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मैथिली लोकगीत : सुन्दरि चललिह पहूँ घर ना

maithili lokgit ha sundari challih pahun ghar na

रोचक तथ्य

संदर्भ—नवविवाहिता का भयोद्रेक।

सुन्दरि चललिह पहूँ घर ना।

हँसि हँसि सखि सब कर धर ना।।1।।

जाइतहुँ लागु परम डर ना।

जेना ससि काँप राहु डर ना।।2।।

हार टुटिय छिड़िआय गेल ना।

भूषन बसन मलिन भेल ना।।3।।

रोय रोय कजरा दहाय गेल ना।

अदकहि सिन्दुर मेटाय गेल ना।।4।।

‘भानुनाथ' कबि धीर धरु ना।

दुःख सहल सुख पाओल ना।।5।।

एक नवविवाहिता सुन्दरी अपने प्रिय के शयनकक्ष की ओर चली। उसकी

सब सखियों ने हँस-हँस उसका हाथ पकड़ कर रोकना चाहा।।1।।

जाते समय उसे बड़ा डर लगता है, जैसे राहु के भय से चंद्रमा काँपता है।।2।

जब वह पति के पास पहुँची तो हार टूटकर बिखर गया और गहने और वस्त्र मलिन हो गए।।3।।

रोते-रोते काजल बह गया और सिंदूर मिट गया।।4।।

कवि भानुनाथ' का कहना है—धैर्य धारण करो। तुमने दुःख सहा है तो सुख भी पाओगी।।5।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 54)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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