Font by Mehr Nastaliq Web

रजनी

rajni

मन्नू भंडारी

और अधिकमन्नू भंडारी

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा ग्यारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    (मध्यवर्गीय परिवार के फ़्लैट का एक कमरा। एक महिला रसोई में व्यस्त है। घंटी बजती है। बाई दरवाज़ा खोलती है। रजनी का प्रवेश।)

    रजनी : लीला बेन कहाँ हो...बाज़ार नहीं चलना क्या?

    लीला : (रसोई में से हाथ पोंछती हुई निकलती है) चलना तो था पर इस समय तो अमित आ रहा होगा अपना रिज़ल्ट लेकर। आज उसका रिज़ल्ट निकल रहा है न। (चेहरे पर ख़ुशी का भाव)

    रजनी : अरे वाह! तब तो मैं मिठाई खाकर ही जाऊँगी। अमित तो पढ़ने में इतना अच्छा है कि फ़र्स्ट आएगा और नहीं तो सेकंड तो कहीं गया नहीं। तुमको मिठाई भी बढ़िया खिलानी पड़ेगी...सूजी के हलवे से काम नहीं चलने वाला, मैं अभी से बता देती हूँ।

    लीला : (हँसकर) नहीं-नहीं, मैं तुम्हें अच्छी मिठाई ही खिलाऊँगी... मैंने पहले से ही मँगवाकर रखी है—केसरिया रसमलाई। अमित को बहुत पसंद है ना।

    रजनी : देखा ऽऽ! मुझे अपने घर में ही केसर की सुगंध आ गई थी। बाज़ार का तो मैं बहाना करके चली आई वरना तुम तो मुझे काट ही देतीं। 

    लीला : कैसी बात करती हो? मैं एक बार काट भी दूँ, लेकिन अमित! अपने मुँह में डालने से पहले रसमलाई लेकर तुम्हारे फ़्लैट में दौड़ता। मैं कोई भी चीज़ घर में बनाऊँ या बाहर से लाऊँ, अमित जब तक तुम्हारे भोग नहीं लगा लेता, हम लोग खा थोड़े ही सकते हैं। रजनी आँटी तो हीरो हैं उसकी। (दोनों खिलखिलाकर हँसती हैं) 

    रजनी : बहुत मेधावी बच्चा है अमित...तुम देखना तो, आगे जाकर क्या बनता है!

    लीला : बस, सब तुम्हारा ही आशीर्वाद है।

    (फिर घंटी बजती है। लीला एक तरह से दौड़ते हुए दरवाज़ा खोलती है। अमित का प्रवेश। रोज़ की तरह भारी बस्ते की जगह एक हल्का-सा थैला है।)

    रजनी : (अमित को बाँहों में भरने के लिए दोनों बाहें फैलाते हुए आगे बढ़ती है।) कांग्रेचुलेशंस अमित। बधाई देने के लिए रजनी आँटी पहले से मौजूद हैं। (अमित का चेहरा उतरा हुआ है, पर दोनों में से अभी तक उसपर किसी का ध्यान नहीं गया। अमित आँसू भरी आँखों से थैले में से रिपोर्ट निकालकर माँ की ओर फेंकते हुए।)

    अमित : लो...लो...देखो, क्या हुआ है मेरे रिज़ल्ट का। मैंने कितना कहा था कि मैथ्स में भी मेरी ट्यूशन लगवा दीजिए, वरना मेरा रिज़ल्ट बिगड़ जाएगा। बस वही हुआ। मैथ्स में ही तो पूरे नंबर आ सकते हैं, रिज़ल्ट बन-बिगड़ सकता है। रिपोर्ट रजनी देखने लगती है। (लीला उसे अपनी बाँहों में भरकर)

    लीला : पर तू तो सारे सवाल ठीक करके आया था। यहाँ आकर पापा के सामने तूने फिर से किया था अपना सारा पेपर। सब तो ठीक था। तेरे पापा ने नहीं कहा था कि चार-पाँच नंबर भले ही काट ले सफ़ाई-वफ़ाई के पर नाइंटी-फ़ाइव तो तेरे पक्के हैं।

    रजनी  : (रिपोर्ट देखते हुए) पर मिले तो कुल बहत्तर ही हैं। (फिर दूसरे विषयों के नंबर भी पढ़ने लगती है इंगलिश 86, हिस्ट्री 80, सिविक्स 88, हिंदी 82, ड्राइंग 90...सबसे कम मैथ्स में ही।)

