अवधी लोकगीत : के कै आसा जोही, के से कही बिपतिया
awadhi lokgit ha ke kai aasa johi, ke se kahi bipatiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—समाज सुधार।
के कै आसा जोही, के से कही बिपतिया,
सँसतिया बाटै चारिउ ओरिया।।टेक।।
लरिका सूट-बूट के खातिर, रोजै करैं लाई,
लाली सुर्खी, बेंदी माँगै पतउर धिया पराई।
नारी कहै ख्याल न करै, मोर दहनतिया,
सँसतिया बाटै चारिउ ओरिया।।1।।
बिना दहेज के ब्याह न होवै, रहै चहै बर काना,
खर्चा-बर्चा के कारन से रहै अगर कम गहना।
समधी लौटि जाँय लै के द्वारे से बरतिया,
सँसतिया बाटै चारिउ ओरिया।।2।।
बर कुजोड़ के कारन दुलहिन, बार खोलि अभुवावै,
होय ओझाई राति भै सारी, सोखा भेद बतावैं।
धमसा, फूलमती के साथे बा सवतिया,
सँसतिया बाटै चारिउ ओरिया।।3।।
कटे उमिरिया कइसे भइया, नइया लागे पार,
परग-परग पर झगरा बाटै, बिन मेहनत ओंकार।
जीतैं कोटि लच्छिमी हारैं सूरसतिया,
सँसतिया बाटै चारिउ ओरिया।।4।।
एक व्यक्ति चिंतित होकर कहता है—किसकी आशा की प्रतीक्षा करूँ और किससे अपनी विपत्ति की बात कहूँ? चारों ओर साँसत है।।टेक।।
लड़के सूट-बूट के लिए प्रतिदिन झगड़ा करते हैं और पुत्र-बधू लाली-बिंदी
माँगती है। इतना ही नहीं, पत्नी कहती है कि पति तो मेरा ख़याल ही नहीं करता।।1।।
चाहे वर काना ही क्यों न हो, दहेज के बिना विवाह नहीं होता। यदि ख़र्च के कारण गहना कम रहता है तो समधी द्वार पर से बारात लेकर लौट जाते हैं।।2।।
यदि जोड़ का वर नहीं मिलता तो वधू बाल खोलकर अभुवाती है। रात भर ओझाई होती है, शोखा भेद बताते हैं कि धमसा और फूलमती प्रेतात्माओं के साथ सौत भी है।।3।।
किस प्रकार आयु व्यतीत होगी और नाव पार लगेगी, क्योंकि यहाँ तो पग-पग पर झगड़ा है और बिना परिश्रम के केवल ओंकार कहा जाता है। यहाँ तो लक्ष्मी की पूजा होती है और सरस्वती हार जाती है अर्थात् धन की प्रमुखता है और विद्वता का कोई सम्मान नहीं करता।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 202)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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