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मैथिली लोकगीत : कतेक दिवस पर प्रीतम सजनि गे

maithili lokgit ha katek diwas par piritam sajani ge

रोचक तथ्य

संदर्भ—प्रिय का आगमन।

कतेक दिवस पर प्रीतम सजनि गे,

आएल छथि पहुँ मोर।।1।।

मन दय नेह लगाएव सजनि गे,

रचि रचि अंग लाएव।

पहुँ थिक चतुर सयानहिं सजनि गे,

हम धनि अंक लगाएव।।2।।

दिन जौं हम काटने सजनि गे,

तखन करब बर गाने।

गावि सुनैवनि हुनकहुँ सजनि गे,

पहूँ करता बर माने।।3।।

हे सजनि! कितने दिनों बाद मेरे प्रिय आए हैं।।1।।

हे सखि! आज मैं मन देकर प्रेम करूँगी और बड़े साज-शृंगार से उन्हें अंग लगाऊँगी। वे बड़े चतुर-सुजान हैं। मैं उन्हें हृदय से लगाऊँगी।।2।।

हे सखि! यदि मेरे ये दिन सुख से बीते तो मैं मंगल-गीत गाऊँगी एवं उन्हें भी सुनाऊँगी, जिस समय मेरे प्रिय मेरा बड़ा मान करेंगे।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 63)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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