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अंग ललित सित-रंग पट

ang lalit sit rang pat

मतिराम

मतिराम

अंग ललित सित-रंग पट

मतिराम

और अधिकमतिराम

    अंग ललित सित-रंग पट, अंग राग अवतंस।

    हंस-बाहिनी कीजियै, बाहन मेरौ हंस॥

    अपने सुंदर अंगों पर श्वेत वस्त्र धारण किए हुए और अपने मस्तक की माँग में सिंदूर लगाए हुए हे हंसवाहिनी सरस्वती! आप मेरे मन रूपी हंस को ही अपना वाहन बनाइए। अर्थात् हे भगवती सरस्वती! आप मेरे मन में ही वास कीजिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 228)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : मतिराम
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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