रामचरणदास की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 16
राम चरन दुख मिटत है, ज्यों विरही अतिहीर।
राम बिरह सर हिय लगे, तन भरि कसकत पीर॥
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राम चरन मदिरादि मद, रहत घरी दुइ जाम।
बिरह अनल उतरै नहीं, जब लगि मिलहिं न राम॥
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प्रेम सराहिये मीन को, बिछुरत प्रीतम नीर।
राम चरण तलफत मरे, तिमी जिय बिन रघुवीर॥
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राम चरन रबिमनि श्रवत, निरषि बिरहिनी पीव।
अग्नि निरषि जिमि घृत द्रवत, राम रूप लखि जीव॥
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कब नैननि भरि देखिहौं, राम रूप प्रति अंग।
राम चरन जिमि दीप छबि, लखि मरि जात पतंग॥
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