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प्रेमचंद

1880 - 1936 | लमही, उत्तर प्रदेश

हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास-सम्राट के रूप में समादृत। हिंदी साहित्य में आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद के प्रणेता।

हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास-सम्राट के रूप में समादृत। हिंदी साहित्य में आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद के प्रणेता।

प्रेमचंद की संपूर्ण रचनाएँ

कहानी 22

आलोचनात्मक लेखन 3

 

उद्धरण 50

पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम में वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुँचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा।

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अतीत चाहे दु:खद ही क्यों हो, उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं।

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धर्म का मुख्य स्तंभ भय है।

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स्त्रियों की कोमलता पुरुषों की काव्य-कल्पना है।

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प्रेम जितना ही सच्चा, जितना ही हार्दिक होता है, उतना ही कोमल होता है। वह विपत्ति के सागर में उन्मत्त ग़ोते खा सकता है, पर अवहेलना की एक चोट भी सहन नहीं कर सकता।

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पुस्तकें 15

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