    अमित : (ग़ुस्से और दु:ख से) कम तो होंगे ही। ट्यूशन नहीं लेने से मिलते हैं कहीं अच्छे नंबर? सर तो बार-बार कहते ही थे कि ट्यूशन कर लो, ट्यूशन कर लो वरना फिर बाद में मत रोना। (रो पड़ता है)

    लीला : (अपराधी की तरह सफ़ाई देते हुए) तुझे अँग्रेज़ी को लेकर थोड़ी परेशानी थी सो अँग्रेज़ी में करवा दी थी ट्यूशन। अब दो-दो विषयों की ट्यूशन...फिर लंबी-चौड़ी फ़ीस। बेटे...(अपनी आर्थिक मज़बूरी की बात वह शब्दों से नहीं, चेहरे से व्यक्त करती है।) पर यह तो अँधेर ही हुआ कि सारा पेपर ठीक हो, फिर भी नंबर काट लो।

    रजनी: (रजनी की भौंहों में एकाएक बल पड़ जाते हैं। वह रोते हुए अमित को खींचकर अपने पास सटा लेती है) रोओ मत। (उसके आँसू पोंछते हुए) अमित रोएगा नहीं...समझे। मैं जो पूछती हूँ उसका जवाब देना। बस। (कुछ देर रुककर) तुझे अच्छी तरह याद है कि तूने पूरा पेपर ठीक किया था? (अमित स्वीकृति में सिर हिलाता है) पापा के पास दुबारा पेपर करने से पहले दोस्तों से या किताबों से उन सवालों के जवाब तो नहीं देख लिए थे?

    अमित: नहीं। ज्यों-के-त्यों आकर कर दिए थे। हमको आते थे वो सारे सवाल। 

    रजनी : मैथ्स के सर कौन हैं?

    अमित: मिस्टर पाठक।

    रजनी: कितने लड़के ट्यूशन लेते हैं उनसे?

    अमित : बाइस। साल के शुरू में तो आठ लेते थे...फिर पहले टर्मिनल के बाद से पंद्रह हो गए थे। हाफ़-ईयरली के बाद सात लड़कों ने और लेना शुरू कर दिया। मुझसे भी तभी से कह रहे थे।

    लीला : हाफ़ ईयरली में तो इसके नाइंटी-सिक्स नंबर आए थे...इसी ने बताया था कि क्लास में सबसे ज़्यादा हैं।

    रजनी : उसके बाद भी कहते थे कि ट्यूशन लो? 

    अमित : हाँ! कॉपी लौटाते हुए कहा था कि तुमने किया तो अच्छा है पर यह तो हाफ़-ईयरली है...बहुत आसान पेपर होता है इसका तो। अब अगर ईयरली में भी पूरे नंबर लेने है तो तुरंत ट्यूशन लेना शुरू कर दो। वरना रह जाओगे। सात लड़कों ने तो शुरू भी कर दिया था। पर मैंने जब मम्मी-पापा से कहा, हमेशा बस एक ही जवाब (मम्मी की नक़ल उतारते हुए) मैथ्स में तो तू वैसे ही बहुत अच्छा है, क्या करेगा ट्यूशन लेकर? देख लिया अब? सिक्स्थ पोज़ीशन आई है मेरी। जो आज तक कभी नहीं आई थी। (अमित की आँखों से फिर आँसू टपक पड़ते हैं।)

    रजनी : (डाँटते हुए) फिर आँसू। जानता नहीं, रोने वाले बच्चे रजनी आँटी को बिलकुल पसंद नहीं। मम्मी ने बिलकुल ठीक ही कहा और ठीक ही किया। जिस विषय में तुम वैसे ही बहुत अच्छे हो, उसमें क्यों लोगे ट्यूशन? ट्यूशन तो कमज़ोर बच्चे लेते हैं।

    अमित : आप जानती नहीं आँटी...अच्छे-बुरे की बात नहीं होती। अगर सर कहें और बार-बार कहें तो लेनी ही होती है। वरना तो नंबर कम हो ही जाते हैं।

    रजनी : पेपर अच्छा करो तब भी नंबर कम हो जाते हैं? 

