Font by Mehr Nastaliq Web

बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै

bachchon ke priy keshav shankar pillai

आशारानी व्होरा

आशारानी व्होरा

बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै

आशारानी व्होरा

और अधिकआशारानी व्होरा

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हिंदवी

    बच्चो, तुम डाक-टिकट, पुराने सिक्के आदि जमा करते हो न! छोटी लड़‌कियाँ गुड़ियों का भी संग्रह करती हैं लेकिन ढेर सारी गुड़ियों का संग्रह करना उनके लिए मुश्किल है क्योंकि एक तो गुड़िया महँगी होती है, दूसरे उन्हें सुरक्षित रखने के लिए जगह भी ज़्यादा चाहिए।

    लेकिन क्या तुमने कभी किसी बड़ी उम्र के पुरुष को गुड़ियों का संग्रह करते देखा है?

    यहाँ मैं तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में बताने जा रही हूँ, जिसने दो-चार, पाँच-दस नहीं, पाँच हज़ार से भी अधिक गुड़ियों का संग्रह किया है। सारी दुनिया में घूम-घूमकर विभिन्न देशों से भाँति-भाँति की रंग-बिरंगी ख़ूबसूरत गुड़ियों का संग्रह।

    जानते हो, ये इतनी सारी गुड़ियाँ उसने अपने लिए नहीं इकट्ठी की। देश-विदेशों की भिन्न-भिन्न वेशभूषा में सजी, अपने-अपने देश के तौर तरीक़ों वाली ख़ूबसूरत गुड़ियाएँ उसने भारतीय बच्चों के लिए ही जमा की है। इन गुड़ियों को उसने दिल्ली के एक विशाल संग्रहालय में इस तरह सजा रखा है कि बच्चे उन्हें देख सकें। उन्हें बच्चों से प्रेम था, इतना कि वह उनकी ख़ुशी के लिए और भी बहुत सारे काम करते थे और सुबह से शाम तक इन्हीं कामों में लगे रहते थे।

    इस व्यक्ति का नाम था, केशव शंकर पिल्लै। वहीं, शंकर पिल्लै जो लंबे समय तक 'शंकर्स वीकली' के लिए कार्टून बनाते रहे थे। वे

    हिंदवी

    बच्चों के लिए प्यारी-प्यारी पुस्तकें और पत्रिकाएँ निकालते थे। उनके लिए चित्रकला प्रतियोगिताएँ आयोजित करते थे। सिर्फ़ भारत के ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के बच्चे उन्हें जानते हैं। बच्चे ही उनकी कमज़ोरी थे और बच्चे ही उनकी ताक़त।

    हिंदवी

    केशव शंकर पिल्लै का जन्म 1902 में त्रिवेंद्रम में हुआ था। त्रिवेंद्रम विश्वविद्यालय से बी.ए, करने के बाद उन्होंने मुंबई में सिंधिया शिपिंग कंपनी के संस्थापक के निजी सचिव के रूप में नौकरी की। साथ-ही-साथ क़ानून का अध्ययन और चित्रकला का अभ्यास भी चलता रहा। कार्टून बनाना उनकी हॉबी थी। 'बाम्बे-क्रॉनिकल' में उनके कुछ कार्टून छपे तो उन्हें हिंदुस्तान टाइम्स में कार्टूनिस्ट की नौकरी मिल गई। 1932 से 1946 तक उन्होंने वहाँ काम किया। वे भारत के पहले कार्टूनिस्ट थे जिन्हें किसी पत्र ने पूरे समय के लिए नौकरी दी थी। देश-विदेश की बड़ी-बड़ी हस्तियों पर बनाए उनके कार्टूनों ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा और शंकर पिल्लै प्रसिद्ध होते गए। प्रतिभा छुपी नहीं रह सकती, उसे प्रकट होना ही था।

    हिंदवी

    1946 में वे 'इंडियन न्यूज़ क्रॉनिकल' में चले गए, जो अब 'इंडियन एक्सप्रेस' है। फिर शीघ्र ही उन्होंने अपनी पत्रिका 'शंकर्स वीकली' निकालनी शुरू कर दी। यह अपने ढंग की पहली और अनूठी कार्टून पत्रिका थी। 'शंकर्स वीकली' के 'बड़ा साहब' और 'मेम साहब' शीर्षक नियमित कार्टूनों में 'बड़े लोगों' की खोखली दुनिया पर हास्य-व्यंग्य को बहुत पसंद किया गया।

