श्रीमन्महाराज काशी-नरेश के साथ वैद्दनाथ की यात्रा को चले। दो बजे दिन के पैसेंजर ट्रेन में सवार हुए। चारों ओर हरी-हरी घास का फ़र्श। ऊपर रंग-रंग के बादल। गड़हों में पानी भरा हुआ। सब कुछ सुंदर। मार्ग में श्री महाराज के मुख से अनेक प्रकार के अमृतमय उपदेश सुनते हुए चले जाते थे। साँझ को बक्सर पहुँचे। बक्सर के आगे बड़ा भारी मैदान पर सब्ज़ काशाँनी मख़मल से मढ़ा हुआ। साँझ होने से बादल के छोटे टुकड़े लाल-पीले-नीले बड़े सुहाने मालूम पड़ते थे। बनारस कालिज की रंगीन शीशो की खिड़कियों का सा सामान था। क्रम से अंधकार होने लगा। ठंढी-ठंढी हवा से निद्रादेवी अलग नेत्रों से लिपटी जाती थी। मैं महाराज के पास से इठ कर सोने के वास्ते दूसरी गाड़ी में चला गया। झपकी का आना था कि बौछरों ने छेड़-छाड़ करनी शुरु की। पटने पहुँचते-पहुँचते तो घेर घार कर चारों ओर से पानी बरसने ही लगा। बस पृथ्वी आकाश सब नीर ब्रहामय हो गया। इस धूम-धाम में भी रेल कृष्णाभिप्तारिका सी अपनी धुन में चली ही जाती थी। सच है सावन की नदी और दृढ़प्रतिज्ञ उद्योगी और जिन के मन प्रीतम के पास हैं वे कहीं रुकते है। राह मे बाज़ पेड़ों में इतने जुगनू लिपटे हुए थे कि पेड़ सचमुच ‘सर्वे चिराग़ा’ बन रहे थे। जहाँ रेल ठहरती थी स्टेशन मास्टर और सिपाही बिचारे टुटरुँ-टुँ छाता लालटैन लिए रोज़ी जगाते भींगते हुए पहिने अप्रतिहत गति से घूमते थे। उसके घुर घिसने से गर्म होकर शिथिल हो गए वह गाड़ी छोड़ देनी पड़ी जैसे धूम-धाम की अँधेरी वैसे ही जोर-शोर का पानी। इधर तो यह आफ़त उधर फरजन बे सामान फरजन के बाबाजान रेलवालों की जल्दी। गाड़ी कभी आगे हटै कभी पीछे। ख़ैर किसी तरह सब ठीक हुआ। इस पर भी बहुत सा असबाब और कुछ लोग पीछे छूट गए। अब आगे बढ़ते-बढ़ते तो सवेरा ही होने लगा। निद्रावधू का संयोग भाग्य में न लिखा था न हुआ। एक तो सेकेंड क्लास की एक ही गाड़ी उस में भी लेडीज कम्पार्टमेंट निकल गया। बाकी जो कुछ बची उस में बारह आदमी। गाड़ी भी ऐसी टूटी फूटी जैसे हिंदुओं की क़िस्मत और हिम्मत। इस कम्बख़्त गाड़ी से तीसरे दर्जे की गाड़ियों से कोई फ़र्क़ नही सिर्फ़ एक-एक धोखे की टंट्टी का शीशा खिड़कियों में लगा था। न चौड़े बेंच न गद्दा न बाथरुम। जो लोग मामूली से तिगुना रुपया दें उन को ऐसी मनहूस गाड़ी पर बिठलाना जिस में कोई बात भी आराम की न हो रेलवे कंपनी आग लगा कर जला देती या कलकत्ते मे नीलाम कर देती। अगर मारे मोह के ने छोड़ी जाए तो उस से तीसरे दर्जे का काम ले। नाहक अपने ग्राहकों को बेवक़ूफ़ बनाने से क्या हासिल। लेड़ीज कम्पार्टमेंट खाली था मैं ने गार्ड से कितना कहा कि इस में सोने दो न माना। दानापुर से दो चार नीम अंग्रेज़ (लेडी नही सिर्फ़ लैड) मिले उन को बेतकल्लुफ़ बैठा दिया। फर्स्ट क्लास की सिर्फ़ दो गाड़ी एक मैं महाराज दूसरी में आधी लेडीज़ आधी मे अंग्रेज़ अब कहाँ सोवैं कि नींद आवैं। सचमुच अब तो तपस्या कर के गोरी-गोरी कोख से जन्म ले तब संसार में सुख मिले। मैं तो ज्यों ही फर्स्ट क्लास में अंग्रेज़ कम हुए कि सोने की लालच से उस में घुसा। हाथ पैर चलाना था कि गाड़ी टूटने वाला विघ्न हुआ। महाराज के इस गाड़ी में आने से मैं फिर वही का वहीं। ख़ैर इसी सात-पाँच में रात कट गई। बादल के पर्दो को फाड़-फाड़ कर उषा देवी ने ताक झाँक आरंभ कर दी परलोक गत सजनों की कीर्ति की भांति सूर्य नारायण का प्रकाश पिशुन मेघों के बागाडम्बर से घिरा हुआ दिखलाई पड़ने लगा। प्रकृति का नाम काली से सरस्वती हुआ। ठंडी-ठंडी हवा मन की कली खिलाती हुई बहने लगी। दूर से धानी और काही रंग के पर्वतो पर सुनहरापन आ चला। कहीं आधे पर्वत बादलो से घिरे हुए कहीं एक साथ वाष्प निकलने से उनकी