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दादा धर्माधिकारी

1899 - 1985 | मध्य प्रदेश

दादा धर्माधिकारी की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 11

क्रांति में मूल्य का परिवर्तन होगा। सबसे पहले हमें अपने जीवन में परिवर्तन करना होगा।

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जन्तंत्र में इस बात की आवश्यकता है कि जो क्रांति हो, वह केवल जनता के लिए हो, 'जनता की क्रांति', 'जनता के द्वारा' हो। आज क्रांति भी जनतांत्रिक होनी चाहिए, अन्यथा दुनिया में जनतंत्र की कुशल नहीं है। क्रांति की प्रक्रिया ही जनतांत्रिक होनी चाहिए।

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सबको खाना, कपड़ा, मकान, मिल जाना क्रांति नहीं है। जितनी ज़रूरत हो, उतना खाना मिले, कपड़े की ज़रूरतें पूरी हो जाएँ, हर एक को रहने के लिए अच्छा मकान मिल जाए—यह मनुष्य को सुखी जानवर बना सकता है, लेकिन स्वतंत्र मानव नहीं बना सकता। इसलिए यह क्रांति नहीं है।

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यंत्रीकरण के साथ समाज यंत्र निष्ठ हो जाता है। यंत्र पर इतना भरोसा हो कि वह मनुष्य की जगह ले ले। यंत्र में इतना विश्वास हो कि मनुष्य के ऊपर भरोसा ही रहे। आर्थिक संयोजन में यंत्र हो, यह अलग बात है, लेकिन मनुष्य की जगह यंत्र ही जाए, इसकी सावधानी रखनी चाहिए।

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हमारा व्यक्तित्व जैसा होगा, वैसा ही दुनिया का नक्शा हम बनाएँगे। इसे 'चारित्र्य' कहते हैं।

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