    अमित : हाँ, कितना ही अच्छा करो फिर भी कम हो जाते हैं...जैसे मेरे हो गए।

    रजनी : यानी कि अच्छा पेपर करने पर भी कम आते हैं। सिर्फ़ इसलिए कि ट्यूशन नहीं ली थी! तो यह तो सर की ग़लती नहीं, बदमाशी है और तू मम्मी से लड़ रहा है। सर से जाकर लड़। 

    (अमित इस भाव से सिर हिलाता है मानो कितनी बेकार की बात कर रही हैं रजनी आँटी। लीला दो गिलासों में शिकंजी बनाकर लाती है। अमित लेने के लिए हाथ नहीं बढ़ाता तो रजनी घुड़कती है।) 

    रजनी : चलो पियो शिकंजी। देखते नहीं, चेहरा कैसे पसीना-पसीना हो रहा है। (दोनों शिकंजी पीने लगते हैं। इस दौरान रजनी कुछ सोच रही है। शिकंजी ख़त्म करके)
    कल आप नौ बजे तैयार रहिए अमित साहब...आपके स्कूल चलना है। 

    अमित : (अमित एकदम डर जाता है) कल से तो छुट्टी है। पर आप अगर स्कूल जाकर कुछ कहेंगी तो सर मुझसे बहुत ग़ुस्सा हो जाएँगे...वहाँ मत जाइए...प्लीज़ वहाँ बिलकुल मत जाइए।

    लीला : हाँ रजनी तुम कुछ करोगी-कहोगी तो अगले साल कहीं और ज़्यादा परेशान न करें इसे। अब जब रहना इसी स्कूल में है तो इन लोगों से झगड़ा।

    रजनी : (बात को बीच में ही काटकर ग़ुस्से से) यानी कि वे लोग जो भी ज़ुलुम-ज़्यादती करें, हम लोग चुपचाप बर्दाश्त करते जाएँ? सही बात कहने में डर लग रहा है तुझे, तेरी माँ को! अरे जब बच्चे ने सारा पेपर ठीक किया है तो हम कॉपी देखने की माँग तो कर ही सकते हैं...पता तो लगे कि आख़िर किस बात के नंबर काटे हैं?

    अमित : (झुँझलाकर) बता तो दिया आँटी। आप...

    रजनी : (ग़ुस्से से) ठीक है तो अब बैठकर रोओ तुम माँ—बेटे दोनों।

    (दनदनाती निकल जाती है। दोनों के चेहरे पर एक असहाय-सा भाव।) 

    लीला : अब यह रजनी कोई और मुसीबत न खड़ी करे।

    दृश्य समाप्त


    नया दृश्य

    (स्कूल के हैडमास्टर का कमरा। बड़ी-सी टेबल। दीवार के सहारे रखी काँच की अलमारी में बच्चों द्वारा जीते हुए कप और शील्ड्स जमे हुए रखे हैं। दीवार पर कुछ नेताओं की तसवीरें, एक बड़ा-सा मैप लटका है। एक स्कूल के हैडमास्टर के कमरे का वातावरण तैयार किया जाए। हैडमास्टर काम में व्यस्त है। चपरासी बड़े अदब से एक चिट लाकर रखता है। हैडमास्टर कुछ क्षण उसे देखता रहता है।)

    हैडमास्टर : बुलाओ। (रजनी का प्रवेश नमस्कार करती है।)

    हैडमास्टर : बैठिए (कुछ देर रुककर) कहिए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? 

    रजनी : मैं सेविंथ क्लास के अमित सक्सेना की मैथ्स की कॉपी देखना चाहती हूँ (हैडमास्टर के चेहरे पर ऐसा भाव जैसे वह कुछ समझा न हो) ईयरली एक्ज़ाम्स की, कल ही जिसका रिज़ल्ट निकला है।

    हैडमास्टर : सॉरी मैडम, ईयरली एक्ज़ाम्स की कॉपियों तो हम लोग नहीं दिखाते हैं। 

    रजनी : जानती हूँ मैं, लेकिन बात यह है कि अमित ने मैथ्स का पूरा पेपर ठीक किया था लेकिन उसे कुल बहत्तर नंबर ही मिले हैं। कॉपी देखकर सिर्फ़ यह जानना चाहती हूँ कि अमित को अपने बारे में कुछ गलतफ़हमी हो गई थी या (एक-एक शब्द पर ज़ोर देकर) ग़लती एक्ज़ामिनर की है।

    हैडमास्टर : (सारी बात को बहुत हलके ढंग से लेते हुए) आप भी कमाल करती हैं, बच्चे ने कहा और आपने मान लिया। अरे हर बच्चा घर जाकर यही कहता है कि उसने पेपर बहुत अच्छा किया है और उसे बहुत अच्छे नंबर मिलेंगे। अगर हम इसी तरह कॉपियाँ दिखाने लग जाएँ तो यहाँ तो पेरेंट्स की भीड़ लगी रहे सारे समय। इसीलिए तो ईयरली एक्ज़ाम्स की कॉपियाँ न दिखाने का नियम बनाया गया है स्कूलों में।

    रजनी : (अपने ग़ुस्से पर क़ाबू पाते हुए) देखिए आप चाहें तो अमित का पूरा रिज़ल्ट देख सकते हैं। मैथ्स में हमेशा सेंट-परसेंट नंबर लेता रहा है। इस साल भी उसने पूरा पेपर ठीक किया है। (तैश आ ही जाता है) कॉपी देखकर मैं सिर्फ़ यह जानना चाहती हूँ कि नंबर आख़िर कटे किस बात के हैं?

