लंदन में डा० स्टैनली लीफ़ से मिल चुका था और भी अनेक प्राकृतिक चिकित्सकों से मिला था—प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में जो लंदन में देखने योग्य था, वह भी मैंने अपने हिसाब से देख लिया था। अब मैंने लंदन बाहर निकलने का विचार किया।
ब्रिटेन में मोटे तौर पर प्राकृतिक चिकित्सकों के दो ग्रुप हैं। एक डा० स्टैनली लीफ़ के इर्द-गिर्द इकट्ठा है, जो कमोबेश वार्नर मैकफ़ैडन से प्रभावित है। दूसरा ग्रुप एडिनबरा के डा० थामसन का है। दूसरा ग्रुप छोटा है और प्राकृतिक चिक्तिसा के मूल रूप को अधिक कट्टरपन से मानता है। डा० थामसन की अपनी विचारधारा है, जो किसी प्राकृतिक चिक्तिसक से नही मिलती। ये प्राकृतिक चिक्तिसा के प्रचार और उसे उचित सम्मान दिलाने के लिए अधिक प्रयत्नशील रहते हैं। एलोपैथों से तो इनका आए दिन झगड़ा होता रहता है। एलोपैथों से विवाद कर प्राकृतिक चिकित्सा की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए यह कटिबद्ध रहते हैं और उनके छोड़े हुए रोगी ले-लेकर उन्हें स्पष्ट करते और उनके पूर्व डाक्टरों के पास भेजते रहते हैं। दर्जनों किताबें लिखी है और एक छोटा-सा मासिक पत्र भी निकालते हैं, जिसके अधिकांश पृष्ठ इन्ही के लेखों अथवा वाद-विवाद से भरे रहते है। इसका प्रत्येक अंक साधारण पाठक की अपेक्षा प्राकृतिक चिक्तिसकों के अधिक काम का होता है। उसका नाम है ‘रुड हेल्थ’।
मेरा डा० थामसन से पत्र-व्यवहार पहले से चल रहा था। मैंने इन्हें अपने आने की सूचना देकर मिलने की इच्छा प्रकट की और दूसरे दिन इनसे मिलने एडिनबरा के लिए चल पड़ा। सुबह नौ बजे गाड़ी छूटने वाली थी। मैं दौड़ता-भागता स्टेशन पहुँचा। टिकटबाबू को एक पौंड देकर एडिनबरा का टिकट माँगा।
‘’महाशय, एडिनबरा यहाँ से बड़ी दूर है। टिकट का दाम है ढाई पौंड।’’
मैंने एक-एक पौंड के दो नोट और दिए। उसने टिकट बढ़ाया और टिकट लेकर प्लेटफार्म की ओर चला। पचास कदम ही गया होऊँगा कि बाबू मेरे पीछे दौड़ता आया और मेरे हाथ पर दस शिलिंग रखता हुआ बोला ‘’आपकी बची रकम।’’
मुझे अपनी भूल पर शर्म आई। मैंने लजाते हुए उससे कप्ट के लिए क्षमा माँगी और वह आँधी की तरह दौड़ता हुआ टिकट घर में दाख़िल हो गया।
आगे प्लेटफार्म के दरवाज़े पर टिकट चेकर ने मेरा टिकट देखा।
‘’आप एडिनबरा जा रहे हैं?’’
‘’जी हाँ।’’
‘’छुट्टी मनाने जा रहे हैं?’’
‘’जी हाँ और कुछ लोगों से मिलना भी है।’’
‘’आपकी यात्रा आनंदमय हो।’’
यहाँ छुट्टी मनाने बाहर जाने का लोगों को बड़ा शौक है। यात्रा जैसे इनके जीवन का अभिन्न अंग है। मासिक आय का एक भाग यात्रा के लिए तो सुरक्षित रहता ही है, ये लंबी-लंबी यात्राओं के सपने भी देखा करते है—जैसे यात्रा ही जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकती है और यात्रा करते भी ये ख़ूब हैं।
गाड़ी में बैठा ही था कि गाड़ी चल पड़ी। मेरे छ: सीट के खाने में पाँच यात्री थे। गाड़ी बड़ी तीव्र गति से जा रही थी और रास्ते में बहुत ही कम जगहों पर इसे रुकना था। धीरे-धीरे मेरे डब्बे के तीन यात्री उतर गए और हम केवल दो रह गए। इस समय मेरे साथी एक प्रौढ़ व्यक्ति थे, जो एक कुशल व्यापारी प्रतीत होते थे। अकेले रह जाने पर उन्होंने चुप्पी तोड़ी।
‘’ आप कहाँ जा रहे हैं?’’
