nadi ke kinare ek gaanv tha jahan ek pita putr rahte the. pita logon ke baal katkar ajivika chalata. dhire dhire pita adheD ho chala. use laga ki ab uske putr ko baal katne ka kaam seekh lena chahiye. usne apne putr se ye baat kahi. kintu putr ka man kisi kaam mein lagta hi nahin tha. phir bhi apne pita ka man rakhne ke liye usne pita ki baat maan li. ek grahak baal katvane aaya to pita ne apne putr ko samjha bujha kar baal katne ka adesh diya. putr ne aisa ustara chalaya ki us grahak ki gardan katte katte bachi. wo bechara apne praan bacha kar bhaga. pita ko ye dekhkar bahut nirasha hui.
‘mujhe tumse ye aasha nahin thi. yadi tumne meri baat dhyaan se suni hoti aur mere kaam ko dhyaan se dekha hota to tumse bhi ye kaam banne lagta. ’ pita ne dukhi hote hue kaha.
‘yah pahli baar tha isliye gaDbaDi ho gai lekin ab main sahi kaam karunga. ’ putr ne apne pita ko ashvast kiya.
‘kya khaak sahi kaam karoge? us grahak ne ab tak sab ko tumhari ayogyata ke bare mein bata diya hoga aur ab tumse baal katvane koi nahin ayega. ’ pita ne jhallakar kaha.
‘to phir aisa karte hain ki hum kisi dusre gaanv chalte hain. vahan mujhe kai grahak mil jayenge. ’ putr ne kaha.
‘ab to yahi karna paDega. ’ pita ne kaha.
pita putr ne raste mein khane ke liye daal ke baDe banaye aur rakh liye. iske baad donon dusre gaanv jane ke liye ghar se nikal paDe. raste mein danDkaranya ka ghana jangal paDa. un dinon danDkaranya mein sheron ki bharmar thi. pita ko jangal mein chalte hue bhay lagne laga kintu apne putr ki ayogyata se vivash hokar use chalna paD raha tha. raste mein unhen bhookh lagi. pita putr khane baithe. khane ki potli kholkar dekhi to usmen saat baDe nikle. un logon ne saDhe teen saDhe teen baDe aapas mein baant liye. pita ko bahut bhookh lagi thi. usne shighrata se apne hisse ke baDe kha Dale. phir bhi uski bhookh nahin miti. usne putr se uske hisse ka aadha baDa manga.
‘theek hai, aap ye mera aadha baDa le lijiye kintu ye dhyaan rakhiyega ki ye aadha baDa aap par udhaar rahega aur jab main mangunga to mujhe vapas dena hoga. ’ putr ne kaha.
‘theek hai. abhi to de de aadha baDa. ’ pita ne adhirata se kaha. usne socha ki dusre gaanv pahunchne par apne putr ko aadha kya das baDe khila dunga.
putr ne aadha baDa de diya. pita putr baDe khane ke baad phir chal paDe.
chalte chalte raat ghir aai. donon ne kahin rukkar raat vyatit karne ka nishchay kiya. unhen ek maand dikhai di.
‘yahan rukna theek nahin hai. ye to sher ki maand hai. ’ pita ne ghabra kar kaha.
‘aisa hai to lao mera aadha baDa. ’ putr jhat se bola.
‘ab main yahan kahan se laun tera aadha baDa?’ pita ne jhunjhlakar kaha.
‘to phir meri baat maan lo. ’ putr ne kaha.
pita ko vivash hokar putr ka kaha manna paDa aur ve donon sher ki maand mein ghus ge. maand mein ghus kar putr ne maand ke darvaze par ek baDa sa patthar rakh diya taki sher maad ke bhitar na aa sake. thoDi der baad sher aa pahuncha. usne apni maand ke darvaze par patthar rakha dekha to use bahut krodh aaya.
‘meri maand mein kaun hai? chupchap bahar nikal aa varna main bhitar aakar tujhe kha jaunga. ’ sher dahaDa.
‘jo tum sachche sher ho to apni maand ke bhitar aakar dikhao. ’ putr ne hans kar sher se kaha.
ye sunkar sher ka krodh duguna ho gaya. usne patthar ko hatane ka prayas kiya kintu wo usse hila bhi nahin. thakkar wo vahin baith gaya. ye dekhkar pita chintit ho utha. usne putr se kaha ki yadi ye sher isi tarah pahra deta rahega to hum yahan se niklenge kaise? is par putr ne pita ko samjhaya ki aap chinta na karen, main abhi ise yahan se bhaga dunga. putr ki baat sunkar pita chakit rah gaya. usne puchha ki tum ise kaise bhagaoge? to putr ne kaha ki bas, aap dekhte jaiye.
‘ai Darpok sher! ye to siddh ho gaya ki tum sachche sher nahin ho kyonki tum apni maand ke bhitar bhi na aa sake lekin itne Darpok hoge, ye to mainne socha bhi nahin tha. ’ putr ne sher ko tana marte hue kaha.
