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इस बार शांतिनिकेतन में होगा ‘संगमन’

वर्ष 1993 में कानपुर से शुरू हुआ रचनात्मक व बौद्धिक हस्तक्षेप के सहकारी उपक्रम ‘संगमन’ का 26वाँ आयोजन देश के विभिन्न राज्यों से गुज़रता हुआ इस बार शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में हो रहा है। तारीख़ें हैं—22-23-24 नवंबर 2025। इस बार के ‘संगमन’ का केंद्रीय विषय मेरी रचनात्मकता : मेरे द्वंद्व है। इस विषय पर छह सत्रों में देश के विभिन्न हिस्सों से आए हुए लगभग 30 रचनाकार और स्थानीय प्रतिभागी अपने विचार रखेंगे।

आमंत्रित प्रतिभागियों की सूची (स्वीकृति आधारित) अकारादि क्रम में यों है : 

• अलका सरावगी
• अविनाश मिश्र
• आलोक रंजन
• आशुतोष
• उपासना
• एजाज़ुल हक़
• ओमा शर्मा
• कमलेश भट्ट कमल
• कैफ़ी हाशमी
• जया जादवानी
• जितेंद्र भाटिया
• जीवेश प्रभाकर
• ज्योति शोभा
• दिव्या विजय
• नवनीत नीरव
• निहाल पाराशर
• फ़हीम अहमद
• बसंत त्रिपाठी
• मनोज रूपड़ा
• मिथिलेश प्रियदर्शी
• रणजीत दाश
• रवींद्र आरोही
• राही डूमरचीर
• रितेश कुमार पांडेय
• विनय सौरभ
• विमल चंद्र पांडेय
• वैभव सिंह
• सुनील फेकनिया

‘संगमन’ के बारे में

‘संगमन’ ने स्थायी ढाँचागत सुविधाओं के बग़ैर, विगत 28 वर्षों में विभिन्न विषयों पर विमर्श के 25 वार्षिक आयोजन करके साहित्य और विचार की दुनिया में अपनी महत्त्वपूर्ण तथा स्वीकार्य पहचान बनाई है। इस संस्था का भौतिक स्वरूप एक ऐसी संरचना से बना है, जो सर्वथा अलग और पारदर्शी है। इसमें किसी पदाधिकारी का न होना, इसका कोई बैनर न होना, इसका कोई बैंक-अकाउंट न होना, इसकी कोई स्थायी या अस्थायी संपत्ति न होना—संस्था को विशिष्ट बनाते हैं। संस्था का यह प्रारूप और इसका आतंरिक प्रबंधन इतना लचीला है कि इसे दुनिया के किसी भी हिस्से में आयोजित किया जा सकता है।

अक्टूबर-1993 में कानपुर से शुरू हुआ यह सिलसिला; अक्टूबर-2023 में मुज़फ़्फ़रपुर में संपन्न 25वें आयोजन के बाद, अब अपने अगले पड़ाव की ओर है।

प्रायः हर बड़ी शुरुआत बहुत सामान्य स्तर पर ही हो पाती है। ‘संगमन’ की शुरुआत भी इससे अलग नहीं थी। संभवतः 1993 के अप्रैल महीने में गिरिराज किशोर, प्रियंवद, अमरीक सिंह दीप और कमलेश भट्ट कमल एक यात्रा पर थे। उस यात्रा के दौरान ही मन में यह विचार आया कि लेखन पर बातचीत के लिए एक मंच क्यों न बनाया जाए, जिसमें ख़ासतौर पर नई पीढ़ी के लेखकों की भागीदारी हो। फिर तो इसके प्रारूप और अन्य पक्षों पर पूरी गंभीरता से मंथन शुरू हो गया। औपचारिक और पारंपरिक प्रारूप के बजाय मंच को कितना ज़्यादा अनौपचारिक बनाया जा सके, इस पर भी ख़ूब विचार-विमर्श हुआ। मंच की इस अनौपचारिकता के पीछे औपचारिक संस्थाओं में पद और वर्चस्व को लेकर होने वाली राजनीति तथा वास्तविक उद्देश्य से भटकाव से बचने का उपक्रम मुख्य था। इसलिए यह तय हुआ कि यह मंच किसी औपचारिक संस्था के रूप में काम नहीं करेगा, न इसका कोई अध्यक्ष, न सचिव, और न ही कोई पदाधिकारी होगा। तमाम संस्थाओं में आर्थिक कारणों से उत्पन्न होने वाली कटुता और वैमनस्य से बचने के लिए यह भी तय हुआ कि इस मंच का कोई बैंक-अकाउंट और कोष भी नहीं होगा। इस मंच से जुड़े लोग ही अपना अंशदान देंगे और साहित्य, कला या अन्य सामाजिक प्रतिबद्धताओं के प्रति निष्ठावान लोगों से ही अगर ज़रूरी हुआ तो आयोजन के लिए सहयोग लिया जाएगा। यह आयोजन वार्षिक होगा और किसी भी शहर में आयोजित किया जा सकेगा। इस आयोजन में स्थानीय पर्यटन को भी अनिवार्य रूप से शामिल करने पर सहमति बनी।

