भोजपुरी लोकगीत : आम महुअवा के घनी रे बगिया
bhojapurii lokagiit : aam mahu.ava ke ghanii re bagiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—एक स्त्री के आदर्श चरित्र का वर्णन।
आम महुअवा के घनी रे बगिया,
ताहि बिचे राह लागि गइले हो राम।।1।।
ताहि तर ठाढ़ि भइली ए रे सोहागिनी,
नयना से निरवा ढारे हो राम।।2।।
बाट के चलत बटोहिया पूछे काहे तुहु ठाढ़,
केकर जोहेलू तू बटिया हो राम।।3।।
तोहर निअर मोर पातर बलमुआ,
उनुकर बाट खाड़ा जोहेले हो राम।।4।।
लेहु ना साँवरि डाल भरि सोनवा,
छोड़ू परदेसिया के आस हो राम।।5।।
आगि लगइबो मैं डाल भरि सोनवा,
करबों परदेसिया के आस हो राम।।6।।
कबहीं त लवटीहें मोर बनिजरवा,
पनही से तोहिके पिटइबो हो राम।।7।।
आम और महुए की घनी बाग़ है, जिसके बीच राह बन गई है।।1।।
उसी के नीचे एक सौभाग्यवती स्त्री खड़ी हुई रो रही थी।।2।।
राह में चलते हुए एक राही ने पूछा कि तुम क्यों खड़ी हो और किसके आने की प्रतीक्षा कर रही हो?।।3।।
स्त्री ने उत्तर दिया—तुम्हारे ही समान मेरा पति भी पतला है, मैं उन्हीं की प्रतीक्षा कर रही हूँ।।4।।
पथिक ने कहा—हे सुंदरी! डाल भर सोना ले लो और परदेशी की आशा त्याग दो।।5।।
स्त्री ने उसे डाँटकर कहा—मैं तुम्हारे डाल भर सोना को आग लगा दूँगी और अपने परदेशी पति की आशा रखूँगी।।6।।
कभी तो मेरे स्वामी लौटेंगे। मैं उनसे तुम्हें जूते से पिटवाऊँगी।।7।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 119)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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