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बीरबल

1528 - 1585

अकबर के नवरत्नों में से एक। वाक्-चातुर्य और प्रत्युत्पन्न-मति के धनी। भक्ति और नीति के सरल और सरस कवि।

अकबर के नवरत्नों में से एक। वाक्-चातुर्य और प्रत्युत्पन्न-मति के धनी। भक्ति और नीति के सरल और सरस कवि।

बीरबल की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 1

नमे तुरी बहुतेज नमे दाता धन देतो।

नमे अंब बह फल्यो नमे जलधर बरसेतो।

नमे सुकवि जन शुद्ध नमे कुलवँती नारी।

नमे सिंह गज हने नमे गज बैल सम्हारी।

कुंदन इमि कसियो नमे वचन ब्रह्म सच्चा भनै।

पर सूखा काठ अजान नर टूट पड़े पर नहिं नमे॥

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सवैया 7

कवित्त 1

 

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