आयोजन के दौरान सत्रों को भी अधिकाधिक अनौपचरिक रखने का निर्णय लिया गया। यह तय हुआ कि उनमें न कोई अध्यक्ष और न कोई मुख्य अतिथि आदि होगा, न ही फूल-माला और दीप-प्रज्वलन, न ही कोई पुस्तक-विमोचन, सरस्वती-वंदना जैसी औपचारिकताएँ ही होंगी। इतना ही नहीं, ‘संगमन’ का कोई सदस्य संवाद-सत्रों में चलने वाली बहसों में अपना हस्तक्षेप या उपस्थिति भी दर्ज नहीं कराएगा। ‘संगमन’ की तरफ़ से केवल हिंदी के वरिष्ठतम और समादृत लेखक गिरिराज किशोर ‘संगमन’ का समापन करते हुए अपनी तथा पूरे आयोजन की बातचीत को समेटते हुए बात रखेंगे। पर इस स्वरूप को ‘संगमन’ के पिछले कुछ आयोजनों में बदल दिया गया, क्योंकि हमारे परिवार में कई प्रतिष्ठित लेखक भी रहे हैं और इस नियम के अंतर्गत लोग उनके विचार जानने से वंचित रह जाते थे। अब ये भी वक्ता के रूप में हिस्सेदारी करते हैं। प्रसन्नता की बात है कि इस मंच ने अपनी इन अवधारणाओं-नियमों का पालन पिछले 25 आयोजनों में किया है। मंच ने वैचारिक स्तर पर भी पूरा खुलापन रखा है। किसी संस्था अथवा व्यक्ति द्वारा स्वयं को इस्तेमाल कर लिए जाने से अपने को पूरी तरह बचाया है। ‘संगमन’ के चारों संस्थापक सदस्य इसकी नींव के पत्थर रहे। (गिरिराज किशोर के निधन के बाद अब तीन संस्थापक सदस्य हैं।) बीच-बीच में ‘संगमन’ कुछ साहित्यकारों को संस्था की शर्तों पर अपने साथ जोड़ता रहा है। इनमें से कुछ साहित्यिक मित्र अपने-अपने कारणों से अलग भी होते रहे हैं। संस्था ऐसे लोगों की आभारी है, जिन्होंने समय-समय पर उसे ताक़त और सामूहिकता प्रदान करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया है या दे रहे हैं। ‘संगमन’ परिवार की पारस्परिक आत्मीयता, सक्रियता और सहयोग ही संगमन का मुख्य आधार है।

शुरू के दो ‘संगमन’ कानपुर में हुए। इन दो आयोजनों में न्यूनतम साधनों के साथ ‘संगमन’ ने अपने आधारभूत नियम-स्वरूप व्यवहार रूप में लगभग सुनिश्चित कर लिए थे। इसके बाद ‘संगमन’ को कानपुर से बाहर निकालकर देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाया गया। प्रत्येक नए शहर में हमें एक स्थानीय संयोजक मिला, जिसने ‘संगमन’ के प्रतिभागियों के रहने और भोजन आदि की व्यवस्था का दायित्व उठाया। इस तरह ‘संगमन’ की यह यात्रा और उसका यह स्वरूप चल निकला।