    लगभग पच्चीस साल पहले इन 'बड़े लोगों' को इनके हाल पर छोड़ शंकर बच्चों की ओर झुक गए। उन्हें लगा ये सुंदर, प्यारे-प्यारे, भोले-भाले बच्चे कितने उपेक्षित है, क्यों न इनके लिए, इनकी ख़ुशी के लिए ही काम किया जाए।

    कलाकार तो भावुक होते ही हैं। बच्चों के प्रति उनके मन में जो प्रेम उमड़ा तो वे उन्हीं के ख़यालों में डूबते चले गए। उन्होंने पहली बार 'शंकर्स वीकली' द्वारा 1948 में बाल-चित्रकला प्रतियोगिता का विचार लोगों के सामने रखा। विचार नया था, बच्चों के हित का, इसलिए लोगों ने उसे बहुत पसंद किया। उस समय देश के प्रधानमंत्री और बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू को भी यह विचार अच्छा लगा। 1949 में पहली अंतर्राष्ट्रीय बाल-चित्रकला प्रतियोगिता हुई। 1950 में 'शंकर्स वीकली' के बाल-विशेषांक में श्री नेहरू ने लिखा था, अनेक देशों के बच्चों की यह फ़ौज अलग-अलग भाषा, वेशभूषा में होकर भी एक-जैसी ही है। कई देशों के बच्चों को इकट्ठा कर दो, वे या तो खेलेंगे या लड़ेंगे और यह लड़ाई भी खेल जैसी ही होगी। वे रंग, भाषा या जाति पर कभी नहीं लड़ेंगे। शंकर पिल्लै का उद्देश्य भी यही था, संसार भर के बच्चों को निकट लाना। इसके बाद हर वर्ष 'शंकर्स वीकली' के बाल-विशेषांक निकलते रहे, हर वर्ष यह प्रतियोगिता होती रही और उसमें भाग लेने वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ती रही।

    शंकर चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ढाई साल से सोलह साल के बच्चे भारत के स्कूलों में तैयारी करते रहते हैं। भारत के बाहर भी लगभग 100 देशों के बच्चे हर वर्ष इस अंतर्राष्ट्रीय बाल-चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। सन् 1970 में 103 देशों से कुल 1 लाख 90 हज़ार बच्चों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था और 18 देशों के 22 बच्चों ने 'नेहरू स्वर्ण पदक' जीता था। कुल 482 पुरस्कार दिए गए थे, जिनमें से 50 पुरस्कार लेखन के लिए और शेष चित्रकला के लिए थे। नेहरू जी जब तक जीवित रहे, इस वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि बने और बाल-लेखकों और बाल-चित्रकारों के साथ तसवीरें खिंचवाते रहे। बच्चों की प्रतिभा के विकास में उनकी भी गहरी रुचि थी। इसीलिए शंकर पिल्लै के इस कार्य को उन्होंने प्रोत्साहन और सरकारी सहायता दिलवाई। आज नई दिल्ली में चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट, बाल-पुस्तकालय, गुड़िया-घर है। एक नया 'हॉबी सेंटर' है।

    हिंदवी

    शंकर ने जिस तरह सभी देशों की सुंदर, कलापूर्ण गुड़ियों की खोज की उसी तरह बच्चों के लिए विश्व-भर को चुनी हुई हज़ारों पुस्तकों का भी एक संग्रह किया। उनका स्थापित किया हुआ 'चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट' हर वर्ष बहुत सारी पुस्तकों का प्रकाशन भी करता है। इन पुस्तकों में भारत की लोक-कथाएँ, पौराणिक-कथाएँ, पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ तथा ज्ञान-विज्ञान की कहानियाँ होती हैं, जिनकी छपाई का स्तर बहुत ऊँचा है। भारत की संस्कृति की इन कहानियों को देश की सभी भाषाओं में प्रस्तुत करने की योजना है। देश में छपाई का स्तर ऊँचा हो, इसके लिए वे प्रशिक्षण कोर्स भी चलाते थे।

