नारों को या मंत्रों को खोखला कहने का फ़ैशन है, लेकिन जिन नारों से लाखों लोग राहत या सनसनी महसूस करें, उनकी समीक्षा विचार के धरातल पर करना ज़रूरी हो जाता है। (विचार आख़िर क्या है? चटख़ारों और बिखरे बेतुकेपन में तुक खोजना ही तो विचार है।) सत्तर के दशक में श्रीमती गांधी ने जा वामपंथी नारे देश को दिए, उन्होंने एक अस्पष्ट-सी विचारधारा के सूत्र में देश को बाँधे रखा।