श्रीबृषभानुकुमारिहेत शृंगाररूप भय
shribrishbhanukumarihet shringarrup bhay
श्रीबृषभानुकुमारिहेत शृंगाररूप भय।
बास हासरस हरे मातुबंधन करुनामय॥
केसी प्रति अति रौद्र बीर मारो बत्सासुर।
भय दावानलपान पियो बीभत्स बकी उर॥
अति अद्भुत बंचि बिरंचिमति, सांत संततै सोच चित।
कहि केसब सेबहु रसिकजन, नवरसमय ब्रजराज नित॥
जो श्रीकृष्ण श्री राधिका के लिए शृंगाररस-रूप हुए, गोपिकाओं के लिए चीर-हरण में हास्यरस-रूप बने, माता देवकी का कारावास में कष्ट देखकर करुणरस-रूप हुए, केशी के प्रति क्रोध करके रौद्ररस-रूप दिखाई पड़े, वत्सासुर के मारने में वीररस-मय हुए, दावाग्नि का पान करके भयानकरस- युक्त हुए, पूतना का स्तनपान करके बीभत्सरस-मय दिखाई दिए, ब्रह्मा की बुद्धि को छलने में अद्भुतरस-युक्त प्रतीत हुए तथा अर्जुन का मोह देखकर चिंतित चित्त हो जाने के कारण शांतरस-मय लक्षित हुए, उन नव-रसमय ब्रजराज की सेवा रसिकजन नित्य करें।
- पुस्तक : रसिकप्रिया (पृष्ठ 56)
- संपादक : प्रियाप्रसाद तिलक
- रचनाकार : केशवदास
- प्रकाशन : कल्याणदास एंड ब्रदर्स ज्ञानवापी, वाराणसी
- संस्करण : 1967
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