    हैडमास्टर : आप बहस करके बेकार ही अपना और मेरा समय बर्बाद कर रही हैं। मैंने कह दिया न कि इन कॉपियों को दिखाने का नियम नहीं है और मैं नियम नहीं तोड़ूँगा।

    रजनी : (व्यंग्य से) नियम! यानी कि आपका स्कूल बहुत नियम से चलता है। 

    हैडमास्टर : (ग़ुस्से से) व्हॉट डू यू मीन?

    रजनी : आई मीन व्हॉट आई से। नियम का ज़रा भी ख़याल होता तो इस तरह की हरकते नहीं होती स्कूल में। कोई बच्चा बहुत अच्छा है किसी विषय में फिर भी उसे मज़बूर किया जाता है कि वह ट्यूशन ले। यह कौन-सा नियम है आपके स्कूल का?

    हैडमास्टर : देखिए यह टीचर्स और स्टूडेंट्स का अपना आपसी मामला है, वो पढ़ने जाते हैं और वो पढ़ाते हैं। इसमें न स्कूल आता है, न स्कूल के नियम! इस बारे में हम क्या कर सकते हैं? 

    रजनी : कुछ नहीं कर सकते आप? तो मेहरबानी करके यह कुर्सी छोड़ दीजिए। क्योंकि यहाँ पर कुछ कर सकने वाला आदमी चाहिए। जो ट्यूशन के नाम पर चलने वाली धाँधलियों को रोक सके...मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स के शिकंजों से बचा सके जो ट्यूशन न लेने पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं...और आप हैं कि कॉपियाँ न दिखाने के नियम से उनके सारे गुनाह ढक देते हैं।

    हैडमास्टर : (चीख़कर) विल यू प्लीज़ गेट आउट ऑफ़ दिस रूम। (ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाने लगता है। दौड़ता हुआ चपरासी आता है) मेमसाहब को बाहर ले जाओ।

    रजनी : मुझे बाहर करने की ज़रूरत नहीं। बाहर कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे ट्यूशन का यह घिनौना रैकेट चला रखा है। (व्यंग्य से) पर आप तो कुछ कर नहीं सकते, इसलिए अब मुझे ही कुछ करना होगा और मैं करूँगी, देखिएगा आप। (तमतमाती हुई निकल जाती है।) (हैडमास्टर चपरासी पर ही बिगड़ पड़ता है) जाने किस-किस को भेज देते हो भीतर।

    चपरासी : मैंने तो आपको स्लिप लाकर दी थी साहब। 

    (हैडमास्टर ग़ुस्से में स्लिप की चिंदी-चिंदी करके फेंक देता है, कुछ इस भाव से मानो रजनी की ही चि्ांदियाँ बिखेर रहा हो।) 

    दृश्य समाप्त 


    नया दृश्य

    (रजनी का फ़्लैट। शाम का समय। घंटी बजती है। रजनी आकर दरवाज़ा खोलती है। पति का प्रवेश। उसके हाथ से ब्रीफ़केस लेती है।)

    पति : (जूते खोलते हुए) तुम आज दिन में कहीं बाहर गई थीं क्या?

    रजनी : तुम्हें कैसे मालूम?

    पति : फ़ोन किया था। एक फ़ाइल रह गई थी, सोचा चपरासी को भेजकर मँगवा लूँ पर कोई घर में हो तब न। (पति के चेहरे पर खीज भरा ग़ुस्सा पुता हुआ है)

    रजनी : तुम फ़ाइल भूल गए...और जिसके बारे में मुझे पता भी नहीं। पर फिर भी उसके लिए मुझे घर बैठना चाहिए। यह कौन-सी बात हुई?

    पति : (ज़रा शांत होते हुए) अच्छा गई कहाँ थीं?

    रजनी : (एक स्कूल का नाम लेती है)

    पति : (स्कूल का नाम दुहराता है)...तुम क्या करने गई थीं वहाँ?

    रजनी : (गद्गद भाव से) पहले चाय ले आऊँ, फिर बताती हूँ।

    (कैमरा रजनी के साथ किचन में। गुनगुनाते हुए रजनी खाने का भी कुछ बना रही है। लगता है जो कुछ करके आई, उससे बहुत प्रसन्न है।)

    (दृश्य फिर बाहर के कमरे में। नाश्ते की प्लेट काफ़ी ख़ाली हो चुकी है, जिससे लगे कि रजनी सारी बात बता चुकी है।)

    रजनी : बोलती बंद कर दी हैडमास्टर साहब की। जवाब देते नहीं बना तो चिल्लाने लगे। पर मैं क्या छोड़ने वाली हूँ इस बात को?