चोटियाँ छिपी हुई और कहीं चारों ओर से उन पर जलधारा पांत से बुक्के की होली खेलते हुए बड़े ही सुहाने मालूम पड़ते थे। पास से देखने से भी पहाड़ बहुत ही भले दिखलाई पड़ते थे। काले पत्थरों पर हरी-हरी घास और जहाँ-तहाँ छोटे बड़े पेड़ बीच-बीच मे मोटे-पतले झरने नदियों की लक़ीरे, कही चारों ओर से सघन हरियाली, कही चट्टानों पर ऊँचे-नीचे अनगढ़ ढ़ोके और कहीं जलपूर्ण हरित तराई विचित्र शोभा देती थी। अच्छी तरह प्रकाश होते होते तो वैद्दनाथ के स्टेशन पर पहुँच गए। स्टेशन से वैद्दनाथ जी कोई तीन कोस है। बीच में एक नदी उतरनी पड़ती है जो आज कल बरसात में कभी घटती कभी बढ़ती है। रास्ता पहाड़ के ऊपर ही ऊपर बड़ा सुहाना हो रहा है। पालकी पर हिलते-हिलते चले। श्री महाराज के सोंचने के अनुसार कहारों की गति ध्वनि में भी परमेश्वर ही का चर्चा है। पहले ‘ कोहं कोहं’ की ध्वनि सुन पड़ती है फिर ‘सोहं सोहं’ ‘हंसस्मोहं’ की एकाकार पुकार मार्ग में भी उस से तन्मय किए देती थी।
मुसाफ़िरो को अनुभव होगा कि रेल पर सोने से नाक थर्राती है और वही दशा कभी-कभी और सवारियों पर भी होती है इसी से मुझे पालकी पर नींद नहीं आई और जैसे तैसे बैजनाथ जी पहुँच ही गए।
बैजनाथ जी एक गाँव है जो अच्छी तरह आबाद है मजिस्ट्रेट-मुनसिफ़ वगैरह हाक़िम और ज़रुरी आफ़िस है। नीचा और तर होने से देस बातुल गंदा और द्वारा है। लोग काले काले हतोत्साह मूर्ख ग़रीब है यहाँ सौंथल एक जंगली जाति होती है। ये लोग अब तक निरे बहशी है। खाने पीने की ज़रुरी चीज़ें यहाँ मिल जाती है। सर्प विशेष हैष राम जी की घोड़ी जिसको कुछ लोग ग्वालिन भी कहते हैं एक बालिशत लंबी और दो-दो उंगल मोटी देखने में आई।
मंदिर बैजनाथ जी का टोप की तरह बहुत ऊँचा शिखरदार है चारो ओर देवताओं के मंदिर और बीच में फ़र्श है। मंदिर भीतर से अंधेरा है। क्योंकि सिर्फ़ एक दरवाज़ा है। बैजनाथ जी की पिंडी जलधरी से तीन चार उंगल ऊँची बीच में से चिपटी है। कहते हैं कि रावन ने मुक्का मारा है इस से यह गड़हा पड़ गया है। वैद्दनाथ, बैजनाथ, रावणोश्वर यह तीन नाम महादेव जी के है। यह सिद्धपीठ और ज्योतिर्लिंग स्थान है। हरिद्वार पीठ इसका नाम है। और सती का ह्रदय देश यहाँ गिरा है। जो पार्वती अरोगा दुर्गा नाम की सामने एक देवी हैं वही यहाँ की मुख्य शक्ति हैं। इनके मंदिर और महादेव जी के मंदिर से गाँठ जोड़ी रहती है। रात को महादेव जी के पर बेल पत्र का बहुत लंबा चौड़ा एक ढेर कर के ऊपर से कमखाब या ताश का खोल चढ़ा कर श्रृंगार करते हैं या बेल पत्र के ऊपर से बहुत सी माला पहना देते हैं। सिर के गड़हे में भी रात को चंदन भर देते हैं। वैद्दनाथ की कथा यह है कि एक बेर पार्वती जी ने मान किया था और रावण के शोर करने से वह मान छूट गया। इस पर महादेव जी ने प्रसन्न हो कर वर दिया कि हम लंका चलेंगे और लिंग रुप से उस के साथ चले। राह में जब वैद्दनाथ जी पहुँचे तो ब्राह्म्ण रुपी विष्णु के हाथ में वह लिंग देकर रावण पेशाब करने लगा। कई घड़ी तक माया मोहित हो कर वह मूतता ही रह गया और घबड़ा कर विष्णु ने उस लिंग को वही रख दिया। रावण से महादेव जी से क़रार था कि जहाँ रख दोगे वहाँ से आगे न चलेंगे इस से महादेव जी वहीं रह गए वरंज इसी पर ख़फ़ा होकर रावण ने उन को मुक्का भी मार दिया।
