भोजपुरी लोकगीत : अरे बृज में हरि होरी मचाई
bhojapuri lokgit ha are brij mein hari hori machai
रोचक तथ्य
संदर्भ—श्रीकृष्ण का होली खेलना।
अरे बृज में हरि होरी मचाई।।टेक।।
इतते आवत नबल राधिका, उतते कुँवर कन्हाई।
हिलिमिलि फाग परसपर खेलत, सोभा बरनी न जाई।।
घरे घरे बजत बधाई।।1।।
बाजत ताल मृदंग झाँझ डफ, मंजीरा सहनाई।
उडत गुलाल कुमकुमा केसर, रहत सकल बृज छाई।।
मनो मेघवा झरि लाई।।2।।
राधे सैन’ दियो सखियन को, झुंड-झुंड होई धाई।
झपटि लपटि गईं साम सुनर को, कर धरि पकरि मँगाई।।
कान्हा को नारि बनाई।।3।।
छीन लियो मुख मुरली पितम्बर, सिर से चुनरी ओढ़ाई।
बेंदी भाल, नयन बिच काजर, नकबेसर पहनाई।।
सामजी को नाच नचाई।।4।।
होरी खेले बिना जाय न दैहों, करिहों कोटि उपाई।
लीहों चुकाई कसर सब दिन के, तू बृज दही चुराई।।
बहुत दिन माखन खाई।।5।।
ब्रज में श्रीकृष्ण ने होली मचाई है। इधर से नवीना राधा आ रही हैं और
उधर से कुमार कृष्ण आ रहे हैं। वे परस्पर फाग खेलते हैं। उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। घर-घर बधाई बज रही है।।1।।
ताल, मृदंग, झाँझ, उफ, मँजीरा और शहनाई बाजे बज रहे हैं। गुलाल, कुंकुम और केसर उड़ रहे हैं, जो संपूर्ण ब्रज में छा रहे हैं। मानो इंद्र ने झड़ी लगा दी है।।2।।
राधा जी ने सखियों को संकेत दिया, जिससे वे झुँडों में होकर दौड़ पड़ीं। वे श्याम से झपटकर लिपट गईं और उन्होंने कृष्ण को पकड़ कर स्त्री बनाया।।3।।
उन्होंने श्रीकृष्ण के मुख से मुरली और शरीर से पीतांबर छीन लिया और
उन्हें सिर पर चूनर ओढ़ा दी। फिर उनके मस्तक पर बेंदी और नयनों में काजल लगाया तथा नाक में नथनी पहनाई और कृष्ण को नाच नचाया।।4।।
गोपिकाएँ कृष्ण से कहने लगीं—होली बिना खेले जाने न दूँगी, चाहे तुम करोड़ों उपाय करो। सब दिनों की कसर चुका लूँगी, तुमने ब्रज में दही चुराया है, बहुत दिन मक्खन खाया है।।5।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 103)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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