    पति : अच्छा मास्टर लोग ट्यूशन करते हैं या धंधा करते हैं, पर तुम्हें अभी बैठे-बिठाए इससे क्या परेशानी हो गई? तुम्हारा बेटा तो अभी पढ़ने नहीं जा रहा है न?

    रजनी : (एकदम भड़क जाती है) यानी कि मेरा बेटा जाए तभी आवाज़ उठानी चाहिए...अमित के लिए नहीं उठानी चाहिए...और जो इतने-इतने बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं, उनके लिए नहीं उठानी चाहिए। सब कुछ जानने के बाद भी नहीं उठानी चाहिए?

    पति : ठेका लिया है तुमने सारी दुनिया का?

    रजनी : देखो, तुम मुझे फिर ग़ुस्सा दिला रहे हो रवि...ग़लती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे लीला बेन और कांति भाई और हज़ारों-हज़ारों माँ-बाप। लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह है जो चारों तरफ़ अन्याय, अत्याचार और तरह-तरह की धाँधलियों को देखकर भी चुप बैठा रहता है, जैसे तुम। (नक़ल उतारते हुए) हमें क्या करना है, हमने कोई ठेका ले रखा है दुनिया का। (ग़ुस्से और हिक़ारत से) माई फ़ुट (उठकर भीतर जाने लगती है। जाते-जाते मुड़कर) तुम जैसे लोगों के कारण ही तो इस देश में कुछ नहीं होता, हो भी नहीं सकता! (भीतर चली जाती है।)

    पति: (बेहद हताश भाव से दोनों हाथों से माथा थामकर) चढ़ा दिया सूली पर।

    दृश्य समाप्त


    नया दृश्य

    (डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन के ऑफ़िस का बाहरी कक्ष। कमरे के बाहर उसके नाम और पद की तख़्ती लगी है। साथ ही मिलने का समय भी लिखा है। एक स्टूल पर चपरासी बैठा है। सामने की बेंच पर रजनी और तीन-चार लोग और बैठे हैं—प्रतीक्षारत। रजनी के चेहरे से बेचैनी टपक रही है। बार-बार घड़ी देखती है, मिलने का समय समाप्त होता जा रहा है।)

    रजनी : (चपरासी से) कितनी देर और बैठना होगा?

    चपरासी : हम क्या बोलेगा...जब साहब घंटी मारेगा...बुलाएगा तभी तो ले जाएगा। बहुत बिज़ी रहता न साहब।

    रजनी : (अपने में ही गुनगुनाते हुए) यह तो लोगों से मिलने का समय हैं, न जाने किसमें बिज़ी बनकर बैठ जाते हैं (चपरासी दूसरी तरफ़ देखने लगता है।)

    (कैमरा ऑफ़िस के अंदर चला जाता है। साहब मेज़ पर पेपर-वेट घुमा रहा है। फिर घड़ी देखता है, फिर घुमाने लगता है। बाहर एक आदमी आता है। अपने नाम की स्लिप के नीचे पाँच रुपए का एक नोट रखकर देता है और चपरासी का कंधा थपथपाता है। चपरासी हँसकर भीतर जाता है। लौटकर उस आदमी को तुरंत अपने साथ ले जाता है। रजनी के चेहरे पर तनाव, घूरकर चपरासी को देखती है। थोड़ी देर में आदमी बाहर निकलता है। रजनी उठकर दनदनाती हुई भीतर जाने लगती है।)

    चपरासी : अरे...अरे...अरे...किधर कू जाता? अभी घंटी बजा क्या? 

    रजनी : घंटी तो मिलने का समय ख़त्म होने तक बजेगी भी नहीं। (दरवाज़ा धकेलकर भीतर चली जाती है)

    चपरासी : अरे कैसी औरत है...सुनतीच नई। (वहाँ बैठे दो-तीन लोग हँसने लगते हैं।) 

    (दृश्य कमरे के भीतर। निदेशक कुर्सी की पीठ से टिककर सिगरेट पी रहा है। रजनी को देखकर आश्चर्य से।)

    निदेशक : आपको स्लिप भेजकर भीतर आना चाहिए ना।

    रजनी : (मुस्कराकर) स्लिप तो घंटे भर से आपके चपरासी की जेब में पड़ी है। और शायद दो-चार दिन चक्कर लगवाने तक पड़ी ही रहेगी।

    निदेशक : क्या कह रही हैं आप?