वैद्दनाथ जी का मंदिर राजा पूरणमल का बनवाया हुआ है। लोग कहते हैं कि रघुनाथ ओझा नामक एक तपस्वी इसी वन में रहते थे। उनको स्वपन हुआ कि हमारी एक छोटी सी मढ़ी झाड़ियों में छिपी है तुम उस का एक बड़ा मंदिर बनाओ। उसी स्वपन के अनुसार किसी वृक्ष के नीचे उन को तीन लाख रुपया मिला। उन्हों ने राजा पूरणमल को वह रुपया दिया कि वे अपने प्रबंध में मंदिर बनवा दें। वे बादशाह के काम से कहीं चले गए और कई बरस तक न लौटे। तब रघुनाथ ओझा ने दुखित हो कर अपने व्यय से मंदिर बनवाया। जब पूरणमल लौट कर आए और मंदिर बना देखा तो सभा मंडप बनवा कर मंदिर के ऊपर अपनी प्रशसित लिख कर चले गए। यह देख कर रघुनाथ ओझा ने इस बात से दुखित होकर की रुपया भी गया किर्ति भी एक नई प्रशसित बनाई और बाहर के दरवाज़े पर खुदवा कर लगा दी। वैद्दनाथ महात्म्य भी मालूम होता है कि इन्ही महात्मा का बनाया है क्योंकि उस मे छिपाकर रघुनाथ ओझा को रामचंद्र का अवतार लिखा है। प्रशस्ति का काव्य भी उत्तम नहीं हैं जिस से बोध होता है कि ओझा जी श्रद्धालु थे किंतु उद्धत पंडित नहीं थे। गिरद्धौर के महाराज सर जगमंगल सिंह के.सी.एस.आई कहते हैं कि पूरणमल उन के पुरखा थे एक विचित्र बात यहाँ और भी लिखने के योग्य है। गोबर्धन पर्वत पर श्री नाथ जी का मंदिर सं. 1556 में एक राजा पूरणमल ने बनाया और यहाँ सं. 1652(1564 ई.) में एक पूरणमल ने वैद्दनाथ जी का मंदिर बनाया। क्या यह मंदिरों का काम पूरणामल ही को परमेश्वर ने सौंपा है।
(इसके बाद संस्कृत में निज मंदिर का लेख और सभा मंडप का लेख है)
मंदिर के चारों ओर और देवताओं के मंदिर हैं। कहीं दो प्राचीन जैन मूर्तियाँ हिंदू मूर्ति बन कर पुजती हैं। एक पद्मावती देवी की मूर्ति बड़ी सुंदर है जो सूर्य नारायण के नाम से पुजती है। यह मूर्ति पद्म पर बैठा है इस पर अत्यंत प्राचीन पाली अक्षरों में कुछ लिखा है जो मैंने श्रीबाबू राजेंद्रलाल मित्र के पास पढ़ने को भेजा है। दो भैरव की मूर्ति जिसमें एक तो किसी जैन सिद्ध की और एक जैन क्षेत्रपाल की है बड़ी ही सुंदर है। लोग कहते हैं की भागलपुर के जिले में किसी तालाब में से निकली थी।
shrimanmharaj kashi naresh ke sath waiddnath ki yatra ko chale do baje din ke paisenjar train mein sawar hue charon or hari hari ghas ka farsh upar rang rang ke badal gaDhon mein pani bhara hua sab kuch sundar marg mein shri maharaj ke mukh se anek prakar ke amrtamay updesh sunte hue chale jate the sanjh ko baksar pahunche baksar ke aage baDa bhari maidan par sabz kashanni makhmal se maDha hua sanjh hone se badal ke chhote tukDe lal pile nile baDe suhane malum paDte the banaras kalij ki rangin shisho ki khiDakiyon ka sa saman tha kram se andhkar hone laga thanDhi thanDhi hawa se nidradewi alag netron se lipti jati thi main maharaj ke pas se ith kar sone ke waste dusri gaDi mein chala gaya jhapki ka aana tha ki bauchhron ne chheD chhaD karni shuru ki patne pahunchte pahunchte to gher ghaar kar charon or se pani barasne hi laga bus prithwi akash sab neer brhamay ho gaya is dhoom dham mein bhi rail krishnabhiptarika si apni dhun mein chali hi jati thi sach hai sawan ki nadi aur driDhaprtigya udyogi aur jin ke man piritam ke pas hain we kahin rukte hai rah mae baz peDon mein itne jugnu lipte hue the ki peD sachmuch ‘sarwe chiragha’ ban rahe the jahan rail thaharti thi station master aur sipahi bichare tutarun tun chhata laltain liye rozi jagate bhingte hue pahine apratihat gati se ghumte the uske ghur ghisne se garm hokar shithil ho gaye wo gaDi chhoD deni paDi jaise dhoom dham ki andheri waise hi jor shor ka pani idhar to ye aafat udhar pharjan be saman pharjan ke babajan relwalon ki jaldi gaDi kabhi aage hatai kabhi pichhe khair kisi tarah sab theek hua is par bhi bahut sa asbab aur kuch log pichhe chhoot gaye ab aage baDhte