    हिंदवी

    1954 में शंकर को हंगरी की एक गुड़िया उपहार में मिली। वह गुड़िया इतनी सुंदर थी कि शंकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने विभिन्न देशों से ढेर सारी गुड़ियाँ ला-लाकर भारतीय बच्चों के लिए जमा करनी शुरू कर दीं। पहले उन्होंने अपनी गुड़ियों के इस संग्रह को कई जगह प्रदर्शनियाँ लगाकर बच्चों को दिखाया। जब गुड़ियों की संख्या बहुत ज़्यादा हो गई तो जगह-जगह प्रदर्शनियों में उन्हें ले जाना मुश्किल हो गया। ऐसे में क़ीमती गुड़ियों के ख़राब हो जाने का भी डर था। तब शंकर के मन में एक गुड़िया-संग्रहालय बनाने का विचार आया। देश की राजधानी में बना विशाल गुड़िया-घर उनके उसी विचार का परिणाम है।

    हिंदवी

    गुड़िया-घर में अब एक वर्कशाप भी खोल दी गई है जहाँ भारतीय गुड़ियों का निर्माण होता है और फिर उन्हें विदेशी बच्चों को भेजा जाता है। हर साल उस गुड़िया-घर को देखने वाले भारतीय बच्चों की संख्या एक लाख से अधिक होती है। यहाँ लगभग 85 देशों की प्राचीन और आधुनिक गुड़ियों का आकर्षक संग्रह है। भारत के सभी राज्यों की गुड़ियाँ यहाँ एकत्रित हैं। इनके माध्यम से बच्चे भारत के हर राज्य के और विदेशों के रहन-सहन, तौर-तरीक़ों, फ़ैशन, वेशभूषाओं तथा रीति-रिवाजों से परिचित हो सकते हैं। गुड़िया-घर के कुछ प्रमुख आकर्षण हैं, हंगरी की ऊन कातती वृद्धाएँ, टर्की की संगीतज्ञ-टोली, स्पेन की प्रसिद्ध 'साँड' से लड़ाई, जापान का चाय उत्सव और काबुकी नर्तकियाँ, इंग्लैंड का राजपरिवार और शेक्सपीयर जैसे कवि, अफ़्रीक़ा के आदिवासी, भारत की सांस्कृतिक झाँकियाँ और देश-विदेश के बच्चों का कक्ष, चंद्र-तल पर मानव आदि।

    ये गुड़ियाएँ इतनी आकर्षक है कि हँसती-बोलती, काम करती, चलती-फिरती सजीव-सी लगती हैं। बच्चे इनके बीच जाकर घंटों खो जाते हैं। इस संग्रहालय को एक दिन में अच्छी तरह देखा भी नहीं जा सकता और इसे कई बार देखने पर भी मन नहीं भरता। बच्चों का भरपूर मनोरंजन हो और देश-विदेश के बारे में उनकी जानकारी बढ़े, गुड़िया-घर की स्थापना के पीछे शंकर का यही उद्देश्य था।

    हिंदवी

    बच्चों के विकास के लिए शंकर की अगली योजनाएँ थीं—आर्ट क्लब और हॉबी सेंटर चलाना, 'भारत के बच्चे' नामक पुस्तकों की एक लंबी सीरीज निकालना और हर वर्ष छुट्टियों में 3-4 कैंप लगाकर सारे भारत के बच्चों को एक जगह मिलने का अवसर देना। अपनी इस योजना को वे 'बच्चों का जनतंत्र' नाम देना चाहते थे।

    हिंदवी

    हिंदवी

    इस तरह केशव शंकर पिल्लै अपने बाल-प्रेम और कृतियों से न सिर्फ़ भारत में बल्कि पूरे विश्व में विख्यात हो गए। दुनिया-भर के बच्चों से उन्हें प्यार था तो देश-विदेश के लाखों बच्चों का प्यार भी उन्हें मिला।

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    आशारानी व्होरा

    आशारानी व्होरा

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुर्वा (भाग-3) (पृष्ठ 93)
    • रचनाकार : आशारानी व्होरा
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2008
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए