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रामनगर की रामलीला

मुझे आज भी वह दिन याद है, जब मैंने पहली बार रामनगर, वाराणसी की रामलीला देखी थी। हम सब भाई-बहन ऑटो में बैठकर पापा के साथ रामलीला देखने गए थे। पीछे मुड़कर देखो सब कुछ सपने जैसा लगता है। बनारस में वैसे ही एक जादू है—इसके प्राचीन घाटों और सँकरी गलियों में कुछ ख़ास है, और रामलीला के दौरान पूरा शहर असाधारण रूप से मनमोहक लगने लगता है। वह नवरात्रि का एक गुनगुना दिन था और मैंने रामनगर की इस प्रसिद्ध घटना के बारे में बहुत कुछ सुना था। दुनिया भर में मशहूर रामनगर की रामलीला, लेकिन जितनी कहानियाँ मैंने सुनी थीं, वे मुझे उस भव्यता और भक्ति के बारे में नहीं बता सकीं, जो मैंने वहाँ जाकर देखी।

भारत में रामलीला हर जगह होती है, ख़ासकर दशहरे के पहले; लेकिन रामनगर की रामलीला कुछ और ही है। यह सिर्फ़ एक नाटक नहीं है, यह एक जीवंत परंपरा है। रामनगर, वाराणसी की रामलीला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का एक ज्वलंत प्रतीक है। 

गंगा नदी के किनारे बसे इस प्राचीन परंपरागत शहर ने अपनी भव्यता, भक्ति और सांस्कृतिक महत्त्व के कारण वैश्विक मान्यता प्राप्त की है। हर साल नवरात्रि के दौरान इस रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें भगवान राम के जीवन का पुन: सजीव चित्रण किया जाता है। यह जीवन-प्रसंग प्राचीन महाकाव्य रामायण पर आधारित है। हालाँकि भारत में अनेकों स्थानों पर रामलीलाएँ आयोजित होती हैं, लेकिन रामनगर की रामलीला अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्ता के लिए सबसे अलग और महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह न सिर्फ़ मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक धरोहर का जीवंत प्रतीक भी है।

ऐतिहासिक महत्त्व

रामनगर की रामलीला की शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुई, जब काशी नरेश-महाराज उदित नारायण सिंह ने इसे शुरू किया। तब से यह रामलीला काशी के शाही परिवार की परंपरा बन गई। वर्तमान काशी नरेश, जिन्हें वाराणसी के सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षक के रूप में माना जाता है, इस आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

रामनगर का क़िला, जो काशी नरेश का निवास स्थान है; इस भव्य आयोजन का केंद्र होता है और जहाँ इसके विशाल प्रांगण और आंगन में भगवान राम के जीवन की गाथा को जीवंत करने के लिए मंच बनाए जाते हैं।

रामनगर की रामलीला अन्य स्थानों की रामलीलाओं से अपने पैमाने, अवधि और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण भिन्न है; जबकि अधिकांश रामलीलाएँ कुछ दिनों में ही समाप्त हो जाती हैं, रामनगर की रामलीला 31 दिनों तक चलती है। हर दिन रामायण के किसी विशिष्ट अध्याय पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। हज़ारों स्थानीय अभिनेता, जो शौकिया अभिनय करते हैं, महीनों तक अपनी भूमिकाओं का अभ्यास करते हैं और पूरी निष्ठा से इस आयोजन में भाग लेते हैं। यह रामलीला किसी स्थाई मंच पर नहीं, बल्कि रामनगर के विभिन्न स्थानों पर होती है, जहाँ हर स्थान रामायण की किसी विशेष घटना का प्रतीक होता है।

सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भ

रामनगर की रामलीला के मूल में भगवान राम के प्रति भक्ति है, लेकिन इसका महत्त्व धार्मिक पूजा से कहीं अधिक है। यह एक सांस्कृतिक उत्सव है—जहाँ परंपरा, कला, इतिहास और समुदाय का संगम होता है। यह प्रदर्शन न केवल प्रतिभागियों और दर्शकों के लिए आध्यात्मिक अनुभव होता है, बल्कि रामायण के मूल्यों और उसकी शिक्षाओं को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का माध्यम भी है। भगवान राम के जीवन की कथा, उनके वनवास से लेकर रावण पर विजय, धर्म, निष्ठा, नैतिकता और अच्छाई की बुराई पर विजय जैसे सार्वभौमिक विषयों को प्रकट करती है।