‘’एडिनबरा । आप?’’
‘’ एडिनबरा ही, वहीं मेरा घर है। एडिनबरा आप किस काम से जा रहे हैं?’’
‘’मुझे वहाँ कुछ प्राकृतिक चिकत्सकों से मिलना है?’’
‘’वहाँ से कहाँ जाएँगे?’’
‘’ब्रिस्टल, किलमोर और स्टेट फोर्ड ऑन एवन।’’
‘’ तो आप साहित्यिक हैं?’’
‘’जी, साहित्य से मेरा अनुराग अवश्य है, अत: मैं स्टेट फोर्ड शेक्सपीयर का गाँव देखने जाउँगा, पर मैं प्राकृतिक चिकित्सक हूँ और पत्रकार।’’
‘’आपने अपनी यात्रा का रास्ता निश्चित कर लिया है?’’
‘’अभी तक तो नही।’’
उन्होंने तुरंत अपना बैग खोला और ग्रेट ब्रिटेन का एक बड़ा-सा नक्शा निकाला।
‘’आप इतना बड़ा नक्शा अपने साथ हर समय रखते हैं?’’
‘’मैं एक कंपनी का ओर्गेनाइजिंग मैनेजर हूँ। यह नक्शा मेरी कंपनी ने छापा है, इसपर हमारी सारी एजेंसियों के स्थान चिन्हित हैं।’’
उन्होंने मेरे लिए रास्ता निश्चित कर दिया और रेलवे टाइम-टेबल देख कर गाड़ी का समय भी लिख दिया। अत तो इन महाशय से मेरी दोस्ती जुड़ गई। रास्ते के स्थानों का वह मुझे परिचय कराने लगे, फसलों के नाम बताने लगे और बताया कि एडिनबरा बड़ा सुंदर नगर है। उन्होंने वहाँ के दर्शनीय स्थानों का भी परिचय दिया।
‘’यहाँ पीने का पानी मिल सकता है?’’
‘’जरुर मिलेगा, चलिए डाइनिंग कार में देखा जाए।’’
मैं वहाँ गया।
‘’एक गिलास पानी चाहिए।’’
‘’चाय,काफी,बियर कुछ नही?’’
नही मुझे पानी ही चाहिए। वहीं मुझे देने की कृपा करें।
उसने मुझे तीन छटांक पानी का एक गिलास दिया। इस पर मैंने उससे दूसरा गिलास माँगा तो वह हक्का-बक्का मेरा मुहँ देखता रह गया।
चार बजे हमारी रेलगाड़ी ने इंग्लैंड की सीमा पार की और स्काट्लैंड में प्रविष्ट हुई। सीमा का चिन्ह क्रास की तरह का एक रगा-सजा पत्थर है। यह चिन्ह मेरे साथी ने मुझे बड़े उत्साह से दिखाया। वह स्काटिश जो थे। जहाँ पर्वत और समुद्र मनुष्य को नही बाँध सके हैं, वहाँ मनुष्य-मनुष्य का पार्थक्य स्वयं सीमा बन कर खड़ा हो गया है।
पाँच बजे एडिनबरा आ गया। हम लोग स्टेशन के बाहर आए।
‘’आप कहाँ ठहरेंगे?’’
