अवधी लोकगीत : चली मारि के करेजवा माँ गोली पिया
awadhi lokgit ha chali mari ke karejwa man goli piya
रोचक तथ्य
संदर्भ—अंतिम यात्रा।
चली मारि के करेजवा माँ गोली पिया,
मुख से न बोली पिया ना।।टेक।।
करि के सोरहौ सिंगार, बार गुहैं बार-बार,
रही दुलहिन सुरतिया की बोली पिया।।1।।
आये चार ठो कहार, बाजा लाये मजेदार।
फूल-माला से सजाये रही डोली पिया।।2।।
‘पल्टूदास’ हिरामन, सुनौ राम कै कहन,
गोरी छोड़ि चलीं नइहर की टोली पिया।।3।।
पत्नी कलेजे में गोली मारकर चल दी और मुख से नहीं बोली।।टेक।।
सोलहों शृंगार कर, बार-बार बालों को सँवार कर दुलहिन की सूरत और
बोली कितनी अच्छी लगती थी।।2।।
चार कहार आए, मजेदार बाजे भी लाए गए और डोली को फूल-माला से ख़ूब सजाया गया।।2।।
पल्टूदास जी अपने चेले हीरामन से कहते हैं कि तुम अपने राम का कहना सुनो—गोरी नैहर की सखियों की टोली छोड़कर चली।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 172)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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