रामनगर की रामलीला में रंगमंच, संगीत और वक्तृत्व कला का अनूठा संगम देखने को मिलता है। संवाद मध्यकालीन हिंदी की एक समृद्ध, काव्यात्मक शैली में बोले जाते हैं। पारंपरिक संगीत और भक्ति गीतों के साथ यह प्रदर्शन एक संगीतात्मक और लयबद्ध रूप धारण कर लेता है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध ही नहीं भाव विभोर भी करता है। भक्तों के लिए रामायण के श्लोकों को इस लयात्मक, भावनात्मक रूप में सुनना उनकी आध्यात्मिक अनुभूति को शीर्ष पर पहुँचाता है।

हालाँकि इस रामलीला में भगवान राम की कथा प्रमुख होती है, लेकिन प्रदर्शन में स्थानीय सांस्कृतिक तत्त्व भी मिश्रित होते हैं। वाराणसी के लोकाचार, रीति-रिवाज और धार्मिक अनुष्ठान इस प्रदर्शन में गहरे निहित होते हैं, जो क्षेत्र की विविध सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतिबिंब प्रस्तुत करते हैं। अभिनेता पारंपरिक हस्तनिर्मित पोशाक पहनते हैं और सेट को स्थानीय सामग्रियों और प्राचीन शिल्प तकनीकों से सजाया जाता है, जो सदियों से चली आ रही हैं।

एक अनूठा मंच और अनुभव

रामनगर की रामलीला की एक सबसे अनूठी विशेषता इसकी चलायमान प्रदर्शन शैली है। आमतौर पर जहाँ एक नाटकीय प्रस्तुति में दर्शक एक स्थान पर बैठे रहते हैं, यहाँ पर दर्शक अभिनेता के साथ-साथ, अलग-अलग स्थानों पर जाते हैं, जहाँ-जहाँ दृश्य बदलते हैं। यह एक प्रकार की तीर्थयात्रा की तरह होता है, जहाँ दर्शक अभिनेताओं के साथ चलते हैं और दिन में कई किलोमीटर तक का सफ़र तय करते हैं। 

रामनगर के विभिन्न स्थान रामायण की कथा के प्रमुख स्थलों का प्रतीक होते हैं। जैसे कि अशोक वाटिका, जहाँ सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था, रामनगर के एक सुंदर उद्यान में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि राम और रावण के बीच का युद्ध एक विशाल मैदान में होता है—जहाँ घोड़े और रथ का प्रयोग किया जाता है, जिससे दृश्य और भी सजीव लगते हैं।

रामनगर की गलियाँ, घाट और खुले मैदान पौराणिक स्थलों में तब्दील हो जाते हैं और अभिनेता रामायण की कथा को जीवंत कर देते हैं। इन परिवर्तित स्थानों के साथ दर्शकों को भगवान राम की दुनिया में ले जाया जाता है। इस पूरी प्रस्तुति में कोई कृत्रिम प्रकाश या आधुनिक ध्वनि प्रणाली का उपयोग नहीं होता; इसकी जड़ें अपनी पुरानी शैली में बनी हुई हैं। मशालों और अभिनेता की प्रबल आवाज़ों से ही यह दर्शकों को बाँधकर रखता है।

इस पूरे अनुभव को और भी ख़ास बनाती है—काशी नरेश की उपस्थिति। वह भगवान शिव के प्रतीकात्मक प्रतिनिधि के रूप में इस आयोजन की अध्यक्षता करते हैं। हर शाम, चाँदी के सिंहासन पर बैठकर काशी नरेश इस प्रदर्शन को देखते हैं, उनके साथ उनके दरबारी और पुजारी होते हैं। उनकी उपस्थिति इस आयोजन को एक दिव्य स्वीकृति प्रदान करती है, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को और भी बढ़ावा देती है।

