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बनारसी दास चतुर्वेदी

बनारसी दास चतुर्वेदी का परिचय

द्विवेदीयुगीन साहित्यकार-पत्रकार-संपादक बनारसीदास चतुर्वेदी का जन्म 24 दिसंबर 1892 को उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद में हुआ था। इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने सरकारी विद्यालय के अध्यापक के रूप में अपने कार्यजीवन का आरंभ किया। थोड़े समय बाद ही उन्हें इंदौर के डेली कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त मिल गई जहाँ वह डॉ. संपूर्णानंद के सक्रिय संपर्क में आए। उन्हीं दिनों वह महात्मा गाँधी के संपर्क में भी आए जब हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए उनका इंदौर आगमन हुआ। महात्मा गाँधी ने 1921 में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की तो चतुर्वेदी जी उससे संबद्ध हो गए। इससे पूर्व उन्होंने हिंदी राष्ट्रभाषा अभियान में भी उनकी सहायता की थी।

 

बनारसीदास चतुर्वेदी ने फर्रुख़ाबाद में अध्यापन के दिनों में तोताराम सनाढ्य के साथ उनके संस्मरणों की पुस्तक ‘फिज़ी द्वीप में मेरे 21 वर्ष’ की रचना की थी। इस कृति में गिरमिटिया मज़दूरों की दुर्दशा को उजागर किया गया था। वह आगे भी इस विषय पर संवेदनशील बने रहे और सी.एफ. एंड्रयूज़ की सहायता से गिरमिटिया मज़दूरों की समस्याओं को संबोधित कर सकने के प्रयास किए। एंड्रयूज़ के निमंत्रण पर वह कुछ दिनों तक रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में भी रहे थे। उन्हें वह ‘दीनबंधु’ पुकारते थे और उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक की सह-रचना भी की जिसकी भूमिका महात्मा गाँधी द्वारा लिखी गई।

 

कलकत्ता से प्रकाशित मासिक ‘विशाल भारत’ के संपादक के रूप में बनारसीदास चतुर्वेदी की विशेष चर्चा की जाती है। उनके संपादन में इस पत्र ने अपना स्वर्णकाल देखा जिसमें अपनी रचनाएँ प्रकाशित कराना साहित्यकारों के लिए सम्मान का विषय रहता था। विशाल भारत में उनके संपादक-काल से ही वह कुचर्चा जुड़ी है जिसके लिए हिंदी में वह विशेष रूप से याद किए जाते हैं। उन्होंने छायावाद और उसके स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के विरुद्ध एक अभियान ही छेड़ दिया था। यह अभियान इस हद तक आगे बढ़ा की नंददुलारे वाजपेयी द्वारा संपादित ‘भारत’ में निराला ने ‘वर्तमान धर्म’ शीर्षक से एक लेख लिखा तो चतुर्वेदी जी ने उसे ‘विशाल भारत’ में फिर से छापकर उसका अर्थ बताने वाले को 25 रुपए इनाम देने की घोषणा कर दी थी।

 

संपादक के रूप में योगदान के साथ ही बतौर लेखक उन्होंने निबंध, चरित, संस्मरण, रेखाचित्र जैसी गद्य की विधाओं में योगदान किया है। उन्होंने विभिन्न सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के संरक्षण-प्रोत्साहन में भी भूमिका निभाई। उन्होंने राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में दो कार्यकालों की सेवा भी दी। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

प्रमुख कृतियाँ

 

गद्य : प्रवासी भारतवासी, फिजी की समस्या, फिजी में भारतीय, हमारे आराध्य, सेतुबंध, भारतभक्त एंड्रयूज़, सत्यनारायण कविरत्न, रेखाचित्र, संस्मरण, साहित्य और जीवन, केशवचंद्र  सेन।

 

संपादन : अभ्युदय, विशाल भारत, मधुकर, विंध्यवाणी।

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