    रजनी : तो क्या यह सीधी-साफ़-सी बात भी मुझे ही समझानी होगी आपको? ख़ैर अभी छोड़िए इस बात को, इस समय मैं आपके पास किसी दूसरे ही काम से आई हूँ।

    (निदेशक के चेहरे पर रजनी को लेकर एक आश्चर्य मिश्रित कौतूहल का भाव उभरता है।) कहिए।

    निदेशक : कहिए

    रजनी : (थोड़ा सोचते हुए) देखिए, मैं स्कूलों, विशेषकर प्राइवेट स्कूलों और बोर्ड के आपसी रिलेशंस के बारे में कुछ जानकारी इकट्ठा कर रही हूँ।

    निदेशक : कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? व्हेरी इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट। 

    रजनी : बस कुछ ऐसा ही समझ लीजिए।

    निदेशक : कहिए आप क्या जानना चाहती हैं?

    रजनी : जिन प्राइवेट स्कूलों को आप रिकगनाइज़ कर लेते हैं उन्हें बोर्ड शायद 90% ग्रांट देता है।

    निदेशक : (ज़रा गर्व से) जी हाँ, देता है। बोर्ड का काम ही यह है कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार में जितना भी हो सके सहयोग करे। इट्स अवर ड्यूटी मैडम।

    रजनी : जब इतनी बड़ी एड देते हैं तो आपका कोई कंट्रोल भी रहता होगा स्कूलों पर।

    निदेशक : ऑफ़कोर्स। बोर्ड के बहुत से ऐसे नियम हैं जो स्कूलों को मानने होते हैं, स्कूल मानते हैं। सिलेबस बोर्ड बनाता है...फ़ाइनल ईयर के एक्ज़ाम्स बोर्ड कंडक्ट करता है।

    रजनी : (निदेशक के चेहरे पर नज़रें गड़ाकर) स्कूलों में आजकल प्राइवेट ट्यूशंस का जो सिलसिला चला हुआ है, ट्यूशंस क्या बच्चों को लूटने का जो धंधा चला हुआ है, उसके बारे में आपका बोर्ड क्या करता है?

    निदेशक : (बड़े सहज भाव से) इसमें धंधे की क्या बात है? जब किसी का बच्चा कमज़ोर होता है तभी उसके माँ-बाप ट्यूशन लगवाते हैं। अगर लगे कि कोई टीचर लूट रहा है तो उस टीचर से न लें ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएँ...यह कोई मज़बूरी तो है नहीं।

    रजनी : बच्चा कमज़ोर नहीं, होशियार है...बहुत होशियार...उसके बावजूद उसका टीचर लगातार उसे कोंचता रहता है कि वह ट्यूशन ले...वह ट्यूशन ले वरना पछताएगा। लेकिन बच्चे के माँ बाप को ज़रूरी नहीं लगता और वे नहीं लगवाते। जानते हैं क्या हुआ? मैथ्स का पूरा पेपर ठीक करने के बावजूद उसे कुल 72 नंबर मिलते हैं, जानते हैं क्यों?...क्योंकि उसने टीचर के बार-बार कहने पर भी ट्यूशन नहीं ली। 

    निदेशक : वैरी सैड हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए ऐसे टीचर के ख़िलाफ़। 

    रजनी : क्या ख़ूब! आप कहते हैं कि हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए...हैडमास्टर कहते हैं मैं कुछ नहीं कर सकता, तब करेगा कौन? मैं पूछती हूँ कि ट्यूशन के नाम पर चलने वाले इस घिनौने रैकेट को तोड़ने के लिए दख़लअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए आपको, आपके बोर्ड को? (चेहरा तमतमा जाता है)

    निदेशक : लेकिन हमारे पास तो आज तक किसी पेरेंट से इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई।

    रजनी : यानी की शिकायत आने पर ही आप इस बारे में कुछ सोच सकते हैं। वैसे शिक्षा के नाम पर दिन-दहाड़े चलने वाली इस दुकानदारी की आपके (बहुत ही व्यंग्यात्मक ढंग से) बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन को कोई जानकारी ही नहीं, कोई चिंता ही नहीं?

    निदेशक : कैसी बात करती हैं आप? कितने इंपोर्टेट मैटर्स रहते हैं हम लोगों के पास? अभी पिछले छह महीने से तो नई शिक्षा प्रणाली को लेकर ही कितने सेमिनार्स ऑर्गनाइज़ किए हैं हमने?