‘’वाई० एम० सी० ए० के छात्रावास में।’’
अगले चौराहे के निकट ही वह छात्रावास था। वह मुझे वहाँ तक पहुँचाने गए और मुझसे हाथ मिलाकर विदा हुए।
वाई०एम०सी०ए० में मुझे तुरंत कमरा मिल गया। मैंने वहाँ सामान रखा और शहर निकला। एडिनबरा हिंदुस्तान के आगरा की तरह का ऐतिहासिक नगर है. जहाँ बहुत-सी पुरानी इमारते हैं, किले हैं और महल हैं। यह स्काटलैंड का सदा से विशेष शहर रहा है। स्टेशन के सामने की सड़क दो मील लंबी है और यही एडिनबरा की प्रधान सड़क है। सड़क की दाहिनी तरफ़ इमारते और बाज़ार है और बायीं तरफ़ खुला मैदान जो लगभग तीन फ्लगि चौड़ा है। मैदान के पार पहाड़ियाँ और बीच की ऊँची पहाड़ी पर पुराना किला है। सड़क और पहाड़ी के बीच-का मैदान पार्क है – लंबा पार्क, बड़ा ही ख़ूबसूरत। सड़क से यह लगभग पच्चीस फुट की निचाई पर है, अत सड़क से पार्क में जाने के लिए जगह-जगह सीढ़ियाँ हैं।
पार्क की घास मखमल-सी लगती है और क्यारियाँ रंग-बिरंगे फूलों से सजी हैं। शाम का वक़्त था। लगता था, सारा शहर ही पार्क में दौड़ा जा रहा है। पार्क में जगह-जगह लोग टोली में बैठे बात कर या टहल रहे थे। और पार्क के बीच के ओपन-एयर थियेटर्स में हो रहे गानों को सुनने के लिए कोई पाँच-सात हजार आदमी इकट्ठा थे। यहीं सड़क के किनारे साहित्यकार सर वाल्टर स्कार्टका लाल पत्थरों का बना स्मृति गृह है, बहुत ही ऊँचा और ख़ूबसूरत। स्मृति गृह के बीच में कविवर स्कार्ट की मूर्ति है। स्कार्ट एक चबूतरे पर बैठे हैं और नीचे बैठा है उनका कुत्ता उन्हें कृतज्ञतापूर्वक देख रहा है। इस मंदिर की सीढियों द्वारा ऊपर भी जाया जाता है और वहाँ से सारा एडिनबरा आपके दृष्टि-पथ के अंदर आ जाता है।
आगे बढ़ा तो एक मोड़ पर दस-बारह बसें खड़ी दिखाई दी। ये तीन शिलिंग लेकर एडिनबरा की तीन घंटे सैर कराती थी। इन्होने सारे एडिनबरा को पाँच भाग में विभक्त कर रखा था। यदि आप इनपर तीन-तीन घंटे पाँच यात्राएँ कर लें तो सारा एडिनबरा देख लेंगे। कुछ अन्य बसें एडिनबरा के बाहर भी ले जाती हैं।
मैं एक बस में जा बैठा। पाँच-सात मिनट में ही बस भर गई। ड्राईवर टिकट बेचने आया। मैंने उसे तीन शिलिंग दिए और टिकट ले लिया। मेरी बगल में एक सज्जन अपनी पत्नी के साथ बैठे थे। उनके सामने ड्राइवर पहुँचा तो उन्होंने बहुत से सिक्के जेब से निकालकर ड्राइवर के सामने कर दिए। ड्राइवर ने सिक्कों में से छ: शिलिंग लेकर उन्हें दो टिकट दे दिए।
‘’आप कहाँ से आए हैं?’’
‘’हूँ मैं ग्रीस का, पर आज ही यहाँ फ़्रांस से आया हूँ।’’
‘’टिकट ख़रीदने की आपने अच्छी विधि निकाली।’’
‘’देश-दर्शन के लिए यात्रा पर हूँ। जल्द-जल्द देश छोड़ने पड़ते हैं और उतनी जल्दी सिक्कों का हिसाब दिमाग़ में बैठ नही पाता। फ़्रांस में सिर्फ़ हज़ारों में बात होती है, पर यहाँ तो बात सैकड़ों तक भी नही पहुँचनी।’’
इतन एमे हमारी बस चल पड़ी और गाइड ने हमें रास्तों, इमारतों और बाज़ारों का परिचय देना शुरू किया। शहर बड़ा ही स्वच्छ, सुंदर और करीने से बसा है। हमारी बस समुद्र के किनारे के निकट से भी गुज़री, जहाँ का दृश्य बड़ा सुंदर था। बस तीन घंटे में हमें वापस ले आई। मैं बस से उतरा और रात्रि-विश्राम के लिए अपने निवास-स्थान की ओर चल पड़ा।
- पुस्तक : विठ्ठलदास मोदी की यूरोप यात्रा (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : विठ्ठलदास मोदी
- प्रकाशन : आरोग्य मंदिर गोरखपुर
- संस्करण : 1961
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