रँगी सुरत-रंग पिय-हियैं
rangi surat rang piy hiyain
रँगी सुरत-रंग पिय-हियैं, लगी जगी सब राति।
पैंड़ पैंड़ पर ठठुकि कै, ऐंड़-भरी ऐंडाति॥
सुरति के पश्चात् प्रेमगर्विता नायिका कदम-कदम पर ठिठकती हुई, गर्व से ऐंठती हुई और अलसाती हुई-सी चल रही है। कोई सखी कहती है कि प्रियतम के हृदय से लगी रहकर यह नायिका रात भर जगती रही है। यह संभोग के सुख के रंग में रंगी हुई है। यही कारण है कि अब प्रातः वेला में यह नायिका कदम-कदम पर रुक-रुककर गर्व से भरकर ऐंठती और ऐंड़ती हुई चल रही है। नायिका गर्व से भरी हुई है क्योंकि प्रिय के गले से चिपककर रात्रि बिताने का अवसर उसकी सौंतों को प्राप्त नहीं हो सकेगा। इसी भाव से भरकर वह इठला रही है। नायिका का ऐंड़ना इसलिए है कि रात में उसने संभोग किया है अत: अब उसके अंग टूट रहे हैं।
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 277)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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