भोजपुरी लोकगीत : जहिया से सेइयाँ मोरे छुवले लिलरवा
bhojapurii lokagiit : jahiya se se.iyaa.n more chhuvle lilarva
रोचक तथ्य
संदर्भ—स्त्री की मायके जाने की इच्छा।
जहिया से सेइयाँ मोरे छुवले लिलरवा।
हो दुलमवा भइले ना, मोर बाबा के नगरिया—
कि दुलमवा भइले ना॥1॥
गोड़ तोरा लागों रामा, सइयाँ रे गोसइयाँ।
कि दिनवा चारि ना, मोके जाये दे नइहरवा—
कि दिनवा चारि ना॥2॥
एक स्त्री कहती है—जब से मेरे स्वामी (पति) ने मेरे ललाट का स्पर्श किया अर्थात् मेरी माँग में सिंदूर भरा, तब से मेरे पिता का घर मेरे लिए दुर्लभ हो गया।।1।।
स्त्री पति से प्रार्थना करती है—हे स्वामी! मैं तुम्हारे पैर लगती हूँ, मुझे चार दिनों के लिए मायके चली जाने दो।।2।।
विशेष—पहले बिहार की स्त्रियों के विवाह बहुत दूर हुआ करते थे और विवाह के पश्चात् कई वर्षों तक बहुओं को उनके घर नहीं जाने दिया जाता था। यहाँ उसी की ओर संकेत है।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 129)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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