    रजनी : (व्यंग्य से) ओह, इंपोटेंट मैटर्स, नई शिक्षा प्रणाली। अरे पहले इस शिक्षा प्रणाली के छेदों को तो रोकिए वरना बच्चों के भविष्य के साथ-साथ आपकी नई शिक्षा प्रणाली भी छनकर गड्ढे में चली जाएगी।

    निदेशक : (थोड़े ग़ुस्से के साथ) आप ही पहली महिला हैं, और हो सकता है कि आख़िरी भी हों, जो इस तरह की शिकायत लेकर आई हैं।

    रजनी : ठीक है तो फिर आपके पास शिकायत का ढेर ही लगवाकर रहूँगी।

    (झटके से उठकर बाहर चली जाती है, निदेशक देखता रहता है, फिर कंधे उचका देता है।) 

    (अब मोंटाज में कुछ दृश्य दिखाए जाएँ। रजनी फ़ोन कर रही है। मेज़ पर कुछ पत्र रखे हैं और रजनी एक रजिस्टर में उनके नाम पते उतार रही है। साथ में एक-दो महिलाएँ और भी हैं। फिर एक के बाद एक तीन-चार घरों में माँ-बाप से मिल रही है उन्हें समझा रही है। साथ में लीला बेन और तीन-चार महिलाएँ और भी हैं।)

    दृश्य समाप्त


    नया दृश्य

    (किसी अख़बार का दफ़्तर। कमरे में संपादक बैठे हैं, साथ में तीन-चार स्त्रियों के साथ रजनी बैठी है।)

    संपादक : आपने तो इसे बाक़ायदा एक आंदोलन का रूप ही दे दिया। बहुत अच्छा किया। इसके बिना यहाँ चीज़ें बदलती भी तो नहीं हैं। शिक्षा के क्षेत्र में फैली इस दुकानदारी को तो बंद होना ही चाहिए।

    रजनी : (एकाएक जोश में आकर) आप भी महसूस करते हैं न ऐसा?...तो फिर साथ दीजिए हमारा। अख़बार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे तो फिर वह थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती। सबकी बन जाती है...आँख मूँदकर नहीं रह सकता फिर कोई उससे। आप सोचिए ज़रा अगर इसके ख़िलाफ़ कोई नियम बनता है तो (आवेश के मारे जैसे बोला नहीं जा रहा है।) कितने पेरेंट्स को राहत मिलेगी...कितने बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा, उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा, माँ-बाप के पैसे का नहीं,...शिक्षा के नाम पर बचपन से ही उनके दिमाग़ में यह तो नहीं भरेगा कि पैसा ही सब कुछ है...वे...वे...

    संपादक : (हँसकर) बस-बस मैं समझ गया आपकी सारी तकलीफ़, आपका सारा ग़ुस्सा।

    रजनी : तो फिर दीजिए हमारा साथ...उठाइए इस इश्यू को। लगातार लिखिए और धुआँधार लिखिए।

    संपादक : इसमें आप अख़बारवालों को अपने साथ ही पाएँगी। अमित के उदाहरण से आपकी सारी बात मैंने नोट कर ली है। एक अच्छा-सा राइट-अप तैयार करके पी.टी.आई. के द्वारा मैं एक साथ फ़्लैश करवाता हूँ।

    रजनी : (गद्गद होते हुए) एक काम और कीजिए। 25 तारीख़ को हम लोग पेरेंट्स की एक मीटिंग कर रहे हैं, राइट-अप के साथ इसकी सूचना भी दे दीजिए तो सब लोगों तक ख़बर पहुँच जाएगी। व्यक्तिगत तौर पर तो हम मुश्किल से सौ-सवा सौ लोगों से संपर्क कर पाए हैं...वह भी रात-दिन भाग-दौड़ करके (ज़रा-सा रुककर) अधिक-से-अधिक लोगों के आने के आग्रह के साथ सूचना दीजिए।  

    संपादक : दी। (सब लोग हँस पड़ते हैं) 

    रजनी : ये हुई न कुछ बात।

    दृश्य समाप्त


    नया दृश्य

    (मीटिंग का स्थान। बाहर कपड़े का बैनर लगा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं और भीतर जा रहे हैं, लोग ख़ुश हैं, लोगों में जोश है। विरोध और विद्रोह का पूरा माहौल बना हुआ है। दृश्य कटकर अंदर जाता है। हॉल भरा हुआ है। एक ओर प्रेसवाले बैठे हैं, इसे बाक़ायदा फ़ोकस करना है। एक महिला माइक पर से उतरकर नीचे आती है। हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट। अब मंच पर से उठकर रजनी माइक पर आती है। पहली पंक्ति में रजनी के पति भी बैठे हैं।) 

