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हिमांशु जोशी

1935 - 2018 | चम्पावत, उत्तराखंड

हिमांशु जोशी की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

साँस रुकती है, उसे मौत कहते हैं। गति रुकती है, तब भी मौत है। हवा रुकती है, वह भी मौत है। रुकान सदा मौत है। जीवन नाम चलने का है।

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कलाकार भटकता रहे, उद्भ्रांत रहे, किसी प्रयोजन में नियोजित कर दिया जाए तो वह बड़ी शक्ति बन जाता है। नहीं तो वह अपने को ही खाता है।

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