सामुदायिक भागीदारी और परंपरा का संरक्षण

रामनगर की रामलीला की एक और विशिष्टता इसकी उच्च स्तर की सामुदायिक भागीदारी है। अधिकांश अभिनेता पेशेवर नहीं होते, बल्कि स्थानीय नागरिक होते हैं—किसान, दुकानदार और छात्र—जो अपनी भूमिका निभाने के लिए अपना समय और ऊर्जा समर्पित करते हैं। इन प्रतिभागियों में से कई ने अपनी भूमिकाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में पाई हैं और वे इसमें गर्व महसूस करते हैं। उनके लिए रामायण के किसी पात्र का अभिनय करना एक गहन आध्यात्मिक कार्य होता है, जो उन्हें अपने विश्वास और सांस्कृतिक धरोहर के क़रीब लाता है।

यह सामुदायिक भागीदारी केवल अभिनेताओं तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि रामनगर के पूरे नगर में व्याप्त होती है। स्थानीय कारीगर सेट तैयार करने और पोशाकें बनाने में मेहनत करते हैं, जबकि निवासी आगंतुकों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था करते हैं। इस आयोजन के दौरान पूरा नगर एकजुट होकर इसे सफल बनाने में योगदान देता है, जिससे यह लोगों की सामूहिक सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना का प्रतिबिंब बनता है।

तेज़ी से आधुनिक हो रही दुनिया में, रामनगर की रामलीला ने व्यवसायीकरण और तकनीकी उन्नति के दबावों का विरोध करते हुए अपनी प्राचीनता को बनाए रखा है। यह आज भी उसी पारंपरिक ढंग से आयोजित होती है, जैसे सदियों पहले होती थी, जिसने इसकी प्रामाणिकता और पवित्रता को बनाए रखा है। हर साल यहाँ आने वाले हज़ारों दर्शक, जिनमें विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं, इस आयोजन की स्थायी लोकप्रियता और सांस्कृतिक महत्त्व का प्रमाण हैं।

रामनगर, वाराणसी की रामलीला आज भी एक भव्य सांस्कृतिक आयोजन के रूप में प्रसिद्ध है, जो अपनी सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए है। हालाँकि आधुनिकता का असर दिखने लगा है, फिर भी यह आयोजन अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है और हर साल दुनिया भर से बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करता है।

वर्तमान स्थिति

रामनगर की रामलीला को यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता मिली है, जिससे इसकी वैश्विक पहचान और सम्मान में वृद्धि हुई है। 31 दिनों तक चलने वाला यह आयोजन वाराणसी के सांस्कृतिक आकर्षणों में से एक है, जहाँ पूरे रामनगर को एक विशाल मंच में तब्दील कर दिया जाता है। विभिन्न स्थानों पर रामायण के दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं और इसमें स्थानीय लोग बड़ी आस्था के साथ शामिल होते हैं।

कलाकारों की स्थिति

रामलीला में प्रदर्शन करने वाले कलाकार ज़्यादातर स्थानीय होते हैं और पेशेवर अभिनेता नहीं होते। ये लोग अपने धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव के चलते इसमें भाग लेते हैं। हालाँकि यह आयोजन वैश्विक स्तर पर सम्मानित है, लेकिन कलाकारों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें आर्थिक रूप से बहुत कम सहयोग मिलता है, जबकि वे कठोर प्रशिक्षण और महीनों की तैयारी में लगे रहते हैं। इसके कारण नई पीढ़ी के बीच इस परंपरा को जारी रखने में रुचि कम होती जा रही है, क्योंकि इसमें न तो उन्हें कोई पेशेवर अवसर मिलता है और न ही उचित आर्थिक लाभ।

क्या रामनगर की रामलीला को पर्याप्त सम्मान मिल रहा है?