    बहनों और भाइयों,

    इतनी बड़ी संख्या में आपकी उपस्थिति और जोश ही बता रहा है कि अब हमारी मंज़िल दूर नहीं है। इन दो महीनों में लोगों से मिलने पर इस समस्या के कई पहलू हमारे सामने आए...कुछ अभी आप लोगों ने भी यहाँ सुने। (कुछ रुककर) यह भी सामने आया कि बहुत से बच्चों के लिए ट्यूशन ज़रूरी भी है। माँएँ इस लायक़ नहीं होतीं कि अपने बच्चों को पढ़ा सकें और पिता (ज़रा रुककर) जैसे वे घर के और किसी काम में ज़रा-सी भी मदद नहीं करते, बच्चों को भी नहीं पढ़ाते। (ठहाका, कैमरा उसके पति पर भी जाए) तब कमज़ोर बच्चों के लिए ट्यूशन ज़रूरी भी हो जाती है। (रुककर) बड़ा अच्छा लगा जब टीचर्स की ओर से भी एक प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों में तो उन्हें इतनी कम तनख़्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न हो। कई जगह तो ऐसा भी है कि कम तनख़्वाह देकर ज़्यादा पर दस्तख़त करवाए जाते हैं। ऐसे टीचर्स से मेरा अनुरोध है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएँ और इस अन्याय का पर्दाफ़ाश करें (हॉल में बैठा हुआ पति धीरे से फुसफुसाता है, लो, अब एक और आंदोलन का मसाला मिल गया, कैमरा फिर रजनी पर) इसलिए अब हम अपनी समस्या से जुड़ी सारी बातों को नज़र में रखते हुए ही बोर्ड के सामने यह प्रस्ताव रखेंगे कि वह ऐसा नियम बनाए (एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए) कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रों का ट्यूशन नहीं करेगा। (रुककर) ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करने, उनके नंबर काटने की गंदी हरकतें अपने आप बंद हो जाएँगी। साथ ही यह भी हो कि इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के ख़िलाफ़ सख़्त-से-सख़्त कार्यवाही की जाएगी...। अब आप लोग अपनी राय दीजिए।

    (सारा हॉल, एप्रूव्ड, एप्रूव्ड की आवाज़ों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है।)

    दृश्य समाप्त


    नया दृश्य

    (रजनी का फ़्लैट। सवेरे का समय। कमरे में पति अख़बार पढ़ रहा है। पहला पृष्ठ पलटते ही रजनी की तस्वीर दिखाई देती है, जल्दी-जल्दी पढ़ता है, फिर एकदम चिल्लाता है।)

    पति : अरे रजनी...रजनी, सुनो तो बोर्ड ने तुम लोगों का प्रस्ताव ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया।

    रजनी : (भीतर से दौड़ती हुई आती है। अख़बार छीनकर जल्दी-जल्दी पढ़ती है। चेहरे पर संतोष, प्रसन्नता और गर्व का भाव।)

    हिंदवी

    रजनी : तो मान लिया गया हमारा प्रस्ताव...बिलकुल जैसा का तैसा और बन गया यह नियम। (ख़ुशी के मारे अख़बार को ही छाती से चिपका लेती है।) मैं तो कहती हूँ कि अगर डटकर मुक़ाबला किया जाए तो कौन-सा ऐसा अन्याय है, जिसकी धज्जियाँ न बिखेरी जा सकती हैं।

    पति : (मुग्ध भाव से उसे देखते हुए) आई एम प्राउड ऑफ़ यू रजनी...रियली, रियली...आई एम वैरी प्राउड ऑफ़ यू।

    रजनी: (इतराते हुए) हूँ ऽऽ दो महीने तक लगातार मेरी धज्जियाँ बिखेरने के बाद। (दोनों हँसते हैं।)

    (लीला बेन, कांतिभाई और अमित का प्रवेश)

    लीला बेन : उस दिन तुम्हारी जो रसमलाई रह गई, वह आज खाओ।

    कांतिभाई : और सबके हिस्से की तुम्हीं खाओ।

    (अमित दौड़कर अपने हाथ से उसे रसमलाई खिलाने जाता है पर रजनी उसे अमित के मुँह में ही डाल देती है।)

    (सब हँसते हैं। हँसी के साथ ही धीरे-धीरे दृश्य समाप्त हो जाता है।)

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    मन्नू भंडारी

    मन्नू भंडारी

    स्रोत :
    • पुस्तक : आरोह (भाग-1) (पृष्ठ 69)
    • रचनाकार : मन्नू भंडारी
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए