काआ तरुवर पञ्च वि डाल
kaa.a taruvar pa~nch vi Daal।
काआ तरुवर पञ्च वि डाल।
चञ्चल चीए पइठाो काल॥
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दिढ करिअ महासुह परिमाण।
लुइ भणइ गुरु पुच्छिअ जाण॥
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सअल समाहिअ काहि करिअइ।
सुख दुखतें निचित मरिअइ॥
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एडिउ छान्दक बान्ध करण कपटेर आस।
सुनपाख भिड़ लाहु रे पास॥
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भणइ लुइ आम्हे साणे दिठा।
धमण चमण बेणि पाण्डि बइठा॥
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यह शरीर वृक्ष है। पाँच इंद्रियाँ उसकी पाँच शाखाएँ हैं। चंचल चित्त में काल का प्रवेश हुआ।
इसकी पकड़ से बच निकलने के लिए दृढ़ होकर महासुख में रमो। लुई कहते हैं—गुरु से जिज्ञासा प्रकट कर इस जानो।
समाधि लगाकर भी क्या करोगे? सुख-दुख का भोग होकर भी मृत्यु निश्चित है।
इस आवगमन एंव इंद्रियों के भोग की आशा छोड़, शून्यता रूप की भित्ति ग्रहणकर उसका सान्निध्य प्राप्त करो।
लुई कहते हैं, इसे युगनद्ध रूप में मैंने ध्यानपूर्वक देखा है एवं धमन तथा चमन की जोड़ी या युक्तता को आधार बना उस पर उपवेशन किया है।
- पुस्तक : सहज सिद्ध : चर्यागीति विमर्श (पृष्ठ 15)
- संपादक : रणजीत साहा
- रचनाकार : लुईपा
- प्रकाशन : यश पब्लिकेशन्स
- संस्करण : 2010
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