भोजपुरी लोकगीत : पनवाँ अइसन धनि पातरि
bhojapuri lokgit ha panwan aisan dhani patari
रोचक तथ्य
संदर्भ-सुंदर पुत्र होने का कारण।
पनवाँ अइसन धनि पातरि, कुसुम अइसन सुंदर हो।
मोरे रामा, उनहूँ के भइले नँदलाल, होरिलवा बड़ा सुंदर हो।।1।।
मचिया बइठलि उत सासु, बहुअवा से पूछेली हो।
आहो बहुआ, कवन कवन तप कइलू, होरिलवा बड़ा सुंदर हो।।2।।
माघही पुस के महिनवा त गंगा नहइली, अगिनि नाहीं तापीले हो।
सासु, निहुरि के सुरुज गोड़ लगलीं, होरिलवा भइले सुंदर हो।।3।।
मचिया बइठलि उत ननदी, बहुअवा से पूछेली हो।
ओहो भउजी, कवन कवन फल खइलू, होरिलवा बड़ा सुंदर हो।।4।।
खइलों में अमवा इमिलिया अवरु घवद के केरवानु हो।
आहो, फोरि फोरि खइलों नरियरवा, होरिलवा भइले सुंदर हो।।5।।
वधू पान जैसी पतली है और फूल जैसी सुंदर है। उसके एक पुत्र हुआ है, जो बहुत सुंदर है।।1।।
वहीं मचिया पर सास बैठी हुई है, वह बहू से पूछती है कि हे बहू! तुमने कौन-कौन-सा तप किया है कि पुत्र बहुत सुंदर है?।।2।।
बहू ने बताया—पूस-माघ के महीनों में मैं गंगा-स्नान करती और आग नहीं तापती थी। हे सासू जी! मैं विनम्रतापूर्वक झुककर सूर्य को प्रणाम करती थी। इसी से मेरे सुंदर बालक पैदा हुआ।।3।।
वहीं मचिया पर बैठी हुई ननद ने बहू से पूछा—हे भौजी! आपने कौन-कौन फल खाए, बालक बड़ा सुंदर है।।4।।
बहू ने बताया—मैने आम-इमली खाए और घौद में लगे हुए केले खाए। हाँ, मैंने फोड़-फोड़ कर नारियल खाए, जिससे सुंदर पुत्र पैदा हुआ है।।5।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 86)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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