आरंभिक 15-16 आयोजनों तक संस्था प्रतिभागियों को मार्ग-व्यय देती रही है। बाद में आर्थिक कठिनाइयों के चलते यह तय किया गया कि प्रतिभागियों से अनुरोध किया जाए कि मार्ग-व्यय वे स्वयं वहन करें। इस तरह बची राशि को ‘संगमन’ स्थानीय संयोजक को दे, जिससे वह अपने दायित्व को अधिक सुगमता-सुविधापूर्वक निभा सके। यह संस्था के लिए बेहद गर्व का विषय है कि हमारे प्रतिभागी अब अपने ख़र्चों पर शामिल होकर ‘संगमन’ के आयोजनों को पहले की ही तरह सफल बना रहे हैं। इस परिवर्तन के बाद देखा जाए तो ‘संगमन’ अब पूरी तरह एक सहकारी आयोजन का रूप ले चुका है। इसमें संस्थापकों और ‘संगमन’-टीम में शामिल अन्य सदस्यों के साथ ही, स्थानीय संयोजक तथा सभी प्रतिभागियों की, प्रत्येक स्तर पर, प्रत्येक रूप में प्रत्यक्ष-परोक्ष सहभागिता होती है। इसके साथ ही ‘संगमन’-22 से स्थानीय व्यवस्थाओं तथा प्रबंधन के लिए ‘तक्षशिला एजुकेशनल सोसाइटी’ का महत्त्वपूर्ण सहयोग ‘संगमन’ को प्राप्त हो रहा है। इससे ‘संगमन’ को मज़बूत आधार और आर्थिक निश्चितता प्राप्त हुई है।

कोविड की वजह से ‘संगमन’ के आयोजन तीन वर्ष स्थगित रहे। चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) में 24वें आयोजन के साथ ‘संगमन’ ने वर्ष 2022 से अपनी यात्रा फिर से शुरू की। 25वाँ आयोजन मुज़फ़्फ़रपुर में 30 सितंबर-1 अक्टूबर 2023 को हुआ।

‘संगमन’ की यात्रा 

• संगमन-1, कानपुर (उत्तर प्रदेश), 2-3 अक्टूबर 1993
• संगमन-2, कानपुर (उत्तर प्रदेश), 2-3 अक्टूबर 1994
• संगमन-3, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश), 1-3 मार्च 1997
• संगमन-4, दुधवा नेशनल पार्क (उत्तर प्रदेश), 2-4 अक्टूबर 1998
• संगमन-5, धनबाद (झारखंड), 3-5 सिंतबर 1999
• संगमन-6, वृंदावन (उत्तर प्रदेश), 1-3 अक्टूबर 2000
• संगमन-7, अहमदाबाद (गुजरात), 24-26 नवंबर 2001
• संगमन-8, देहरादून (उत्तराखंड), 28-30 सितबंर 2002
• संगमन-9, सारनाथ (उत्तर प्रदेश), 11-13 अक्टूबर 2003
• संगमन-10, श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान), 2-4 अक्टूबर 2004
• संगमन-11, पिथौरागढ़ (उत्तराखंड), 1-3 अक्टूबर 2005
• संगमन-12, जमशेदपुर (झारखंड), 29-31 अक्टूबर 2006
• संगमन-13, नैनीताल (उत्तराखंड), 28-30 अक्टूबर 2007
• संगमन-14, ग्वालियर (मध्य प्रदेश), 10-12 अक्टूबर 2008
• संगमन-15, उदयपुर (राजस्थान), 2-4 अक्टूबर 2009
• संगमन-16, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश), 2-4 अक्टूबर 2010
• संगमन-17, मांडू (मध्य प्रदेश), 5-7 नवंबर 2011
• संगमन-18, बरोग (हिमाचल प्रदेश), 25-27 नवंबर 2012
• संगमन-19, चंदेरी (मध्य प्रदेश), 4-6 अक्टूबर 2013
• संगमन-20, मंडी (हिमाचल प्रदेश), 2-3 नवंबर 2014
• संगमन-21, नागपुर (महाराष्ट्र), 2-4 अक्टूबर 2015
• संगमन-22, मडगाँव (गोवा) 7-9 अक्टूबर 2017
• संगमन-23, गुवाहाटी (असम), 1-2 अक्टूबर 2018
• संगमन-24, चितौड़गढ़ (राजस्थान), 12-13 नवंबर 22
• संगमन-25, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार), 30 सिंतबर-1 अक्टूबर 2023

‘संगमन’-26 के विषय में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ संपर्क कर सकते हैं :

‘संगमन’-संयोजक
प्रियंवद
मो.: 9839215236

स्थानीय संयोजक
यशवंत पाराशर
मो.: 9431067164

चंदन पांडेय
मो.: 9901822558

स्थानीय संपर्क

मनोज कुमार दास
मो.: 8420873193

 

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