baDhte to sawera hi hone laga nidrawdhu ka sanyog bhagya mein na likha tha na hua ek to sekenD class ki ek hi gaDi us mein bhi leDij kampartment nikal gaya baki jo kuch bachi us mein barah adami gaDi bhi aisi tuti phuti jaise hinduon ki qimat aur himmat is kambakht gaDi se tisre darje ki gaDiyon se koi farq nahi sirf ek ek dhokhe ki tantti ka shisha khiDakiyon mein laga tha na chauDe bench na gadda na bathrum jo log mamuli se tiguna rupaya den un ko aisi manhus gaDi par bithlana jis mein koi baat bhi aram ki na ho railway kampni aag laga kar jala deti ya kalkatte mae nilam kar deti agar mare moh ke ne chhoDi jaye to us se tisre darje ka kaam le nahak apne grahkon ko bewaquf banane se kya hasil leDij kampartment khali tha main ne guard se kitna kaha ki is mein sone do na mana danapur se do chaar neem angrez (leDi nahi sirf laiD) mile un ko betakalluf baitha diya pharst class ki sirf do gaDi ek main maharaj dusri mein aadhi leDiz aadhi mae angrez ab kahan sowain ki neend awain sachmuch ab to tapasya kar ke gori gori kokh se janm le tab sansar mein sukh mile main to jyon hi pharst class mein angrez kam hue ki sone ki lalach se us mein ghusa hath pair chalana tha ki gaDi tutne wala wighn hua maharaj ke is gaDi mein aane se main phir wahi ka wahin khair isi sat panch mein raat kat gai badal ke pardo ko phaD phaD kar usha dewi ne tak jhank arambh kar di parlok gat sajnon ki kirti ki bhanti surya narayan ka parkash pishun meghon ke bagaDambar se ghira hua dikhlai paDne laga prakrti ka nam kali se saraswati hua thanDi thanDi hawa man ki kali khilati hui bahne lagi door se dhani aur kahi rang ke parwto par sunahrapan aa chala kahin aadhe parwat badalo se ghire hue kahin ek sath washp nikalne se unki chotiyan chhipi hui aur kahin charon or se un par jaldhara pant se bukke ki holi khelte hue baDe hi suhane malum paDte the pas se dekhne se bhi pahaD bahut hi bhale dikhlai paDte the kale patthron par hari hari ghas aur jahan tahan chhote baDe peD beech beech mae mote patle jharne nadiyon ki laqire, kahi charon or se saghan hariyali, kahi chattanon par unche niche angaDh Dhoke aur kahin jalpurn harit tarai wichitr shobha deti thi achchhi tarah parkash hote hote to waiddnath ke station par pahunch gaye station se waiddnath ji koi teen kos hai beech mein ek nadi utarni paDti hai jo aaj kal barsat mein kabhi ghatti kabhi baDhti hai rasta pahaD ke upar hi upar baDa suhana ho raha hai palaki par hilte hilte chale shri maharaj ke sonchne ke anusar kaharon ki gati dhwani mein bhi parmeshwar hi ka charcha hai pahle ‘ kohan kohan’ ki dhwani sun paDti hai phir ‘sohan sohan’ ‘hansasmohan’ ki ekakar pukar marg mein bhi us se tanmay kiye deti thi
musafiro ko anubhaw hoga ki rail par sone se nak tharrati hai aur wahi dasha kabhi kabhi aur sawariyon par bhi hoti hai isi se mujhe palaki par neend nahin i aur jaise taise baijnath ji pahunch hi gaye
