बालमुकुंद गुप्त के निबंध
विदाई-संभाषण
माई लार्ड! अंत को आपके शासन-काल का इस देश में अंत हो गया। अब आप इस देश से अलग होते हैं। इस संसार में सब बातों का अंत है। इससे आपके शासन-काल का भी अंत होता, चाहे आपकी एक बार की कल्पना के अनुसार आप यहाँ के चिरस्थायी वायसराय भी हो जाते। किंतु इतनी जल्दी
परोक्तं नैव मन्यते
आत्माराम ने बार-बार द्विवेदी जी से यह कहा कि आप छापे की भूलों को ग्रंथकार की भूल मत समझा कीजिए। इस सीधी-सी बात के मानने में भी आपको बड़ा कष्ट हुआ। बाबू हरिश्चंद्र की 'नाटक' नाम की एक पुस्तक पर 'रुग्नावस्था' शब्द छप गया है। द्विवेदी जी उस पर टिप्पणी करते
मार्ली साहब के नाम (शिवशंभु के चिट्ठे)
"निश्चित विषय।'' विज्ञ वरेषु, साधु वरेषु! बहुत काल पश्चात आप-सा पुरुष भाग्य का विधाता हुआ है। एक पंडित, विचारवान और आडंबर रहित सज्जन को अपना अफ़सर होते देखकर अपने भाग्य को अचल अटल और कभी टस से मस न होने वाला, वरन् आपके कथनानुसार 'Settled fact'
बंग-विच्छेद (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
गत 16 अक्टूबर को बंगविच्छेद या बंगाल का पार्टीशन हो गया। पूर्व बंगाल और आसाम का नया प्रांत बनकर हमारे महाप्रभु माई लार्ड इंग्लैंड के महान राजप्रतिनिधि का तुग़लकाबाद आज़ाद हो गया। भंगड़ लोगों के पिछले रगड़े की भाँति यही माई लार्ड की सबसे पिछली प्यारी
एक दुराश (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
नारंगी के रस में ज़ाफ़रानी बसंती बूटी छानकर शिवशंभु शर्मा खटिया पर पड़े मौजों का आनंद ले रहे थे। ख़याली घोड़े की बाग़ें ढीली कर दी थीं। वह मनमानी जकंदे भर रहा था। हाथ-पाँवों को भी स्वाधीनता दे दी गई थी। वह खटिया के तूलअरज की सीमा उल्लंघन करके इधर-उधर
पीछे मत फेंकिए (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! सौ साल पूरे होने में अभी कई महीनों की कसर है। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने लार्ड कार्नवालिस को दूसरी बार इस देश का गवर्नर-जनरल बनाकर भेजा था। तब से अब तक आप ही को भारतवर्ष का फिर से शासक बनकर आने का अवसर मिला है। सौ वर्ष पहले के उस समय की ओर
आशीर्वाद (शिवशंभु के चिट्ठे)
तीसरे पहर का समय था। दिन जल्दी-जल्दी ढल रहा था और सामने से संध्या फुर्ती के साथ पाँव बढ़ाए चली आती थी। शर्मा महाराज बूटी की धुन में लगे हुए थे। सिल-बट्टे से भंग रगड़ी जा रही थी। मिर्च मसाला साफ़ हो रहा था। बादाम इलायची के छिलके उतारे जाते थे। नागपुरी
आशा का अंत (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! अब के आपके भाषण ने नशा किरकिरा कर दिया। संसार के सब दुःखों और समस्त चिंताओं को जो शिवशंभू शर्मा दो चल्लू बूटी पीकर भुला देता था, आज उसका उस प्यारी विजया पर भी मन नहीं है। आशा से बँधा हुआ यह संसार चलता है। रोगी को रोग से क़ैदी को क़ैद से, ऋणी
अपने तौर पर
हमारे द्विवेदी जी दूसरों के माल का उपयोग 'अपने तौर' पर करना ख़ूब जानते हैं। मैक्समूलर आदि के भाषा-विज्ञान के पढ़ने से जो संस्कार आपके चित्त पर हुआ था, उसे 'आप अपने तौर पर' लिखने की बात फ़रवरी में कह चुके थे। मार्च में फिर वही 'तौर' चला। दो सज्जनों ने
उलटी दलील
कौन कहता है कि हिंदी मुर्दा ज़बान है? वह हिंदी ही तो है, जो हिंदुस्तान के हर एक कोने में थोड़ी बहुत समझी जा सकती है। बाक़ी वह 'काफ़' और 'गाफ़' से भरी हुई गले में अटकने वाली मौलवियाना उर्दू तो आपके दस पाँच मौलवी ही बोलते होंगे। 'पैसा अख़बार' कहता है कि
वायसराय का कर्तव्य (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई माई लार्ड! आपने इस देश में फिर पदार्पण किया, इससे यह भूमि कृतार्थ हुई। विद्वान बुद्धिमान और विचारशील पुरुषों के चरण जिस भूमि पर पड़ते हैं, वह तीर्थ बन जाती है। आप में उक्त तीन गुणों के सिवा चौथा गुण राजशक्ति का है। अतः आपके श्रीचरण-स्पर्श से भारतभूमि
लार्ड मिंटो का स्वागत (शिवशंभु के चिट्ठे)
भगवान करे श्रीमान् इस विनय से प्रसन्न हों—मैं इस भारत देश की मट्टी से उत्पन्न होने वाला, इसका अन्न फल मूल आदि खाकर प्राण-धारण करने वाला, मिल जाए तो कुछ भोजन करने वाला, नहीं तो उपवास कर जाने वाला, यदि कभी कुछ भंग प्राप्त हो जाए तो उसे पीकर प्रसन्न होने
हँसी ख़ुशी
सुभाषितेन, गीतेन युवतीनाञ्च लीलया। यस्य न द्रवते चितं स वै मुक्तोऽथवा पशु:॥ हँसी भीतर आनंद का बाहरी चिह्न है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर के अच्छा रखने की अच्छी से अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने