इस दिन होत सबई कौ गौनों
is din hot sab.ii kau gauno.n
इस दिन होत सबई कौ गौनों!
हौनों और अनहौनों!
जाने परत सासरें साँसउँ, बुरौ लगै चाय नौनों॥
जा ना बात काउ के बसकी, हँसी मचै चाय रौनों॥
राखौ चाऐ जौनों ‘ईसुर’ देय इनह भर सौनों॥
एक दिन तो सभी का गौंना होता है। कोई उचित समझे या अनुचित। सचमुच ही सबको ससुराल जाना पड़ता है, चाहे अच्छा लगे या बुरा। यह किसी के वश की बात नहीं, भले ही हँसी आए या रोना। अरे ईसुरी! कोई जानहार को उसी की तौल का सोना देकर रोकना चाहे तो नहीं रोक सकता।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 84)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
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