ए रहीम दर दर फिरहिं
e rahim dar dar phirahin
ए रहीम दर दर फिरहिं, माँगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छोड़िये वे रहीम अब नाहिं॥
कवि रहीम कहते हैं कि अब वैभवहीन होने से जगह-जगह घूम-फिरकर भिक्षा माँगकर पेट-पालन हो रहा है। इसलिए हे मित्रो! अब मुझसे मित्रता मत रखो, क्योंकि पहले वाला धन-वैभवशाली रहीम अब नहीं रहा।
- पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 79)
- रचनाकार : रहीम
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1985
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