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रामनगर की रामलीला को पर्याप्त सम्मान प्राप्त है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या कलाकारों और आयोजकों को पर्याप्त समर्थन मिल रहा है? आधुनिकता ने इसमें कुछ बदलाव जैसे ध्वनि प्रणाली और न्यूनतम प्रकाश व्यवस्था को शामिल किया है, लेकिन परंपरा का मूल स्वरूप जस-का-तस बना हुआ है। फिर भी, कलाकारों और आयोजकों की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि उनके योगदान को सही पहचान मिले और यह परंपरा बिना किसी कठिनाई के आगे बढ़ती रहे। इसे ख़ासकर वित्तीय सहयोग और संस्थागत समर्थन की ज़रूरत है ताकि यह सांस्कृतिक धरोहर भविष्य में भी फलती-फूलती रहे। 

कुल मिलाकर, रामलीला को लेकर आधुनिक और पारंपरिक पक्षों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन कलाकारों की बेहतरी और इस आयोजन की दीर्घकालिकता को सुनिश्चित करने के लिए अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

रामनगर की रामलीला से जुड़े कुछ दुर्लभ और दिलचस्प तथ्य :

सबसे लंबी चलने वाली रामलीला

रामनगर की रामलीला भारत में सबसे लंबी चलने वाली निरंतर रामायण कथा है। यह 31 दिनों तक चलती है, जबकि अधिकांश रामलीलाएँ 10-15 दिनों में समाप्त हो जाती हैं। यह हर दिन रामायण के किसी विशेष प्रकरण पर केंद्रित होती है, जिससे यह महाकाव्य विस्तार से और गहराई से प्रस्तुत किया जाता है।

कोई स्थायी मंच नहीं

आम नाटकों की तरह यहाँ एक निश्चित मंच नहीं होता। रामनगर की रामलीला में पूरा शहर ही मंच बन जाता है। नाटक कई स्थानों पर होता है, और दर्शक कलाकारों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं। उदाहरण के लिए, अशोक वाटिका का दृश्य एक बग़ीचे में खेला जाता है और युद्ध के दृश्य विशाल मैदानों में होते हैं।

कथानक और प्रदर्शन अपरिवर्तित

रामनगर की रामलीला के संवाद और स्क्रिप्ट 200 साल से भी अधिक समय से नहीं बदले हैं। इसे तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है, ताकि परंपरा को प्रामाणिक बनाए रखा जा सके। कलाकार हर साल उन्हीं काव्यात्मक संवादों, परिधानों और रंगमंचीय शिल्प का पालन करते हैं, जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं।

कृत्रिम रोशनी या आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं

रामनगर की रामलीला में कृत्रिम रोशनी, माइक्रोफ़ोन या आधुनिक ध्वनि प्रणालियों का उपयोग नहीं किया जाता। पूरी प्रस्तुति प्राकृतिक सूर्य और चाँदनी के नीचे की जाती है और कलाकार अपनी शक्तिशाली आवाज़ों से संवाद बोलते हैं। रात में, मशाल-धारक (मशालवाले) कलाकारों के साथ चलते हैं, रास्ता रोशन करते हैं और एक अद्भुत वातावरण बनाते हैं।

राजसी संरक्षण

काशी नरेश, यानी वाराणसी के राजा, रामलीला के पारंपरिक संरक्षक होते हैं। आज भी, वर्तमान काशी नरेश इस आयोजन की अध्यक्षता करते हैं और उनकी उपस्थिति को शुभ माना जाता है। राजा चाँदी के सिंहासन पर बैठकर रामलीला देखते हैं और इस दौरान उन्हें भगवान शिव का प्रतीकात्मक प्रतिनिधि माना जाता है, क्योंकि वाराणसी का संबंध शिव से जुड़ा है।

पीढ़ियों से चली आ रही भागीदारी

रामनगर की रामलीला में भाग लेने वाले कई कलाकार और आयोजक पीढ़ियों से इस परंपरा से जुड़े हैं। कई परिवारों ने इस परंपरा को सदियों से निभाया है, और प्रमुख पात्रों जैसे राम और रावण की भूमिकाएँ आमतौर पर उन परिवारों को सौंपी जाती हैं जिनकी इस आयोजन में लंबी भागीदारी रही है।

