अवधी लोकगीत : साहेब! तुहरी सुरति बेहाल
awadhi lokgit ha saheb! tuhri surti behal
रोचक तथ्य
संदर्भ—सत्यनामी प्रसंग।
साहेब! तुहरी सुरति बेहाल, कगदवा माँ लिखि ना दिहो।।टेक।।
कासी जी माँ घण्टा बाजै, गया बाजै घरियार,
साहेब कोटवन माँ नौबत बाजे, साहेब के दरबार। कगदवा०।।1।।
कासी जी माँ घण्टा गिरिगे, पैर गिरे हरिद्वार,
साहेब कोटवन माँ सेल्ही गिरिगै, साहेब के दरबार। कगदवा०।।2।।
असी कोस माँ झाली-झाँखर, बिच-बिच परे पहाड़,
अबहीं तौ प्रभु दरसन दीन्हा, अब काहे क बन्द केवाड़। कगदवा०।।3।।
जगन्नाथ, जगजीवन साहेब बौध रूप औतार,
मन-मन सेल्ही सीस पै झमकै गावत हैं देबीदास। कगदवा०।।4।।
हे साहब! आपकी स्मृति ने मुझे बेहाल कर रखा है, आपने काग़ज़ पर क्यों नहीं लिख दिया।।टेक।।
काशी जी में घंटा बजता है, गया में घड़ियाल और कोटवा में जगजीवन
साहब के दरबार में नौबत बजती है।।1।।
काशी जी में घंटा गिर गया, हरिद्वार में पैर और कोटवा में साहब के दरबार में सेल्ही गिर गई।।2।।
अस्सी कोस में झाड़ी-झाँखर और बीच-बीच में पहाड़ हैं, हे प्रभु! अभी तो आपने दर्शन दिया था, अब क्यों कपाट बंद हो गए।।3।।
जगन्नाथ, जगजीवन साहब बुद्ध के अवतार हैं। देवीदास जी कहते हैं कि उनके शीश पर मन-मन भर की सेल्ही शोभा देती हैं।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 211)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.