baijnath ji ek ganw hai jo achchhi tarah abad hai magistrate munsif wagairah haqim aur zaruri aafis hai nicha aur tar hone se des batul ganda aur dwara hai log kale kale hatotsah moorkh gharib hai yahan saunthal ek jangli jati hoti hai ye log ab tak nire bahshi hai khane pine ki zaruri chizen yahan mil jati hai sarp wishesh haish ram ji ki ghoDi jisko kuch log gwalin bhi kahte hain ek balishat lambi aur do do ungal moti dekhne mein i
mandir baijnath ji ka top ki tarah bahut uncha shikhardar hai charo or dewtaon ke mandir aur beech mein farsh hai mandir bhitar se andhera hai kyonki sirf ek darwaza hai baijnath ji ki pinDi jaladhri se teen chaar ungal unchi beech mein se chipti hai kahte hain ki rawan ne mukka mara hai is se ye gaDaha paD gaya hai waiddnath, baijnath, rawnoshwar ye teen nam mahadew ji ke hai ye siddhpith aur jyotirling sthan hai haridwar peeth iska nam hai aur sati ka hrday desh yahan gira hai jo parwati aroga durga nam ki samne ek dewi hain wahi yahan ki mukhy shakti hain inke mandir aur mahadew ji ke mandir se ganth joDi rahti hai raat ko mahadew ji ke par bel patr ka bahut lamba chauDa ek Dher kar ke upar se kamkhab ya tash ka khol chaDha kar shrringar karte hain ya bel patr ke upar se bahut si mala pahna dete hain sir ke gaDhe mein bhi raat ko chandan bhar dete hain waiddnath ki katha ye hai ki ek ber parwati ji ne man kiya tha aur rawan ke shor karne se wo man chhoot gaya is par mahadew ji ne prasann ho kar war diya ki hum lanka chalenge aur ling rup se us ke sath chale rah mein jab waiddnath ji pahunche to brahmn rupi wishnu ke hath mein wo ling dekar rawan peshab karne laga kai ghaDi tak maya mohit ho kar wo mutta hi rah gaya aur ghabDa kar wishnu ne us ling ko wahi rakh diya rawan se mahadew ji se qarar tha ki jahan rakh doge wahan se aage na chalenge is se mahadew ji wahin rah gaye waranj isi par khafa hokar rawan ne un ko mukka bhi mar diya
waiddnath ji ka mandir raja puranmal ka banwaya hua hai log kahte hain ki raghunath ojha namak ek tapaswi isi wan mein rahte the unko swapan hua ki hamari ek chhoti si maDhi jhaDiyon mein chhipi hai tum us ka ek baDa mandir banao usi swapan ke anusar kisi wriksh ke niche un ko teen lakh rupaya mila unhon ne raja puranmal ko wo rupaya diya ki we apne prbandh mein mandir banwa den we badashah ke kaam se kahin chale gaye aur kai baras tak na laute tab raghunath ojha ne dukhit ho kar apne wyay se mandir banwaya jab puranmal laut kar aaye aur mandir bana dekha to sabha manDap banwa kar mandir ke upar apni prashsit likh kar chale gaye ye dekh kar raghunath ojha ne is baat se dukhit hokar ki rupaya bhi gaya kirti bhi ek nai prashsit banai aur bahar ke darwaze par khudwa kar laga di waiddnath mahatmya bhi malum hota hai ki inhi mahatma ka banaya hai kyonki us mae chhipakar raghunath ojha ko ramchandr ka autar likha hai prashasti ka kawy bhi uttam nahin hain jis se bodh hota hai ki ojha ji shradhalu the kintu uddhat panDit nahin the giraddhaur ke maharaj sar jagmangal sinh ke si s i kahte hain ki puranmal un ke purkha the ek wichitr baat yahan aur bhi likhne ke yogya hai gobardhan parwat par shri nath ji ka mandir san 1556 mein ek raja puranmal ne banaya aur yahan san 1652(1564 i ) mein ek puranmal ne waiddnath ji ka mandir banaya kya ye mandiron ka kaam purnamal hi ko parmeshwar ne saumpa hai