ग़ैर-पेशेवर कलाकार

आश्चर्यजनक रूप से, रामनगर की रामलीला के कलाकार पेशेवर नहीं होते। वे स्थानीय किसान, दुकानदार, छात्र होते हैं, जो अपने धार्मिक विश्वास के चलते महीने भर की तैयारी करते हैं। यहाँ प्रदर्शन को सिर्फ़ अभिनय नहीं, बल्कि भक्ति का रूप माना जाता है और यह गहरी आध्यात्मिक भावना उनके समर्पण में झलकती है।

पवित्र स्थान और पौराणिक भूगोल

रामलीला के प्रदर्शन के लिए स्थानों का चयन किसी ख़ास मक़सद से किया जाता है। इन स्थानों को रामायण के पौराणिक स्थलों का प्रतीक माना जाता है। उदाहरण के लिए, रामनगर का एक तालाब पंचवटी वन का प्रतीक है और एक बग़ीचा अशोक वाटिका बनता है। ये पवित्र स्थल पूरे वर्ष अछूते रहते हैं और केवल रामलीला के दौरान ही उपयोग में लाए जाते हैं।

पारंपरिक और हस्तनिर्मित परिधान

रामनगर की रामलीला में इस्तेमाल होने वाले सभी परिधान पारंपरिक तरीक़े से हाथ से बनाए जाते हैं। भव्य पोशाकें स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार की जाती हैं, जो पीढ़ियों से इस काम में शामिल रहे हैं। कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले गहने भी अक्सर असली होते हैं, जो इस आयोजन की प्रामाणिकता को बढ़ाते हैं।

रथ, हाथी और घोड़ों का उपयोग

अधिकतर रामलीलाओं में जहाँ सरल प्रॉप्स का उपयोग किया जाता है, वहीं रामनगर की रामलीला अपनी भव्यता और यथार्थवाद के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के युद्ध दृश्यों में असली रथ, हाथी और घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे ये दृश्य और भी प्रभावशाली हो जाते हैं। राम और रावण के बीच युद्ध के दृश्य में रथों का दौड़ना इस नाटक को और भी जीवंत बना देता है।

चरित्रों से व्यक्तिगत जुड़ाव

रामनगर की रामलीला में दर्शकों और पात्रों के बीच गहरा भावनात्मक और आध्यात्मिक जुड़ाव होता है; चूँकि यह आयोजन पूरे महीने चलता है, लोग कलाकारों को रोज़ाना देखते हैं और उनके पात्रों से एक व्यक्तिगत संबंध बना लेते हैं। ख़ासकर जो कलाकार राम की भूमिका निभाते हैं, उन्हें इस पूरे महीने के दौरान कड़ी अनुशासन और तपस्या का पालन करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें भगवान राम का अस्थायी अवतार माना जाता है।

चलता हुआ दर्शक

रामनगर की रामलीला का अनूठा प्रारूप दर्शकों को भी कलाकारों के साथ-साथ चलने के लिए प्रेरित करता है।

अतीत को वर्तमान से जोड़ती एक जीवंत परंपरा

रामनगर की रामलीला केवल एक प्रदर्शन नहीं है, यह एक जीवंत परंपरा है जो अतीत को वर्तमान से जोड़ती है। यह रामलीला रामायण की गाथा का विस्तृत प्रस्तुतीकरण कर मूल्यों, नैतिकताओं और आध्यात्मिक शिक्षाओं को जीवंत रखती है। साथ ही यह वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की झलक भी प्रस्तुत करती है, जिसमें परंपराएँ, रीति-रिवाज और कलात्मक अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं। रामनगर और वाराणसी के लिए यह रामलीला सिर्फ़ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवन-शैली है—एक ऐसा माध्यम जो उनके विश्वास, इतिहास और सांस्कृतिक पहचान को और भी दृढ़ता प्रदान करता है।

रामनगर की रामलीला को देखना सिर्फ़ एक नाटक देखना नहीं है, यह उस जीवंत परंपरा में क़दम रखना है जो सदियों से चली आ रही है। यह एक ऐसे समुदाय का हिस्सा बनना है, जो हर साल अपने अतीत को पूरी श्रद्धा के साथ सँजोता है।

  

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