1965 | दुर्ग, छत्तीसगढ़
सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।
यह बालोद का बुधवारी बाज़ार है। बालोद इस ज़िले की एक तहसील है। कुछ साल पहले तक यह सिर्फ़ एक छोटा-सा गाँव हुआ करता था। जहाँ किसान थे, उनके खेत थे, हल-बक्खर थे, उनके बरगद, नीम और पीपल थे। पर अब यह एक छोटा शहर की सारी ख़ूबियाँ लिए हुए। आसपास के गाँव-देहातों
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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