(iske baad sanskrit mein nij mandir ka lekh aur sabha manDap ka lekh hai)
mandir ke charon or aur dewtaon ke mandir hain kahin do prachin jain murtiyan hindu murti ban kar pujti hain ek padmawati dewi ki murti baDi sundar hai jo surya narayan ke nam se pujti hai ye murti padm par baitha hai is par atyant prachin pali akshron mein kuch likha hai jo mainne shribabu rajendrlal mitr ke pas paDhne ko bheja hai do bhairaw ki murti jismen ek to kisi jain siddh ki aur ek jain kshaetrapal ki hai baDi hi sundar hai log kahte hain ki bhagalpur ke jile mein kisi talab mein se nikli thi
shrimanmharaj kashi naresh ke sath waiddnath ki yatra ko chale do baje din ke paisenjar train mein sawar hue charon or hari hari ghas ka farsh upar rang rang ke badal gaDhon mein pani bhara hua sab kuch sundar marg mein shri maharaj ke mukh se anek prakar ke amrtamay updesh sunte hue chale jate the sanjh ko baksar pahunche baksar ke aage baDa bhari maidan par sabz kashanni makhmal se maDha hua sanjh hone se badal ke chhote tukDe lal pile nile baDe suhane malum paDte the banaras kalij ki rangin shisho ki khiDakiyon ka sa saman tha kram se andhkar hone laga thanDhi thanDhi hawa se nidradewi alag netron se lipti jati thi main maharaj ke pas se ith kar sone ke waste dusri gaDi mein chala gaya jhapki ka aana tha ki bauchhron ne chheD chhaD karni shuru ki patne pahunchte pahunchte to gher ghaar kar charon or se pani barasne hi laga bus prithwi akash sab neer brhamay ho gaya is dhoom dham mein bhi rail krishnabhiptarika si apni dhun mein chali hi jati thi sach hai sawan ki nadi aur driDhaprtigya udyogi aur jin ke man piritam ke pas hain we kahin rukte hai rah mae baz peDon mein itne jugnu lipte hue the ki peD sachmuch ‘sarwe chiragha’ ban rahe the jahan rail thaharti thi station master aur sipahi bichare tutarun tun chhata laltain liye rozi jagate bhingte hue pahine apratihat gati se ghumte the uske ghur ghisne se garm hokar shithil ho gaye wo gaDi chhoD deni paDi jaise dhoom dham ki andheri waise hi jor shor ka pani idhar to ye aafat udhar pharjan be saman pharjan ke babajan relwalon ki jaldi gaDi kabhi aage hatai kabhi pichhe khair kisi tarah sab theek hua is par bhi bahut sa asbab aur kuch log pichhe chhoot gaye ab aage baDhte baDhte to sawera hi hone laga nidrawdhu ka sanyog bhagya mein na likha tha na hua ek to sekenD class ki ek hi gaDi us mein bhi leDij kampartment nikal gaya baki jo kuch bachi us mein barah adami gaDi bhi aisi tuti phuti jaise hinduon ki qimat aur himmat is kambakht gaDi se tisre darje ki gaDiyon se koi farq nahi sirf ek ek dhokhe ki tantti ka shisha khiDakiyon mein laga tha na chauDe bench na gadda na bathrum jo log mamuli se tiguna rupaya den un ko aisi manhus gaDi par bithlana jis mein koi baat bhi aram ki na ho railway kampni aag laga kar jala deti ya kalkatte mae nilam kar deti agar mare moh ke ne chhoDi jaye to us se tisre darje ka kaam le nahak apne grahkon ko bewaquf banane se kya hasil leDij kampartment khali tha main ne guard se kitna kaha ki is mein sone do na mana danapur se do chaar neem angrez (leDi nahi sirf laiD) mile un ko betakalluf baitha diya pharst class ki sirf do gaDi ek main maharaj dusri mein aadhi leDiz aadhi mae angrez ab kahan sowain ki neend awain sachmuch ab to tapasya kar ke gori gori kokh se janm le tab sansar mein sukh mile main to jyon hi pharst class mein angrez kam hue ki sone ki lalach se us mein ghusa hath pair chalana tha ki gaDi tutne wala wighn hua maharaj ke is gaDi mein aane se main phir wahi ka wahin khair isi sat panch mein raat kat gai badal ke pardo ko phaD phaD kar usha dewi ne tak jhank arambh kar di parlok gat sajnon ki kirti ki bhanti surya narayan ka parkash pishun meghon ke bagaDambar se ghira hua dikhlai paDne laga prakrti ka nam kali se saraswati hua thanDi thanDi hawa man ki kali khilati hui bahne lagi door se dhani aur kahi rang ke parwto par sunahrapan aa chala kahin aadhe parwat badalo se ghire hue kahin ek sath washp nikalne se unki chotiyan chhipi hui aur kahin charon or se un par jaldhara pant se bukke ki holi khelte hue baDe hi suhane malum paDte the pas se dekhne se bhi pahaD bahut hi bhale dikhlai paDte the kale patthron par hari hari ghas aur jahan tahan chhote baDe peD beech beech mae mote patle jharne nadiyon ki laqire, kahi charon or se saghan hariyali, kahi chattanon par unche niche angaDh Dhoke aur kahin jalpurn harit tarai wichitr shobha deti thi achchhi tarah parkash hote hote to waiddnath ke station par pahunch gaye station se waiddnath ji koi teen kos hai beech mein ek nadi utarni paDti hai jo aaj kal barsat mein kabhi ghatti kabhi baDhti hai rasta pahaD ke upar hi upar baDa suhana ho raha hai palaki par hilte hilte chale shri maharaj ke sonchne ke anusar kaharon ki gati dhwani mein bhi parmeshwar hi ka charcha hai pahle ‘ kohan kohan’ ki dhwani sun paDti hai phir ‘sohan sohan’ ‘hansasmohan’ ki ekakar pukar marg mein bhi us se tanmay kiye deti thi
musafiro ko anubhaw hoga ki rail par sone se nak tharrati hai aur wahi dasha kabhi kabhi aur sawariyon par bhi hoti hai isi se mujhe palaki par neend nahin i aur jaise taise baijnath ji pahunch hi gaye
baijnath ji ek ganw hai jo achchhi tarah abad hai magistrate munsif wagairah haqim aur zaruri aafis hai nicha aur tar hone se des batul ganda aur dwara hai log kale kale hatotsah moorkh gharib hai yahan saunthal ek jangli jati hoti hai ye log ab tak nire bahshi hai khane pine ki zaruri chizen yahan mil jati hai sarp wishesh haish ram ji ki ghoDi jisko kuch log gwalin bhi kahte hain ek balishat lambi aur do do ungal moti dekhne mein i
mandir baijnath ji ka top ki tarah bahut uncha shikhardar hai charo or dewtaon ke mandir aur beech mein farsh hai mandir bhitar se andhera hai kyonki sirf ek darwaza hai baijnath ji ki pinDi jaladhri se teen chaar ungal unchi beech mein se chipti hai kahte hain ki rawan ne mukka mara hai is se ye gaDaha paD gaya hai waiddnath, baijnath, rawnoshwar ye teen nam mahadew ji ke hai ye siddhpith aur jyotirling sthan hai haridwar peeth iska nam hai aur sati ka hrday desh yahan gira hai jo parwati aroga durga nam ki samne ek dewi hain wahi yahan ki mukhy shakti hain inke mandir aur