भोजपुरी लोकगीत : सुगना निकल गइल पिंजड़ा से
bhojapuri lokgit ha sugna nikal gail pinjDa se
रोचक तथ्य
संदर्भ—जीवन का अंतिम सत्य।
सुगना निकल गइल पिंजड़ा से, ख़ाली पड़ल रहल
तसबीर।।टेक।।
केहु रोवे, केहु मलि मलि धोवे, केहु पहिनावे चीर।।1।।
सुगना०।
चारि जना मिलि खाट उठवले, ले गइले गंगातीर।।2।।
सुगना०।
फूँकि फाँकि के कोइला कइले, भसमी भइल सरीर।।3।।
सुगना०।
जीव रूपी शुक शरीर रूपी पिंजड़े से निकल गया, केवल चित्र पड़ा रह गया।।टेक।।
मृत शरीर को देखकर कोई रोता है, कोई मल-मल कर धोता है और कोई वस्त्र पहनाता है।।1।।
चार लोगों ने मिलकर अर्थी उठाई और गंगा जी के किनारे ले गए।।2।।
फिर उस शरीर को जला कर कोयला कर दिया, फिर शरीर भस्म के रूप
में परिणत हो गया।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 113)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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