‘kya matlab hai tumhara ?” sher tilamilakar dahaDa.
‘are, jab svayan bhitar nahin aa pa rahe ho to apni poonchh hi maand ke bhitar Dalkar dekh liya hota ki bhitar kaun hai? lekin tumhara itna sahas kahan. ’ putr ne kaha.
sher putr ki baat sunkar kheejh utha ki ye baat use kyon nahin sujhi. usne maand ki or peeth ki aur apni poonchh maand ke bhitar Daal di taki poonchh se tatol kar anuman laga sake ki bhitar kaun hai?
‘pita ji, pakaDiye is poonchh ko!’ putr ne pita se kaha.
‘kya kah rahe ho? pagal ho ge ho kyaa? main nahin pakDunga sher ki poonchh. ’ pita ne kaha.
‘ya to aap sher ki poonchh pakaDiye ya phir mera aadha baDa dijiye. ’ putr ne apne pita se kaha.
‘ab tera aadha baDa kahan se laun? chal poonchh hi pakaDta hoon. ’ pita ne jhak markar sher ki poonchh pakaD li. putr ne bhi sher ki poonchh ko dhar dabocha. poonchh pakDaye jane se sher ghabra gaya aur poonchh chhuDane ke liye poonchh ko apni or khichne laga. sher jab poonchh khinchta to putr tanik Dheel de deta aur phir jhatke se apni or kheench leta. is prakar khincha tani mein sher ki poonchh ukhaD gai. sher poonchh chhoDkar jo bhaga to pichhe muDkar usne apni maand ki or nahin dekha. sher ke bhagne ke baad pita aur putr ne maand ke darvaze se patthar sarkaya aur bahar nikal aaye. tab tak savera ho gaya tha. ve donon aage chal paDe.
idhar poonchh ukhaD jane ke karan banDa hua sher apne anya sher bhaiyon ke paas pahuncha. usne ro ro kar apna dukhDa sunaya. banDe sher ka dukhDa sunkar sabhi sher ek saath garjana kar uthe. unki garjana se pura jangal tharra utha. garjana sunkar pita putr se kaha, ‘beta, tumne sher ki poonchh ukhaDkar theek nahin kiya. ab jangal ke sare sher milkar hamein maar Dalenge. ’
‘aap chinta na karen! bas, aap apni lathi samhal kar is uunche peD par chaDh jayen kyonki ab sher aane vale honge. ’ putr ne kaha. putr ki baat sunte hi pita bhaybhit hokar ek uunche peD ke shikhar tak ja chaDha. usne apni lathi apni peeth mein baandh li thi. pita ke pichhe pichhe uska putr bhi peD par chaDhne laga. usi samay jangal ke sare sher vahan aa ge. tab tak putr bhi uunchai par pahunch gaya tha. sher peD ke niche ghera Dalkar baith ge ki jab bhi pita putr niche utrenge to ve unhen markar kha jayenge. banDa sher bhi unke saath tha. wo bahut bhaybhit tha.
kai ghante vyatit ho ge. pita putr peD mein lage phal khate hue maze se baithe rahe kintu ghera Dalkar baithe sher bhookh pyaas se pareshan ho uthe. tab unmen se ek sher ne salah di ki ‘kyon na hum ek ke uupar ek khaDe ho jayen. is prakar hum un donon ke paas tak pahunch jayenge. sabse uupar vala sher unhen panje markar niche gira dega phir hum unhen kha jayenge. ’
anya sheron ko bhi ye yukti pasand aai. kintu banDa sher itna Dara hua tha ki usne kaha ki ‘main sabse niche rahunga. jisko chaDhna ho wo mere uupar chaDh jaye. ’
is prakar banDa sher sabse niche khaDa ho gaya. uske uupar dusra sher, dusre ke uupar tisra, tisre ke uupar chautha. is prakar ve log putr ke paas tak pahunch ge. jab putr ne dekha ki ab agla sher uupar chaDhte hi use maar girayega to usne zor se chillakar apne pita se kaha, ‘bapu, dena to apna DanDa, main marun niche ka banDa. ’
jaise hi banDe sher ne putr ki baat suni to wo ye sochkar ghabra gaya ki abhi to in logon ne meri poonchh hi ukhaDi thi aur ab praan bhi le lenge. ye sochte hi wo ghabrakar bhaag khaDa hua. uske bhagte hi uske uupar khaDe hue sare sher gadabda kar niche gire. unhonne ne bhi putr ki baat suni thi atah unhen laga ki putr ne DanDa mara hai jiske karan ve gir paDe hain. sare ke sare sher ghabrakar bhaag ge. sheron ke bhagne ke baad pita putr peD se niche utre aur aram se apne raste chal paDe.
dusre gaanv pahunchakar putr ne pita se baal katne ka hunar sikha aur pita ne putr ko Dher sare baDe khilaye. iske baad pita putr aram se jivan vyatit karne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 183)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।