mahadew ji ke mandir se ganth joDi rahti hai raat ko mahadew ji ke par bel patr ka bahut lamba chauDa ek Dher kar ke upar se kamkhab ya tash ka khol chaDha kar shrringar karte hain ya bel patr ke upar se bahut si mala pahna dete hain sir ke gaDhe mein bhi raat ko chandan bhar dete hain waiddnath ki katha ye hai ki ek ber parwati ji ne man kiya tha aur rawan ke shor karne se wo man chhoot gaya is par mahadew ji ne prasann ho kar war diya ki hum lanka chalenge aur ling rup se us ke sath chale rah mein jab waiddnath ji pahunche to brahmn rupi wishnu ke hath mein wo ling dekar rawan peshab karne laga kai ghaDi tak maya mohit ho kar wo mutta hi rah gaya aur ghabDa kar wishnu ne us ling ko wahi rakh diya rawan se mahadew ji se qarar tha ki jahan rakh doge wahan se aage na chalenge is se mahadew ji wahin rah gaye waranj isi par khafa hokar rawan ne un ko mukka bhi mar diya
waiddnath ji ka mandir raja puranmal ka banwaya hua hai log kahte hain ki raghunath ojha namak ek tapaswi isi wan mein rahte the unko swapan hua ki hamari ek chhoti si maDhi jhaDiyon mein chhipi hai tum us ka ek baDa mandir banao usi swapan ke anusar kisi wriksh ke niche un ko teen lakh rupaya mila unhon ne raja puranmal ko wo rupaya diya ki we apne prbandh mein mandir banwa den we badashah ke kaam se kahin chale gaye aur kai baras tak na laute tab raghunath ojha ne dukhit ho kar apne wyay se mandir banwaya jab puranmal laut kar aaye aur mandir bana dekha to sabha manDap banwa kar mandir ke upar apni prashsit likh kar chale gaye ye dekh kar raghunath ojha ne is baat se dukhit hokar ki rupaya bhi gaya kirti bhi ek nai prashsit banai aur bahar ke darwaze par khudwa kar laga di waiddnath mahatmya bhi malum hota hai ki inhi mahatma ka banaya hai kyonki us mae chhipakar raghunath ojha ko ramchandr ka autar likha hai prashasti ka kawy bhi uttam nahin hain jis se bodh hota hai ki ojha ji shradhalu the kintu uddhat panDit nahin the giraddhaur ke maharaj sar jagmangal sinh ke si s i kahte hain ki puranmal un ke purkha the ek wichitr baat yahan aur bhi likhne ke yogya hai gobardhan parwat par shri nath ji ka mandir san 1556 mein ek raja puranmal ne banaya aur yahan san 1652(1564 i ) mein ek puranmal ne waiddnath ji ka mandir banaya kya ye mandiron ka kaam purnamal hi ko parmeshwar ne saumpa hai
(iske baad sanskrit mein nij mandir ka lekh aur sabha manDap ka lekh hai)
mandir ke charon or aur dewtaon ke mandir hain kahin do prachin jain murtiyan hindu murti ban kar pujti hain ek padmawati dewi ki murti baDi sundar hai jo surya narayan ke nam se pujti hai ye murti padm par baitha hai is par atyant prachin pali akshron mein kuch likha hai jo mainne shribabu rajendrlal mitr ke pas paDhne ko bheja hai do bhairaw ki murti jismen ek to kisi jain siddh ki aur ek jain kshaetrapal ki hai baDi hi sundar hai log kahte hain ki bhagalpur ke jile mein kisi talab mein se nikli thi
स्रोत :
पुस्तक : भारतेंदु के निबंध (पृष्ठ 71)
संपादक : केसरीनारायण शुक्ल
रचनाकार : भारतेंदु हरिश्चंद्र
प्रकाशन : सरस्वती मंदिर जतनबर,बनारस
संस्करण : 1900
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।