अनहद पर अड़िल्ल
अनहद का अर्थ अनाहत या
सीमातीत है। इसका अर्थ समाधि की स्थिति में सुनाई पड़ने वाला नाद भी है। कबीर, गुरु नानक, मलूकदास आदि मध्यकालीन भक्त-कवियों द्वारा इस शब्द के प्रयोग ने इसे विशेष लोकप्रिय बनाया है।
स्याम घटा घन घेरि चहूँ दिसि आइया।
अनहद बाजे घोर जो गगन सुनाइया॥
दामिनि दमकि जो चमकि त्रिबेनी न्हाइया।
बुल्ला हृदय बिचारि तहाँ मन लाइया॥